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बरेली,वाईबीएनसंवाददाता
बरेली। राजेंद्र नगर बरेली स्थित बांके बिहारी मंदिर में चल रही श्री मद भागवत कथा में वृंदावन धाम से पधारे आचार्य श्याम बिहारी चतुर्वेदी ने द्वितीय दिवस के कथा प्रसंग में परीक्षित के जन्म और मोक्ष की कथा सुनायी। उन्होनें कहा कि परीक्षित के जन्म की कथा को सुनने से भगवान श्री कृष्ण की कथा का उदय होता है।
श्रीकृष्ण की विदाई का शोक
परीक्षित बड़े ही महान धार्मिक परोपकारी राजा थे। एक दिन राजा परीक्षित नगर भ्रमण को गए। वहां पर उन्होंने देखा कि एक गाय और बैल जिसके सींग किसी ने काट दिए थे। गाय उस बैल की दुर्दशा को देखकर रो रही थी। बैल ने पूछा कि तुम क्यों रो रही हो। क्या मेरी दशा को देखकर के तुम तरस आ रहा है। देवी, तुम या तुम्हारा कोई प्रेमी तुम्हें छोड़कर के चला गया है। उसकी याद में रो रही हो या भगवान श्री कृष्ण अपनी लीला को संवरण करके गये।
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जब महाराज परीक्षित ने अधर्म को ललकारा
उनकी याद मे रो रही हो। गाय पृथ्वी माता है। गाय रूपी पृथ्वी ने धर्म रूपी बैल से कहा कि जब जब धर्म बढ़ता है, तब हमें अत्यन्त प्रसन्नता मिलती है। जैसे अधर्म बढ़ता है, भार उठना मुश्किल पडता है। बैल रूपी धर्म ने कहा कि देवी अभी कलयुग का राज्य आने बाला है । लोग धर्म को छोड़कर के अधर्म को पकड़ रहे हैं। हे देवी, ये तो समय का फेर है। इसमे कोई भी सोचने वाली बात नहीं है। इतने में एक काला काला पुरुष आता है और गाय और बैल को मरने लगता है। यह दृश्य देख महाराज परीक्षित ने कहा कि तुम हमारे राज्य में गाय और बैल को प्रताड़ित कर रहे हो। परीक्षित उस काले पुरुष को मारने दौड़े।
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जुआ, शराब, हिंसा और वेश्यावृत्ति: कलयुग के चार ठिकाने
उसने देखा कि जहां पर जाता हूं, वहा परीक्षित दिखाई पड रहे हैं। उसने अन्त में हाथ जोड़ करके कहा कि महाराज, मे कलयुग हूं। मेरा समय आ चुका है।,मुझे आपके राज्य में कुछ स्थान चाहिए। राजा ने कहा कि, देखिए हम आपको चार जगह देते हैं। जहां पर जुआ खेला जाता है। वहां तुम्हारा निवास है। जहां लोग शराब पीते हैं, वहां तुम्हारा निवास है।जहां वैश्यावृत्ति है, वहां पर निवास है और जहां हिंसा है, वहां पर तुम्हारा निवास है। कलयुग ने कहा कि महाराज इससे और अच्छी कोई जगह दिजिए। तब उन्होंने कहा कि जो रजोगुण से उत्पन्न सोना है। उसमें तुम्हारा निवास है। कलयुग सोने के मुकुट में बैठ गया।
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राजा परीक्षित का परिवर्तन: अहिंसक राजा से हिंसा की ओर
राजा परीक्षित कभी हिंसा नहीं करते थे। राजा परीक्षित कलयुग के प्रभाव से वह पशुओं की हिंसा करने लगे। वह समीक के आश्रम पर पहुंचे। वह भोजन पानी की याचना की समाधि में थे। जब वह नहीं बोले तो उन्होंने मरा हुआ तक्षक नाग डाल दिया और चले गए। उसी समय समीक के बेटा श्रृंगी ने जब यह देखा कि मेरे पिता का अपमान किया है। तब उसने गंगा जी का जल लेकर के श्राप दिया महाराज परीक्षित को आज से सप्तम दिवस में तक्षक के डसने से की मौत हो जाएगी। जब समीक समाधि खुली, तब सामने देख उनका बालक रो रहा था। बेटा क्यों रो रहे हो। क्या किसी ने तुम्हें सताया है।
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समीक ऋषि का उपदेश: अतिथि सेवा ही परम धर्म
उसने कहा कि महाराज परीक्षित ने आपके गले में मरा हुआ सांप डाल करके गए। आपसे भोजन पानी की याचना कर रहे थे। समीक ने कहा कि बेटा हमारे यहां कोई भी आए तो हमें भोजन देना, यह हमारा कर्तव्य है। श्रृंगी ने कहा कि हमने आज से सप्तम दिवस में तक्षक के डसने से मृत्यु होगी। समीक ने कहा कि यह तुमने अच्छा नहीं किया। तब शिष्य को भेजा। उन्होंने परीक्षित को बताया कि आपकी मृत्यु तक्षक की डसने से होगी। इसलिए आप अपनी मोक्ष का उपाय कुछ कर ले। ऐसा गुरुदेव का आदेश है। जब राजा परीक्षित गंगा के तट पर गए और अनेक ऋषियों के सामने प्रार्थना की। उन्हीं के समक्ष शुकदेव जी ने आकर के उनको सात दिन कथा सुना करके उन्हें मोक्ष प्रदान किया।