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बरेली, वाईबीएन संवाददाता
बरेली। आंवला सांसद नीरज मौर्य के यूपी में निजी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की फीस निर्धारित न होने को लेकर दिए गए बयान पर बखेड़ा खड़ा हो गया है। आईएमए बरेली ने इस बयान की निंदा करते हुए सांसद से माफी मांगने की मांग की है।
दरअसल कुछ दिन पहले सांसद नीरज मौर्य ने कहा था कि डॉक्टर भगवान का स्वरूप होते हैं, लेकिन कुछ डॉक्टरों ने इस पेशे को कमाई का जरिया बना लिया है। लोग उम्मीदें लेकर उनके पास आते हैं, लेकिन उनसे मनमाने पैसे वसूले जाते हैं इसलिए डॉक्टरों से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है। सांसद नीरज मौर्य के इस बयान पर आईएमए बरेली ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
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आईएमए सचिव डॉ. रतनपाल सिंह गंगवार ने कहा कि सांसद का बयान निंदा के योग्य है। सार्वजनिक रूप से इस तरह से बयानबाजी अच्छी नहीं है। कोई एक-दो डॉक्टर ऐसा हो सकता है लेकिन इसके लिए आप सभी डॉक्टरों को गलत नहीं ठहरा सकते। कोई अगर दोषी है तो उसे पकड़े और उसके खिलाफ कार्रवाई कराएं।
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आईएमए सचिव ने कहा कि हम मरीजों को ऐसी सेवा देते हैं, जो सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं हैं। जो मरीज आर्थिक रूप से कमजोर होता है और उसके पास इलाज के पैसे नहीं होते हैं तो कम खर्च पर उसका इलाज करते हैं। उससे सिर्फ केवल नाममात्र का खर्च लिया जाता है। उन्होंने कहा कि सांसद ऐसे जिम्मेदार पद पर बैठे हैं, उन्हें सरकारी व्यवस्था सुधरवानी चाहिए न कि इस तरह की बयानबाजी करनी चाहिए।
सांसद नीरज मौर्य लंबे समय से बरेली में एम्स का मुद्दा उठाते रहे हैं। उन्होंने बदायूं में मेडिकल कॉलेज की हालात सुधारने और बरेली के 300 बेड अस्पताल का पूरी तरह संचालन न होने का मुद्दा भी संसद में उठाया था। सांसद के मुताबिक बरेली के गंभीर मरीजों को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए लखनऊ या फिर दिल्ली पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में सबसे ज्यादा दिक्कत उन लोगों को होती है, जो निजी अस्पतालों का महंगा खर्च वहन नहीं कर सकते या फिर अपना सर्वस्व लुटा बैठते हैं, ऐसे में उन्होंने बरेली में एम्स की स्थापना कराया जाना बेहद जरूरी है।
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सुप्रीम कोर्ट भी राज्य सरकारों को निजी अस्पतालों में हो रहे मरीजों का शोषण रोकने के लिए पाॅलिसी बनाने के निर्देश दे चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में राज्य सरकारों से कहा है कि वो निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर होने वाले मरीजों के शोषण को रोकने के लिए पॉलिसी बनाए। कोर्ट ने राज्यों से कहा कि वो ऐसी पॉलिसी बनाएं, जिसके चलते मरीजों और उनके तीमारदारों से गैरवाजिब पैसे न वसूला जाए।
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कैंसर पीड़ित रह चुकी एक महिला के पुत्र ने सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि निजी अस्पताल मरीजों को अस्पताल में मौजूद फार्मेसी से ही ऊंची कीमत पर दवा लेने को मजबूर करते है। उनकी मां अब कैंसर से ठीक चुकी है, लेकिन उन्हें ऊंची कीमत पर दवाइयां खरीदनी पड़ी। अस्पतालों की मनमामी को रोकने के लिए कोर्ट के दखल की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोर्ट अपनी ओर से इस मामले में दिशा-निर्देश जारी करता है तो यह निजी सेक्टर में हॉस्पिटल की बढ़ोतरी के खिलाफ होगा। सरकार इस बारे में बेहतर फैसला ले सकती है।