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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रेसिप्रोकल टैरिफ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। यही वजह है कि ट्रंप के टैरिफ वार से पूरी दुनिया में हाहाकर मच गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना दोस्त बताते हुए 2 अप्रैल को ट्रंप ने भारत पर 26 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया, जो 9 अप्रैल 2025 से लागू होगा। टैरिफ ऐलान के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था और आम नागरिकों के जीवन पर संभावित प्रभावों को लेकर चर्चा छेड़ गई है।
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ घोषणा ने वैश्विक व्यापार में एक नया तनाव पैदा कर दिया है। हालांकि भारत को लेकर फिलहाल ट्रंप थोड़ा नरमी का रुख दिखा रहे हैं और संभावना भी जताई जाने लगी हैं कि आने वाले दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति रियायत की घोषणा कर सकते हैं। बहरहाल, टैरिफ के ऐलान के बाद दुनियाभर के शेयर बाजारों में खलबली मची हुई है।
अमेरिका से होने वाला निर्यात घटेगा
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स का अनुमान है कि इन टैरिफ की वजह से अगले वित्त वर्ष में भारत से अमेरिका को होने वाला निर्यात 7.3 बिलियन डॉलर कम हो सकता है। ट्रंप ने वेनेजुएला से तेल खरीदने वाले देशों पर भी 25% टैरिफ लगाने का फैसला किया है, ये टैरिफ भी भारत को नुकसान पहुंचाएगा, क्योंकि भारत, वेनेजुएला से कच्चा तेल खरीद रहा है। भारत को ट्रंप "सबसे ज्यादा टैरिफ लगाने वाला देश" कह चुके हैं। 2024 में भारत और अमेरिका के बीच 120 बिलियन डॉलर से ज्यादा का कारोबार हुआ था। इसमें भारत का ट्रेड सरप्लस 36 बिलियन डॉलर था।
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भारत को उम्मीद कम होगा टैरिफ
आपको याद दिला दें कि कुछ दिन पहले ट्रंप ने संकेत दिया था कि "भारत के साथ सब ठीक हो जाएगा"। हालांकि उन्होंने इस मामले में ज्यादा जानकारी नहीं दी थी। इसके अलावा उन्होंने कुछ देशों को टैरिफ में राहत देने का इशारा भी किया था। हालांकि इस संदर्भ में भी अधिक जानकारी नहीं दी गई। भारतीय वाणिज्य मंत्रालय की ओर से बताया गया है कि सितंबर, 2025 तक ट्रेड डील के पहले हिस्से को पूरा करने पर अमेरिका के साथ सहमति बन गई है। इस बातचीत के लिए अमेरिका से एक दल नई दिल्ली आया हुआ था। दोनों पक्षों के बीच मार्केट तक पहुंच सुनिश्चित करने, टैरिफ कम करने, और सप्लाई चेन मजबूत करने पर चर्चा हुई।
भारत की ओर से ट्रंप को रिझाने की कोशिश
भारत ने पिछले दो महीनों में हाई-एंड मोटरसाइकिलों और बरबन व्हिस्की पर टैरिफ घटाए हैं ताकि ट्रंप की ओर से लगाए गए कड़े प्रतिबंधों में थोड़ी छूट मिल सके। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि ट्रंप को रिझाने के लिए भारत की ओर से अमेरिका की ऑनलाइन सर्विसेज, गाड़ियों, इलेक्ट्रॉनिक्स, और मेडिकल सेवाओं पर भी टैरिफ कम किया जा सकता है। ट्रंप भी जानते हैं कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अमेरिका उसका सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है।
भारत के सामने अमेरिका से इतर देखने की चुनौती
निसंदेह, ट्रंप का अमेरिका फर्स्ट एजेंडा भारत के लिए चुनौतियां खड़ी कर रहा है। टैरिफ वॉर सिर्फ भारत को ही नुकसान नहीं पहुंचा रहा। ट्रंप ने चीन पर भी भारी टैरिफ लगा रखे हैं। इन टैरिफ के चलते भारत में मैन्युफैक्चरिंग और नौकरियों पर असर पड़ सकता है, खासकर छोटे और मझले उद्योगों के मामले में। भारत मेडिकल उपकरणों, कपड़े, और आईटी सेवाओं के मामले में समझौता चाहता है। अगर दोनों देशों के बीच सितंबर 2025 तक डील हो जाती है, तो भारतीय व्यापारियों को कुछ राहत की उम्मीद है।
जानें ट्रैरिफ का क्या असर होगा?
अमेरिका ने भारत से आयात होने वाले सामानों पर 26 प्रतिशत शुल्क बढ़ाने का फैसला किया है। इसका असर आम भारतीय पर कई स्तरों पर पड़ सकता है, जिसमें रोज़मर्रा की वस्तुओं की कीमतों से लेकर रोज़गार और व्यापार तक शामिल हैं। सबसे पहले, भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले प्रमुख उत्पादों पर असर पड़ेगा। भारत अमेरिका को आभूषण, कपड़ा, दवाइयाँ, ऑटो पार्ट्स और कृषि उत्पाद जैसे झींगा और प्रोसेस्ड फूड निर्यात करता है।
ट्रैरिफ बढ़ने से अमेरिकी बाजार में बढे़ंगी कीमत
टैरिफ बढ़ने से इन उत्पादों की कीमतें अमेरिकी बाज़ार में बढ़ेंगी, जिससे उनकी मांग कम हो सकती है। इससे भारतीय निर्यातकों को नुकसान होगा, खासकर छोटे और मझोले उद्यमों को, जो अमेरिकी बाज़ार पर निर्भर हैं। अगर निर्यात कम हुआ, तो इन उद्योगों में काम करने वाले लाखों भारतीय श्रमिकों की नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। उदाहरण के लिए, कपड़ा और आभूषण उद्योग में असंख्य कारीगर और मज़दूर कार्यरत हैं, और मांग घटने से उनकी आजीविका प्रभावित होगी।
आयात होगा प्रभावित
भारत अमेरिका से तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, सर्किट और अन्य उच्च-तकनीकी उत्पाद आयात करता है। अगर भारत जवाबी टैरिफ लगाता है, तो ये सामान भारत में महंगा हो जाएगा। आम भारतीय के लिए इसका मतलब है कि मोबाइल फोन, लैपटॉप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की कीमतें बढ़ सकती हैं। साथ ही, पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि से परिवहन लागत बढ़ेगी, जिसका असर खाद्य पदार्थों और रोज़मर्रा की वस्तुओं की कीमतों पर भी पड़ेगा। मध्यम वर्ग, जो इन चीज़ों पर निर्भर है, अपनी जेब पर अतिरिक्त बोझ महसूस करेगा।
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भारतीय अर्थव्यवस्था पर अप्रत्यक्ष असर
टैरिफ का अप्रत्यक्ष असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत की जीडीपी में मामूली गिरावट (0.1-0.6%) आ सकती है। अगर अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई, तो सरकारी योजनाओं और सब्सिडी पर भी असर पड़ सकता है, जो गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग के लिए जीवन रेखा हैं। उदाहरण के लिए, खाद्य सब्सिडी या मुफ्त राशन जैसी योजनाओं में कटौती हुई, तो गांवों और छोटे शहरों में रहने वाले लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।
जानते हैं ट्रंप क्यों लगा रहे हैं टैरिफ?
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने टैरिफ को अपनी इकोनॉमिक पॉलिसी के केंद्र में रखा है। वो अमेरिका में ट्रेड बैलेंस लाना चाहते हैं और अमेरिका के आयात और निर्यात के गैप को कम करना चाहते हैं। वर्ष 2024 में अमेरिका करीब 900 अरब अमेरिकी डॉलर के व्यापार घाटे में था। चार मार्च को ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस में कहा था, "अभी तक पृथ्वी पर मौजूद हर देश ने हमें दशकों तक लूटा है, लेकिन अब हम आगे ऐसा नहीं होने देंगे।" ट्रंप कहते हैं कि लंबे समय में टैरिफ़ से अमेरिका की निर्माण क्षमता में इज़ाफा होगा और नौकरियां बचेंगी। इसके साथ ही टैक्स रेवेन्यू और इकोनॉमिक ग्रोथ में इज़ाफ़ा होगा।
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चीन क्या टैरिफ वॉर का जवाब देगा?
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ घोषणा का सबसे बड़ा प्रभाव चीन की अर्थव्यवस्था पर पड़ने की संभावना है। ट्रंप ने हाल ही में विभिन्न देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लागू करने की घोषणा की, जिसमें चीन से आयातित सामानों पर 34% तक का शुल्क शामिल है। इसका चीन पर क्या असर होगा और क्या चीन इसका जवाब देगा? यह एक जटिल सवाल है जिसका विश्लेषण आर्थिक और राजनीतिक दोनों दृष्टिकोणों से करना जरूरी है।
चीन की अर्थव्यवस्था निर्यात पर बहुत निर्भर
चीन की अर्थव्यवस्था निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है, और अमेरिका इसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है। 2024 में अमेरिका के साथ चीन का व्यापार लगभग 582.4 बिलियन डॉलर का था, जिसमें से 438.9 बिलियन डॉलर का आयात अमेरिका ने चीन से किया। ट्रंप के टैरिफ से चीनी सामानों की कीमतें अमेरिकी बाजार में बढ़ेंगी, जिससे मांग में कमी आ सकती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर टैरिफ लंबे समय तक लागू रहते हैं, तो चीन का अमेरिका को निर्यात 25% से 33% तक कम हो सकता है। यह चीन के लिए एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि निर्यात उसकी अर्थव्यवस्था का पांचवां हिस्सा है।
टैरिफ से चीनी फैक्ट्रियों की गति धीमी पड़ सकती है, जिससे रोजगार और उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ेगा। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, जो "दुनिया की फैक्ट्री" के रूप में जाना जाता है, विशेष रूप से प्रभावित होगा। हैरी मर्फी क्रूज, मूडीज एनालिटिक्स के अर्थशास्त्री
क्या चीन इसका जवाब देगा?
हालिया बयानों पर गौर करें तो जवाब हां में है। चीन ने पहले ही घोषणा की है कि वह 10 अप्रैल 2025 से अमेरिकी उत्पादों पर 34% टैरिफ लगाएगा। इसके साथ ही, उसने दुर्लभ-पृथ्वी धातुओं (रेयर अर्थ मेटल्स) के निर्यात पर नियंत्रण की बात कही है, जो अमेरिकी तकनीकी उद्योग के लिए महत्वपूर्ण हैं। बीजिंग ने इसे "अंतरराष्ट्रीय व्यापार मानदंडों का उल्लंघन" करार देते हुए अमेरिका से टैरिफ हटाने की मांग की है।
चीन के विदेश मंत्रालय और दूतावास ने साफ कहा है कि वह "हर तरह के युद्ध" के लिए तैयार है। इससे पहले भी, ट्रंप के पहले कार्यकाल में चीन ने अमेरिकी कृषि उत्पादों पर टैरिफ लगाकर जवाब दिया था। इस बार भी वह जवाबी कार्रवाई करेगा, लेकिन उसकी रणनीति सावधानीपूर्वक होगी, ताकि अपनी अर्थव्यवस्था को और नुकसान न हो।
यूरोपीय देश कैसे करेंगे टैरिफ वार का सामना
टैरिफ से वैश्विक व्यापार पर गहरा प्रभाव डालने की संभावना जताई है, खासकर यूरोपीय देशों पर। इस नीति के तहत, अमेरिका ने सभी आयात पर 10% का आधारभूत टैरिफ लगाया है, जो 5 अप्रैल से प्रभावी हो गया, जबकि यूरोपीय संघ (ईयू) जैसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर 20% का अतिरिक्त टैरिफ 9 अप्रैल से लागू होगा। इसके अलावा, मोटर वाहनों पर 25% का विशेष टैरिफ भी घोषित किया गया है। यह कदम अमेरिकी अर्थव्यवस्था को संरक्षण देने और व्यापार घाटे को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है, लेकिन इसके यूरोपीय देशों पर दूरगामी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं।
कई यूरोपीय देश होंगे प्रभावित
यूरोपीय संघ अमेरिका को ऑटोमोबाइल, मशीनरी, रसायन और विलासिता के सामानों जैसे उत्पादों का बड़े पैमाने पर निर्यात करता है। 20% टैरिफ के साथ-साथ वाहनों पर 25% शुल्क से जर्मनी जैसे देश, जो ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए प्रसिद्ध हैं, विशेष रूप से प्रभावित होंगे। जर्मन कार निर्माता जैसे वोक्सवैगन, बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज को अपने निर्यात की लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है। इससे न केवल उत्पादन में कटौती होगी, बल्कि रोजगार पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि ये कंपनियाँ लाखों लोगों को नौकरियाँ प्रदान करती हैं।
जवाबी टैरिफ लगाने की तैयारी
यूरोपीय संघ ने संकेत दिया है कि वह जवाबी टैरिफ लगाकर प्रतिक्रिया देगा, जैसा कि उसने पहले ट्रंप के स्टील और एल्यूमीनियम टैरिफ के जवाब में $28 बिलियन के शुल्क लगाए थे। इस बार भी, अगर यूरोपीय संघ अमेरिकी आयात जैसे कृषि उत्पादों, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा पर शुल्क बढ़ाता है, तो यूरोप में किराने का सामान, परिवहन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी। यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने इसे "वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका" करार दिया है, यह चेतावनी देते हुए कि सबसे कमजोर नागरिक सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
कच्चा माल और महंगा होगा
international news यूरोपीय देश अमेरिका से कच्चे माल और अर्ध-निर्मित उत्पादों का आयात करते हैं, जो अब महंगे हो जाएंगे। इससे उत्पादन लागत बढ़ेगी और छोटे व्यवसायों पर दबाव पड़ेगा। उदाहरण के लिए, इटली और फ्रांस जैसे देश, जो विलासिता के सामानों और वाइन के लिए जाने जाते हैं, अमेरिकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी खो सकते हैं। साथ ही, शेयर बाजारों में पहले से ही गिरावट देखी जा रही है—इटली में 6.5%, जर्मनी में 4.9%, और यूके में 4.9% की गिरावट इसका संकेत है।
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किस देश पर कितना रेसिप्रोकल टैरिफ
चीन पर अमेरिका ने 34% टैरिफ लगाया है, जो चीन द्वारा अमेरिकी सामानों पर लगाए गए 67% शुल्क का आधा है। भारत पर 26% टैरिफ लागू किया गया, क्योंकि भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों पर 52% तक शुल्क वसूलता है। यूरोपीय संघ (EU) पर 20% टैरिफ है, जो उसके 50% शुल्क के जवाब में है। जापान पर 24% टैरिफ लगाया गया, क्योंकि जापान अमेरिकी चावल पर 700% तक शुल्क लेता है। कनाडा पर 30% टैरिफ है, जो उसके 300% शुल्क (मक्खन और पनीर पर) के जवाब में है।
वियतनाम पर 46%, दक्षिण कोरिया पर 25%, थाईलैंड पर 36%, और ताइवान पर 32% टैरिफ लगाया गया है, जो इन देशों के उच्च शुल्कों के अनुपात में है। ब्रिटेन पर 10% और ब्राजील पर भी 10% टैरिफ लागू किया गया। म्यांमार जैसे देश पर 44% टैरिफ है, जबकि रूस को इस सूची से छूट दी गई।
अन्य देशों में बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत और कंबोडिया पर 49 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है। ये देश अमेरिकी उत्पादों पर क्रमशः 74 प्रतिशत, 90 प्रतिशत, और इससे भी अधिक शुल्क वसूलते हैं। पाकिस्तान पर 39 प्रतिशत टैरिफ लागू किया गया है, जो उसके 58 प्रतिशत शुल्क का जवाब है। इसके अलावा, कुछ छोटे देशों जैसे लेसोथो (अफ्रीका) पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है।
कनाडा और मेक्सिको जैसे पड़ोसी देशों पर भी क्रमशः 25 प्रतिशत और 25 प्रतिशत टैरिफ प्रस्तावित हैं। कनाडा अमेरिकी डेयरी उत्पादों पर 300 प्रतिशत तक शुल्क लेता है, जिसके जवाब में यह कदम उठाया गया। कई अन्य देशों जैसे ब्रिटेन, सिंगापुर, और ऑस्ट्रेलिया पर 10 प्रतिशत का आधारभूत टैरिफ लागू होगा।