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कहानी उन विधायकों की जिन्होंने ओवैसी के 'मिशन सीमांचल' को दिया था 'करारा झटका' | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । सीमांचल की सियासत में 'दल-बदल' का खेल इतना महंगा पड़ा कि चार विधायकों का राजनीतिक भविष्य खत्म होने के कगार पर है। साल 2020 में AIMIM की टोपी पहनकर विधानसभा का चुनाव जीते, फिर 2022 में तेजस्वी की लालटेन थाम ली, मगर अब RJD ने भी टिकट नहीं दिया। यह 'ठन-ठन गोपाल' वाली स्थिति सीमांचल के मुस्लिम वोट बैंक की दिशा बदल सकती है। यह कहानी सिर्फ विधायकों के पाला बदलने की नहीं, बल्कि राजनीतिक अस्थिरता, अवसरवाद और अंततः 'ठाकुर-बनाम-कूप' वाले हाल की है।
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव ने राष्ट्रीय फलक पर एक नया ट्रेंड सेट किया। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन AIMIM ने मुस्लिम-बहुल सीमांचल में धमाकेदार एंट्री की। पार्टी ने किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार के कुछ हिस्सों वाली पांच विधानसभा सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया। AIMIM की जीत वाली सीटें अमौर, बायसी, जोकिहाट, कोचाधामन, और बहादुरगंज।
ओवैसी की इस सफलता ने राष्ट्रीय जनता दल RJD और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजा दी, जिनका मानना था कि सीमांचल का मुस्लिम वोट बैंक हमेशा उनका ‘एकमुश्त’ मतदाता रहा है। AIMIM ने खुद को 'तीसरे विकल्प' के तौर पर पेश किया, खासकर उन युवा और असंतुष्ट मुस्लिम वोटरों के बीच जो पारंपरिक दलों से निराश थे।
वफादारी बदली, किस्मत नहीं: चार विधायकों का RJD की तरफ पलायन
राजनीति में वफादारी अक्सर हितों की मोहताज होती है। 2022 में, AIMIM के पांच में से चार विधायकों ने एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने अपनी टोपी बदली, अपनी लालटेन जलाई और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली RJD में शामिल हो गए।
दल-बदल करने वाले विधायक सैयद रुकनुद्दीन अहमद बायसी, शहनवाज आलम जोकिहाट, मोहम्मद इजह़ार असफी कोचाधामन, मोहम्मद अंजर नईमी बहादुरगंज सिर्फ अमौर के विधायक और AIMIM बिहार अध्यक्ष अख्तरुल इमान, ही ओवैसी के साथ बने रहे। इस दलबदल को RJD ने अपनी 'घर वापसी' बताया और सीमांचल में अपनी ताकत मजबूत करने का दावा किया।
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RJD का 'सियासी झटका': जब टिकट कटा और सब कुछ खत्म हो गया
ये चारो विधायक शायद सोच रहे थे कि RJD का दामन थामने से उनका भविष्य सुरक्षित हो जाएगा। उन्होंने ओवैसी के साथ अपना ‘आख़िरी किला’ छोड़ दिया। लेकिन, तेजस्वी यादव ने इस बार जो किया, उसे 'सियासी डबल-क्रॉस' या 'मास्टरस्ट्रोक' कहा जा रहा है। RJD ने इन तीन विधायकों के टिकट काट दिए यह राजनीतिक झटका इतना गहरा है कि इन विधायकों को अब चुनावी मैदान से बाहर बैठना पड़ा।
यह दिखाता है कि दलबदलुओं को हमेशा नए घर में स्थायी ठिकाना नहीं मिलता । 'लाभ के लिए दलबदल' की नीति पर जनता के साथ-साथ खुद पार्टी नेतृत्व भी कभी-कभी भरोसा नहीं करता।
बायसी का विवाद: ‘पेशाब कांड’ ने किया राजनीतिक अंत
बायसी विधानसभा क्षेत्र से AIMIM के टिकट पर जीतकर RJD में शामिल हुए सैयद रुकनुद्दीन अहमद का नाम इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। उनकी राजनीति का अंत एक बड़े विवाद की वजह से हुआ। एक जेडीयू नेता के साथ मारपीट और कथित तौर पर उन्हें जबरन पेशाब पिलाने का गंभीर आरोप है। इस विवाद ने रुकनुद्दीन की सार्वजनिक छवि को इतना नुकसान पहुंचाया कि तेजस्वी यादव को उन्हें टिकट देने का जोखिम उठाना महंगा पड़ता। आरजेडी ने यहां से अब्दुस सुबाहन को मैदान में उतारा है, जबकि ओवैसी ने गुलाम सरवर को टिकट दिया है। रुकनुद्दीन अब ‘न घर के रहे न घाट के’ वाली स्थिति में आ गए हैं।
किशनगंज के तीन सीटों का बदला हुआ चुनावी समीकरण
सीमांचल की तीन सीटें, जहां दलबदल हुआ था, वहां इस बार का मुकाबला पूरी तरह त्रिकोणीय या उससे भी ज्यादा दिलचस्प हो गया है।
बहादुरगंज नए चेहरे, पुरानी लड़ाई: 2020 विजेता AIMIM मोहम्मद अंजर नईमी अब RJD में हैं।
टिकट कटा: इस बार का मुकाबला कांग्रेस के मोहम्मद मसवर आलम बनाम AIMIM के एमडी तौसीफ आलम।
RJD द्वारा अंजर नईमी का टिकट काटने से यहां कांग्रेस को सीधा फायदा मिल सकता है, क्योंकि RJD का पारंपरिक वोट और कांग्रेस का मुस्लिम/सवर्ण वोट एक हो सकता है।
कोचाधामन त्रिकोणीय संघर्ष की नई मिसाल: 2020 विजेता AIMIM मोहम्मद इजह़ार असफी अब RJD में हैं।
टिकट कटा: इस बार का मुकाबला RJD के मुजाहिद आलम बनाम AIMIM के एमडी सरवर आलम बनाम बीजेपी की बिंदा देवी।
RJD और AIMIM दोनों के उम्मीदवार मुस्लिम हैं, जिससे वोटों का बंटवारा निश्चित है। बीजेपी की बिंदा देवी को इस बंटवारे का सीधा लाभ मिल सकता है, जो इस सीट पर एक बड़ा उलटफेर कर सकता है।
बायसी RJD का साफ संदेश - ‘विवादित नेता को जगह नहीं’: 2020 विजेता AIMIM सैयद रुकनुद्दीन अहमद RJD में आए।
टिकट कटा: इस बार का मुकाबला RJD के अब्दुस सुबाहन बनाम ओवैसी के गुलाम सरवर।
रुकनुद्दीन के टिकट कटने से पार्टी ने एक साफ संदेश दिया है कि विवादित चेहरे को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हालांकि, इससे रुकनुद्दीन के समर्थक वोटर्स RJD से नाराज होकर ओवैसी या किसी अन्य विकल्प की ओर जा सकते हैं।
अमौर ओवैसी का ‘आखिरी किला’ और अख्तरुल इमान की चुनौती
इन सब उठा-पटक के बीच, अमौर की सीट AIMIM के लिए एक उम्मीद की किरण है। AIMIM के भरोसेमंद नेता अख्तरुल इमान, AIMIM बिहार अध्यक्ष ने 2020 में 94000 से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी। मुकाबला कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान और जेडीयू की सबा जफर से है।
सियासी महत्व: अगर अख्तरुल इमान यह सीट बचा पाते हैं, तो यह ओवैसी के लिए सीमांचल में ‘अस्तित्व’ का सवाल होगा, जो दलबदल के बाद भी पार्टी की प्रासंगिकता को स्थापित करेगा।
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सीमांचल का राजनीतिक भविष्य हवा किस ओर बहेगी?
सीमांचल में दलबदलुओं के टिकट कटने से एक बड़ा राजनीतिक शून्य पैदा हो गया है। यह घटना दो अहम सवाल उठाती है।
जनता का भरोसा: बार-बार पार्टी बदलने वाले विधायकों पर जनता कितना भरोसा करेगी? क्या यह ‘पार्टी-बदलुओं’ के लिए एक सबक होगा?
मुस्लिम वोट बैंक का ध्रुवीकरण: RJD के इस कदम से क्या मुस्लिम वोट बैंक पर कोई असर पड़ेगा?
RJD की रणनीति: RJD ने यह दिखाकर कि वह दलबदलुओं और विवादित नेताओं को आसानी से स्वीकार नहीं करती, अपनी 'विश्वसनीयता' को मजबूत करने की कोशिश की है।
ओवैसी की वापसी की उम्मीद: दलबदलुओं के खाली हुए स्थान और RJD से असंतुष्ट हुए वोटरों पर ओवैसी की पार्टी फिर से अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश करेगी।
NDA को फायदा: मुस्लिम वोटों के इस विभाजन का सीधा लाभ बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को मिल सकता है, जैसा कि अक्सर त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबले में होता है।
सीमांचल की यह कहानी सिर्फ बिहार की नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति के बदलते चेहरे का प्रतीक है। अवसरवादिता और तात्कालिक लाभ के लिए किए गए राजनीतिक कदम अक्सर लंबे समय में घातक साबित होते हैं।
इन विधायकों का 'न घर के न घाट का' हो जाना इस बात का स्पष्ट उदाहरण है। इस बार का चुनाव दलबदलुओं को सबक सिखाने वाला हो सकता है, और यही सीमांचल की राजनीति का सबसे बड़ा 'खेला' है।
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