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India-America Relation: क्या मोदी की ट्रंप से दोस्ती मतभेदों और कड़वाहट में तब्दील हो चुकी है?

सवाल उठ रहे हैं कि जो डोनाल्ड ट्रंप कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे घनिष्ट मित्र थे, अब यह दोस्ती भारी मतभेदों और कड़वाहट में तब्दील हो चुकी है। भारत और अमेरिका के बीच होने वाली महत्वाकांक्षी ट्रेड डील भी फिलहाल खटाई में पड़ गई है। 

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Mukesh Pandit
TRUMP MODI

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पीएम नरेंद्र मोदी(File photo)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते पिछले लगभग दो दशकों में सबसे निचले पायदान पर हैं। दोनों देशों में काफी तनाव देखा जा रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि जो डोनाल्ड ट्रंप कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे घनिष्ट मित्र थे, अब यह दोस्ती भारी मतभेदों और कड़वाहट में तब्दील हो चुकी है। भारत और अमेरिका के बीच होने वाली महत्वाकांक्षी ट्रेड डील भी फिलहाल खटाई में पड़ गई है। हालांकि भारत भी अब कूटनीतिक स्तर पर अमेरिका को तीखा, लेकिन सधा हुआ जवाब दे रहा है। पीएम मोदी फिलहाल इस पर चुप हैं, परंतु विदेश मंत्री एस जयशंकर अब सीधी चुनौती दे रहे हैं।

क्या रिश्ते खराब हो रहे हैं?

इसका सीधा और सरल जवाब है हां, रिश्ते तेजी से बिगड़ रहे हैं। जुलाई-अगस्त 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% आधारभूत टैरिफ और रूसी तेल खरीदने के लिए अतिरिक्त 25% जुर्माना लगाया, जिससे कुल टैरिफ 50% हो गया। इससे द्विपक्षीय व्यापार (करीब 212 अरब डॉलर) प्रभावित हुआ है, और भारत ने भी अमेरिकी हथियार खरीद को रोक दी है। भारत अब चीन और रूस की ओर कदम बढ़ा रहा है। मसलन, हाल में भारत-चीन सीमा विवादों में सुधार और रूसी तेल खरीद की बहाली। विशेषज्ञों का मानना है कि यह दशकों में सबसे गंभीर संकट है, जो क्वाड (QUAD) जैसे गठबंधनों को भी प्रभावित कर सकता है। हालांकि, कुछ विश्लेषणों में कहा गया है कि लंबे समय में रिश्ते टिकाऊ रहेंगे, क्योंकि दोनों देश चीन के खिलाफ रणनीतिक साझेदार हैं।

क्या हैं रिश्तों में कड़वाहट की मुख्य वजहें ?

कड़वाहट की कई वजहें हैं, जो व्यापार, भू-राजनीति और घरेलू मुद्दों से जुड़ी हैं। एक तरफ अमेरिका ने चीन को आयात शुल्क की समयसीमा पर छूट दिया है, वहीं दूसरी तरफ भारत के साथ उसका रवैया बदल गया है। जो भारत पहले अच्छा व्यापारिक साथी था, वह अब अमेरिका के लिए विलेन जैसा हो गया है। भारत को अब अमेरिका में सामान निर्यात करने पर 50 फीसदी का शुल्क की मार झेलनी पड़ेगी। इसमें से 25 फीसदी तो सामान्य वस्तुओं पर है और बाकी का 25 फीसदी रूस से तेल खरीदने की वजह से है, यह 27 अगस्त से लागू हो जाएगी।

रूसी तेल और हथियार खरीद

अमेरिका का मानना है कि भारत की रूस से तेल खरीद (जो रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान सस्ता मिल रहा है) मॉस्को को युद्ध में आर्थिक मदद दे रही है। ट्रंप ने इसे "यूक्रेन में मारे जा रहे लोगों की परवाह न करने" का आरोप लगाया था। हालांकि भारत ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि अमेरिका भारत से भी अधिक तेल खरीद रहा है, लेकिन अमेरिका ने दंड के रूप में टैरिफ बढ़ाए। इसके जवाब मं भारत ने अमेरिकी रक्षा सौदों पर रोक लगा दी है।

व्यापार असंतुलन और टैरिफ 

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जानकारों का कहना है कि अमेरिका का भारत के साथ 40 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है। ट्रंप ने भारत के अमेरिकी उत्पादों पर ऊंचे टैरिफ को "असहनीय" बताया है। भारत का कहना है कि उसके टैरिफ कृषि और छोटे किसानों की रक्षा के लिए हैं, लेकिन अमेरिका बाजार खोलने का दवाब बना रहा है। इससे "मिशन 500" (द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक बढ़ाने) का लक्ष्य प्रभावित हुआ।

ट्रंप का उन्हीं के देश में हुआ विरोध

अहम बात यह भी है कि ट्रंप के टैरिफ का विरोध उन्हीं की पार्टी के नेता कर रहे हैं। दक्षिण कैरोलिना की पूर्व गवर्नर निक्की हेली ने ट्रंप के भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ को गलत करार दिया था। आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक हेली ने हाल ही में ट्रंप टैरिफ की खामियां गिनाई हैं। तर्क दिया है कि टैरिफ नीति से भारत-अमेरिका के सालों से चले आ रहे मजबूत संबंध प्रभावित होंगे। हेली ने ट्रंप को यह भी सुझाव दिया कि वे भारत के साथ जल्द से जल्द रिश्ते अच्छे कर लें।

रणनीतिक मतभेद 

भारत की "बहुध्रुवीय दुनिया" की नीति (रूस और चीन से संबंध बनाए रखना) अमेरिका की रूस-विरोधी नीति से टकरा रही है। इससे भारत-पाकिस्तान संबंधों में अमेरिका का पाकिस्तान की ओर झुकाव बढ़ा है, जो भारत को चिंतित करता है। हाल में भारत-चीन संबंधों में सुधार (जैसे वांग यी की यात्रा) अमेरिकी टैरिफ की वजह से हुआ लगता है।

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इनसिऐड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर एंटोनियो फातास कहते हैं, "भारत न तो चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था है, न ही वह ऐसे सामानों का निर्यात करता है जो अमेरिकी उद्योग के लिए जरूरी हैं, और न ही उसके पास इतनी शक्ति है कि वह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचा सके.” उन्होंने कहा कि भारत अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सामूहिक ताकत दिखाए और शुल्क कम कराए।

वहीं दूसरी ओर, भले ही बातचीत में चीन का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है, लेकिन स्ट्रैटेजिक एडवाइजरी फर्म ‘द एशिया ग्रुप' के चीन के मैनेजिंग डायरेक्टर हान शेन लिन चीनी पक्ष को आगाह करते हैं कि वह ढीला न पड़े।आखिरकार, ट्रंप का अप्रत्याशित कदम उठाने का अंदाज हालात को कभी भी पलट सकता है।

हान ने न्यूज एजेंसी रॉयटर को बताया, "हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि अमेरिका के पास बातचीत के दौरान और ज्यादा चौंकाने वाले कदम उठाने की ताकत है। मेरा मानना है कि दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार होने की वजह से अमेरिका के पास जो ताकत है वह दूसरे देशों को सोच-समझकर कदम उठाने पर मजबूर करेगा।” India-America relations | india america relationship | DonaldTrump | Donald Trump India tax | donald trump news | donald trump on india | donald trump on tariff

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