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डिजिटल युग में रिश्तों की सच्चाई

डिजिटल दौर में तकनीक ने लोगों को जोड़ने के कई तरीके दिए हैं, लेकिन इसने रिश्तों में आत्मीयता और गहराई को प्रभावित किया है। आज बातचीत तो होती है, पर भावनात्मक जुड़ाव पहले जैसा नहीं रहा।

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YBN News
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दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। 21वीं सदी में जैसे-जैसे तकनीक ने तरक्की की है, वैसे-वैसे मानवीय संबंधों की परिभाषा भी बदलती गई है। मोबाइल, सोशल मीडिया, चैटिंग ऐप्स और वीडियो कॉल्स ने एक ओर जहाँ लोगों को करीब लाया है, वहीं दूसरी ओर रिश्तों की गहराई कहीं खोती नजर आ रही है। डिजिटल युग ने रिश्तों को तेज, आसान लेकिन कहीं न कहीं सतही भी बना दिया है।

डिजिटल कनेक्शन: आसान लेकिन अधूरा

आज हम एक क्लिक में किसी से भी जुड़ सकते हैं। व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म रिश्तों को जोड़े रखने का माध्यम बन गए हैं। लेकिन क्या सिर्फ 'हाय' या 'लाइक' करना ही भावनाओं की अभिव्यक्ति है?

समय की कमी के कारण अब फोन कॉल्स की जगह "seen" और "double tick" ने ले ली है।

भावनाएं इमोजी और GIF में बदल गई हैं।

रिश्ते अब फॉलो, अनफॉलो और ब्लॉक के बटन पर टिके हैं।

निकटता में दूरी

डिजिटल कनेक्शन के बावजूद भावनात्मक जुड़ाव कम होता जा रहा है। पहले लोग चिट्ठियों में दिल खोलकर बातें करते थे, अब टेक्स्ट में “busy” लिखकर बचा लिया जाता है। लोग साथ रहते हुए भी एक-दूसरे से दूर महसूस करते हैं क्योंकि वे एक-दूसरे की बजाय स्क्रीन से जुड़े रहते हैं। अक्सर सोशल मीडिया पर परफेक्ट रिलेशनशिप की झलक दिखती है, लेकिन हकीकत उससे अलग होती है।

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फायदे भी हैं, पर संतुलन ज़रूरी है
 लंबे दूरी के रिश्ते बनाए रखना आसान हुआ है।
 वीडियो कॉल से चेहरों की दूरी कम हुई है।
 सोशल मीडिया ने पुराने दोस्तों से जुड़ने का माध्यम बनाया।

परंतु...

Over-dependence ने रिश्तों को समय की बजाय नोटिफिकेशन पर निर्भर कर दिया है।
 भरोसे की जगह अब 'last seen' और 'online status' ने ले ली है।

रिश्तों को बचाने की ज़रूरत
डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करें, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव के साथ।

समय निकालें, आमने-सामने बैठकर बातें करें।

सोशल मीडिया पर कम, हकीकत में ज्यादा जुड़ें।

रिश्तों में भरोसे को प्राथमिकता दें, न कि स्क्रीन टाइम को।

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डिजिटल युग ने निश्चित रूप से रिश्तों को जोड़ने का एक नया माध्यम दिया है, लेकिन अगर हम सतर्क नहीं रहे, तो यही तकनीक रिश्तों में खालीपन और दूरी ला सकती है। रिश्तों की सच्चाई आज सिर्फ टेक्स्ट और इमोजी तक सीमित नहीं होनी चाहिए। हमें तकनीक का इस्तेमाल करना है, लेकिन रिश्तों को मानवीय भावनाओं से ही सजाना है।

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