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इस बात को हम सब जानते हैं कि कोई भी देश तभी प्रगति कर सकता है, जब उसकी नींव मजबूत हो और यह नींव तैयार करते हैं हमारे श्रमिक। चाहे वह सड़कें बनाने वाले हों, भवन निर्माण में लगे लोग हों, खेतों में पसीना बहाने वाले किसान हों, फैक्ट्रियों में दिन-रात काम करने वाले कर्मचारी हों, या फिर छोटे दुकानदार और सफाई कर्मचारी–हर मजदूर अपने-अपने स्तर पर समाज को आगे ले जाने में जुटा हुआ है। कभी आपने गौर किया है कि जब आप सुबह उठते हैं, तब तक दूध वाला, सफाईकर्मी, अख़बार वाला – सभी अपना काम कर चुके होते हैं। हम जिन सुविधाओं का उपभोग करते हैं –बिजली, पानी, यातायात, भोजन–हर एक के पीछे अनगिनत मजदूरों का परिश्रम छुपा होता है।
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत
मजदूर दिवस भारत में श्रमिकों के संघर्ष, सम्मान और अधिकारों का प्रतीक है। 1923 में चेन्नई में इसकी शुरुआत के बाद से यह दिन मजदूरों की एकजुटता और उनके कल्याण के लिए महत्वपूर्ण रहा है। यह दिन न केवल मजदूरों के योगदान को सराहने का अवसर है, बल्कि उनकी समस्याओं को उजागर करने और समाधान खोजने का भी मंच है। हालांकि, भारत में मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। सरकार, समाज, और मजदूर संगठनों को मिलकर उचित वेतन, सुरक्षित कार्यस्थल, और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करने होंगे। मजदूरों के बिना किसी राष्ट्र का विकास असंभव है, और मजदूर दिवस हमें इस सत्य की याद दिलाता है।
1 मई 1923 को चेन्नई में मनाया गया था
भारत में मजदूर दिवस पहली बार 1 मई 1923 को चेन्नई (तब मद्रास) में मनाया गया था। इसकी शुरुआत लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान के नेता सिंगारवेलु चेट्टियार ने की थी। उन्होंने मजदूरों के हक और अधिकारों की मांग को लेकर मद्रास हाई कोर्ट के सामने एक सभा आयोजित की, जिसमें पहली बार भारत में 'मई दिवस' मनाया गया। इस अवसर पर लाल झंडे का उपयोग मजदूरों की एकजुटता और उनके संघर्ष के प्रतीक के रूप में किया गया था। यह आयोजन भारत में मजदूर आंदोलन की शुरुआत का प्रतीक था, जिसका नेतृत्व वामपंथी और समाजवादी संगठनों ने किया।
इससे पहले, मजदूर दिवस की वैश्विक शुरुआत 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में हुई थी, जब मजदूरों ने 15-15 घंटे की कठिन कार्य अवधि को कम करके 8 घंटे करने की मांग को लेकर हड़ताल की थी। इस आंदोलन के दौरान हिंसक घटनाएं हुईं, जिनमें कई मजदूरों की जान चली गई। 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। भारत ने इस वैश्विक परंपरा को 1923 में अपनाया।
मजदूर दिवस क्यों मनाया जाता है?
मजदूर दिवस का मुख्य उद्देश्य श्रमिकों और मजदूरों के योगदान को सम्मान देना, उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और उनके शोषण को रोकना है। यह दिन मजदूरों के संघर्षों, बलिदानों और देश के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को याद करने का अवसर प्रदान करता है। मजदूर किसी भी देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे की रीढ़ होते हैं। चाहे वह निर्माण, कृषि, उद्योग या सेवा क्षेत्र हो, मजदूरों का परिश्रम हर क्षेत्र में प्रगति का आधार है।
मजदूर दिवस मनाने के पीछे निम्नलिखित प्रमुख कारण हैं:
श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा: यह दिन मजदूरों को उनके अधिकारों, जैसे उचित वेतन, सुरक्षित कार्यस्थल, और सामाजिक सुरक्षा, के प्रति जागरूक करता है।
शोषण के खिलाफ आवाज: मजदूर दिवस मजदूरों के शोषण, जैसे लंबे कार्य घंटे, कम मजदूरी, और असुरक्षित कार्य परिस्थितियों के खिलाफ आवाज उठाने का अवसर है।
एकजुटता का प्रतीक: यह दिन मजदूर संगठनों को एकजुट करके उनकी मांगों को सरकार और समाज के सामने रखने का मंच प्रदान करता है।
सामाजिक न्याय: मजदूर दिवस सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देता है, ताकि समाज में मजदूरों को वह सम्मान और स्थान मिले जिसके वे हकदार हैं।
मजदूर दिवस का महत्व
श्रमिकों की उपलब्धियों का सम्मान: मजदूर दिवस पर विभिन्न क्षेत्रों में मजदूरों के योगदान को सराहा जाता है। यह उनके आत्मसम्मान को बढ़ाता है।
नीतिगत सुधारों का अवसर: इस दिन सरकारें और संगठन मजदूरों के कल्याण के लिए नई योजनाओं और नीतियों की घोषणा करते हैं, जैसे सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, और मातृत्व लाभ।
जागरूकता और शिक्षा: मजदूर दिवस पर रैलियां, सेमिनार, और मीडिया के माध्यम से मजदूरों के अधिकारों और उनकी समस्याओं के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है।
वैश्विक एकजुटता: यह दिन विश्व भर के मजदूरों को एक मंच पर लाता है, जिससे वैश्विक स्तर पर श्रमिक आंदोलनों को बल मिलता है।
भारत में मजदूरों की स्थिति
भारत में मजदूरों की स्थिति एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है। भारत एक विकासशील देश है, जहां अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र पर निर्भर है। लगभग 90% से अधिक श्रमिक असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं, जहां उन्हें सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ, या स्थायी रोजगार की गारंटी नहीं मिलती। निम्नलिखित बिंदु भारत में मजदूरों की स्थिति को दर्शाते हैं:
असंगठित क्षेत्र की चुनौतियां : असंगठित क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी, निश्चित कार्य घंटे, या सुरक्षित कार्यस्थल की सुविधा नहीं मिलती। दिहाड़ी मजदूर, निर्माण श्रमिक, और कृषि मजदूर इस श्रेणी में आते हैं।
कम मजदूरी और शोषण : कई मजदूरों को न्यूनतम मज,से भी कम वेतन मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या और भी गंभीर है, जहां मजदूरों को मौसमी रोजगार पर निर्भर रहना पड़ता है।
बाल श्रम: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बाल श्रम एक गंभीर समस्या है, और कोविड-19 महामारी ने इस स्थिति को और बदतर किया है।
कानूनी संरक्षण: भारतीय संविधान में मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए कई प्रावधान हैं, जैसे अनुच्छेद 23 (बाल श्रम और बंधुआ मजदूरी पर रोक) और अनुच्छेद 43 (उचित कार्य परिस्थितियां)। इसके अलावा, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा संहिता 2020 जैसे कानून लागू किए गए हैं। फिर भी, इन कानूनों का कार्यान्वयन कमजोर है।
महिला श्रमिकों की स्थिति: महिला मजदूरों को पुरुषों की तुलना में कम वेतन और असुरक्षित कार्य परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत 26 सप्ताह का सवैतनिक अवकाश जैसी सुविधाएं दी गई हैं, लेकिन इनका लाभ ज्यादातर संगठित क्षेत्र तक सीमित है।
मजदूर संगठनों की भूमिका: भारत में मजदूर संगठन और ट्रेड यूनियन मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ते हैं, लेकिन उनकी पहुंच सीमित है। ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में मजदूरों को संगठित करना एक बड़ी चुनौती है।