नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने बुधवार को केंद्रीय कानून मंत्रालय को जस्टिस बीआर गवई को अगला CJI नियुक्त करने की सिफारिश की। वह 14 मई 2025 को देश के 52वें चीफ जस्टिस के के रूप में शपथ लेंगे। मौजूदा सीजेआई संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर होंगे। बीआर गवई अनुसूचित जाति से आने वाले दूसरे चीफ जस्टिस होंगे, उनके पहले सीजेआई केजी बालाकृष्णन भी अनुसूचित जाति के थे। supreme court hearing
मात्र 6 माह होगा बीआर गवई का कार्यकाल
जस्टिस बीआर गवई पद संभालने के 6 महीने बाद तक सीजेआई रहेंगे और नवंबर 2025 में रिटायर होंगे। जस्टिस बीआर गवई महाराष्ट्र के अमरावती से हैं। उन्होंने साल 1985 में वकील के तौर पर काम शुरू किया था। तब वो महाराष्ट्र के पूर्व एडवोकेट जनरल और बाद में महाराष्ट्र हाईकोर्ट के जज रहे बैरिस्टर राजा भोंसले के साथ काम करते थे। बीआर गवई बॉम्बे हाईकोर्ट में साल 1987 से 1990 तक वकालत करते रहे। supreme court | Supreme Court India | supreme courturt | supreme court hearing on bulldozer action
बुल्डोजर एक्शन पर उठाए थे सवाल
बीआर गवई को साल 1992 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में महाराष्ट्र सरकार का असिस्टेंट प्लीडर एंड असिस्टेंट पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया गया था। वे साल 2003 में हाईकोर्ट के एडिशनल जज बने। बीआर गवई साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट आए और अब सीजेआई बनने जा रहे हैं। पिछले साल बीआर गवई ने बुल्डोजर एक्शन पर सवाल उठाए थे। जस्टिस बीआर गवई ने सोमवार (14 अप्रैल 2025) को भीमराव अंबेडकर की जयंती पर कहा कि संविधान निर्माण के लिए राष्ट्र सदैव उनका कृतज्ञ रहेगा। सुप्रीम कोर्ट परिसर में जस्टिस गवई ने कहा, "राष्ट्र सदैव डॉ. आंबेडकर का कृतज्ञ रहेगा, क्योंकि उनके और उनके सहयोगियों ने संविधान तैयार किया. भारत मजबूत है, प्रगति कर रहा है और दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाले देशों में से एक है. यह उनका दर्शन, विचारधारा और दूरदृष्टि ही है जो हमें एकजुट और मजबूत बनाए हुए है।"
दूसरे एससी चीफ जस्टिस होंगे
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई (जन्म: 24 नवंबर 1960, अमरावती, महाराष्ट्र) भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश हैं और वरिष्ठता के आधार पर 14 मई 2025 से भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) बनने की संभावना है। वह जस्टिस केजी. बालकृष्णन के बाद अनुसूचित जाति (SC) से दूसरे मुख्य न्यायाधीश होंगे। शिक्षा और प्रारंभिक करियर: जस्टिस गवई ने 1985 में वकालत शुरू की और बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में प्रैक्टिस की। उन्होंने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून के मामलों में विशेषज्ञता हासिल की।
न्यायिक करियर:
2003: बॉम्बे उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त।
2005: स्थायी न्यायाधीश बने।
2019: 24 मई 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त।
पारिवारिक पृष्ठभूमि: उनके पिता आर.एस. गवई एक प्रमुख अंबेडकरवादी नेता, सांसद, और बिहार व केरल के पूर्व राज्यपाल थे। उनका परिवार डॉ. बी.आर. अंबेडकर से प्रेरित है और बौद्ध धर्म का पालन करता है।
अन्य भूमिकाएँ: वह महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, नागपुर के चांसलर और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
प्रमुख न्यायिक उपलब्धियां
जस्टिस गवई ने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण और सामाजिक रूप से संवेदनशील मामलों में फैसले दिए, जो उनके संवैधानिक अधिकारों और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण को दर्शाते हैं
बुलडोजर कार्रवाई पर टिप्पणी
जस्टिस गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने विभिन्न राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई (आरोपियों के घरों को तोड़ने) पर सवाल उठाए। उन्होंने इसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया, विशेष रूप से "राइट टू शेल्टर" (आवास का अधिकार) पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि किसी के आरोपी होने मात्र से उसका घर नहीं तोड़ा जा सकता और कानूनी प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। इस फैसले में उन्होंने कवि प्रदीप की कविता का उल्लेख कर घर के भावनात्मक और संवैधानिक महत्व को रेखांकित किया।
एससी/एसटी कोटा में वर्गीकरण (2024):
जस्टिस गवई ने अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST) के लिए आरक्षण में उप-वर्गीकरण (कोटा के भीतर कोटा) को समर्थन दिया। उन्होंने तर्क दिया कि यह ज्यादा पिछड़े समुदायों को समान अवसर प्रदान करता है। उनके फैसले में सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों पर बल दिया गया।
पर्यावरण संरक्षण (2025):
तेलंगाना में पेड़ों की कटाई के मामले में जस्टिस गवई ने पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा कि कोई भी कानून जो सर्वोच्च न्यायालय के पर्यावरण संरक्षण आदेशों के विरुद्ध हो, मान्य नहीं होगा।
मोदी सरनेम केस (2023):
राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द करने के मामले में जस्टिस गवई की खंडपीठ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस मामले में उनकी टिप्पणियाँ और फैसले ने व्यापक ध्यान आकर्षित किया।
सामाजिक लोकतंत्र पर विचार (2025):
डॉ. बी.आर. अंबेडकर की 135वीं जयंती पर जस्टिस गवई ने उनके विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि राजनीतिक लोकतंत्र के लिए सामाजिक लोकतंत्र आवश्यक है। उन्होंने संविधान को "भीमस्मृति" कहकर अंबेडकर के योगदान को सम्मान दिया।
जस्टिस बीआर गवई होंगे देश के अगले चीफ जस्टिस, बुलडोजर कार्रवाई पर टिप्पणी से आए थे सुर्खियों में
Justice BR Gavai: जस्टिस बीआर गवई पद संभालने के 6 महीने बाद तक सीजेआई रहेंगे और नवंबर 2025 में रिटायर होंगे। वह अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले देश से दूसरे चीफ जस्टिस होंगे।
नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने बुधवार को केंद्रीय कानून मंत्रालय को जस्टिस बीआर गवई को अगला CJI नियुक्त करने की सिफारिश की। वह 14 मई 2025 को देश के 52वें चीफ जस्टिस के के रूप में शपथ लेंगे। मौजूदा सीजेआई संजीव खन्ना 13 मई को रिटायर होंगे। बीआर गवई अनुसूचित जाति से आने वाले दूसरे चीफ जस्टिस होंगे, उनके पहले सीजेआई केजी बालाकृष्णन भी अनुसूचित जाति के थे। supreme court hearing
मात्र 6 माह होगा बीआर गवई का कार्यकाल
जस्टिस बीआर गवई पद संभालने के 6 महीने बाद तक सीजेआई रहेंगे और नवंबर 2025 में रिटायर होंगे। जस्टिस बीआर गवई महाराष्ट्र के अमरावती से हैं। उन्होंने साल 1985 में वकील के तौर पर काम शुरू किया था। तब वो महाराष्ट्र के पूर्व एडवोकेट जनरल और बाद में महाराष्ट्र हाईकोर्ट के जज रहे बैरिस्टर राजा भोंसले के साथ काम करते थे। बीआर गवई बॉम्बे हाईकोर्ट में साल 1987 से 1990 तक वकालत करते रहे। supreme court | Supreme Court India | supreme courturt | supreme court hearing on bulldozer action
बुल्डोजर एक्शन पर उठाए थे सवाल
बीआर गवई को साल 1992 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में महाराष्ट्र सरकार का असिस्टेंट प्लीडर एंड असिस्टेंट पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया गया था। वे साल 2003 में हाईकोर्ट के एडिशनल जज बने। बीआर गवई साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट आए और अब सीजेआई बनने जा रहे हैं। पिछले साल बीआर गवई ने बुल्डोजर एक्शन पर सवाल उठाए थे। जस्टिस बीआर गवई ने सोमवार (14 अप्रैल 2025) को भीमराव अंबेडकर की जयंती पर कहा कि संविधान निर्माण के लिए राष्ट्र सदैव उनका कृतज्ञ रहेगा। सुप्रीम कोर्ट परिसर में जस्टिस गवई ने कहा, "राष्ट्र सदैव डॉ. आंबेडकर का कृतज्ञ रहेगा, क्योंकि उनके और उनके सहयोगियों ने संविधान तैयार किया. भारत मजबूत है, प्रगति कर रहा है और दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाले देशों में से एक है. यह उनका दर्शन, विचारधारा और दूरदृष्टि ही है जो हमें एकजुट और मजबूत बनाए हुए है।"
दूसरे एससी चीफ जस्टिस होंगे
जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई (जन्म: 24 नवंबर 1960, अमरावती, महाराष्ट्र) भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश हैं और वरिष्ठता के आधार पर 14 मई 2025 से भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) बनने की संभावना है। वह जस्टिस केजी. बालकृष्णन के बाद अनुसूचित जाति (SC) से दूसरे मुख्य न्यायाधीश होंगे। शिक्षा और प्रारंभिक करियर: जस्टिस गवई ने 1985 में वकालत शुरू की और बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में प्रैक्टिस की। उन्होंने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून के मामलों में विशेषज्ञता हासिल की।
बुलडोजर कार्रवाई पर टिप्पणी
जस्टिस गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने विभिन्न राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई (आरोपियों के घरों को तोड़ने) पर सवाल उठाए। उन्होंने इसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया, विशेष रूप से "राइट टू शेल्टर" (आवास का अधिकार) पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि किसी के आरोपी होने मात्र से उसका घर नहीं तोड़ा जा सकता और कानूनी प्रक्रिया का पालन आवश्यक है। इस फैसले में उन्होंने कवि प्रदीप की कविता का उल्लेख कर घर के भावनात्मक और संवैधानिक महत्व को रेखांकित किया।
एससी/एसटी कोटा में वर्गीकरण (2024):
जस्टिस गवई ने अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST) के लिए आरक्षण में उप-वर्गीकरण (कोटा के भीतर कोटा) को समर्थन दिया। उन्होंने तर्क दिया कि यह ज्यादा पिछड़े समुदायों को समान अवसर प्रदान करता है। उनके फैसले में सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों पर बल दिया गया।
पर्यावरण संरक्षण (2025):
तेलंगाना में पेड़ों की कटाई के मामले में जस्टिस गवई ने पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा कि कोई भी कानून जो सर्वोच्च न्यायालय के पर्यावरण संरक्षण आदेशों के विरुद्ध हो, मान्य नहीं होगा।
मोदी सरनेम केस (2023):
राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द करने के मामले में जस्टिस गवई की खंडपीठ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस मामले में उनकी टिप्पणियाँ और फैसले ने व्यापक ध्यान आकर्षित किया।
सामाजिक लोकतंत्र पर विचार (2025):
डॉ. बी.आर. अंबेडकर की 135वीं जयंती पर जस्टिस गवई ने उनके विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि राजनीतिक लोकतंत्र के लिए सामाजिक लोकतंत्र आवश्यक है। उन्होंने संविधान को "भीमस्मृति" कहकर अंबेडकर के योगदान को सम्मान दिया।