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बिहार चुनाव 2025: Owaisi का वो सबसे ताकतवर सिपाही जिसने उड़ा दी RJD-कांग्रेस की नींद!

सीमांचल का शेर अख्तरुल इमान की AIMIM ने RJD-कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा है। 'मुस्लिम उपमुख्यमंत्री' की मांग और विकास के नारों से बिहार चुनाव त्रिकोणीय लगता है। जानिए ओवैसी के सबसे ताकतवर सिपाही ने कैसे महागठबंधन की नींद उड़ा रखी है?

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Ajit Kumar Pandey
बिहार चुनाव 2025: Owaisi का वो सबसे ताकतवर सिपाही जिसने उड़ा दी RJD-कांग्रेस की नींद! | यंग भारत न्यूज

बिहार चुनाव 2025: Owaisi का वो सबसे ताकतवर सिपाही जिसने उड़ा दी RJD-कांग्रेस की नींद! | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बिहार की राजनीति में सीमांचल हमेशा से निर्णायक रहा है, लेकिन इस बार सियासी पारा AIMIM के अख्तरुल इमान ने बढ़ा दिया है। ओवैसी के इस सबसे ताकतवर सिपाही को 'सीमांचल का शेर' क्यों कहा जाता है? कैसे उसकी एंट्री ने RJD और कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में बड़ी सेंध लगा दी है? मुस्लिम उपमुख्यमंत्री के नारे से लेकर विकास के मुद्दों तक, सब कुछ जानिए यंग भारत न्यूज के इस एक्सप्लेनर में कि आखिर  अख्तरुल इमान का वह मास्टरप्लान क्या है जिसने बिहार चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया। 

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का घमासान केवल पटना तक सीमित नहीं है। सूबे के उत्तर-पूर्वी छोर पर स्थित सीमांचल की सियासत ने इस बार अलग ही करवट ले ली है। यह वह इलाका है जहां राजनीतिक हवा का रुख अक्सर पूरे राज्य के नतीजों को प्रभावित करता है। और इस बार इस हवा के सबसे बड़े वाहक बनकर उभरे हैं AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान। 

अख्तरुल इमान की धमक ने दशकों से सीमांचल के मुस्लिम-यादव M-Y समीकरण पर राज करने वाले महागठबंधन RJD-कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। लेकिन, सवाल यह है कि अख्तरुल इमान में ऐसा क्या खास है जो उन्हें बिहार की राजनीति का इतना निर्णायक चेहरा बना रहा है? कैसे एक क्षेत्रीय नेता ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को बिहार की जनता के बीच एक मजबूत विकल्प के तौर पर स्थापित कर दिया? 

वो आवाज़ जो हाशिये के लोगों की पहचान बनी 

बिहार की मिट्टी ने हमेशा जयप्रकाश नारायण, लालू यादव, और नीतीश कुमार जैसे बड़े नेताओं को जन्म दिया है, जिन्होंने जनता की आवाज़ को बुलंद किया है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इसी फेहरिस्त में अब एक नाम तेज़ी से जुड़ रहा है— अख्तरुल इमान। इनका राजनीतिक सफर आरजेडी RJD से शुरू हुआ। उन्होंने अपनी राजनीति का आधार गरीबों, पिछड़ों और विशेष रूप से मुसलमानों की समस्याओं को बनाया। 

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अख्तरूल इमान की साफगोई, तेवर और मुद्दों पर उनकी स्पष्टता ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। RJD के साथ रहते हुए भी वो 'स्पेशल पैकेज' की मांग करते थे, लेकिन जब उन्हें लगा कि उनकी आवाज़ अनसुनी हो रही है, तो उन्होंने बड़ा फैसला लिया। 

बिहार चुनाव 2025: Owaisi का वो सबसे ताकतवर सिपाही जिसने उड़ा दी RJD-कांग्रेस की नींद! | यंग भारत न्यूज
बिहार चुनाव 2025: Owaisi का वो सबसे ताकतवर सिपाही जिसने उड़ा दी RJD-कांग्रेस की नींद! | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

RJD का दामन छोड़ ओवैसी का साथ, AIMIM को बिहार में नई पहचान 

यह बिहार की राजनीति में एक निर्णायक मोड़ था जब अख्तरुल इमान ने आरजेडी को छोड़कर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM का दामन थामा। यह केवल दल-बदल नहीं था, बल्कि सीमांचल की मुस्लिम राजनीति के नेतृत्व में एक बड़े बदलाव का संकेत था। AIMIM को दक्षिण भारत की पार्टी माना जाता था, लेकिन अख्तरुल इमान ने इसे बिहार की जमीनी हकीकत से जोड़ा। उनकी मेहनत 2020 के विधानसभा चुनावों में रंग लाई जब AIMIM ने सीमांचल की पांच विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की। उस दिन पूरे बिहार में हलचल मच गई। 

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राजनीतिक पंडितों ने इसे 'ओवैसी की दहाड़' कहा, लेकिन उस दहाड़ की असली गूंज अख्तरुल इमान की स्थानीय नेतृत्व क्षमता में निहित थी। लोग उन्हें 'सीमांचल का शेर' कहने लगे। 

सीमांचल का दर्द: अख्तरुल इमान का हथियार 

असदुद्दीन ओवैसी को उनके समर्थक भले ही 'दक्षिण का शेर' कहते हों, लेकिन बिहार में उनके प्रतिनिधि और 'शेर' हैं अख्तरुल इमान। उन्होंने अपनी राजनीति को धर्म तक सीमित नहीं रखा, बल्कि सीमांचल के वास्तविक मुद्दों बेरोजगारी शिक्षा और रोज़गार के अवसरों की कमी पर फोकस किया।

बाढ़ और कटाव: हर साल आने वाली विनाशकारी बाढ़ और कोसी नदी का कहर। 

विकास का अभाव: सड़कों, स्कूलों, और स्वास्थ्य सुविधाओं की दयनीय स्थिति। 

पलायन: रोज़गार के लिए लोगों का दूसरे राज्यों की ओर पलायन। 

अख्तरुल इमान ने विधानसभा में बार-बार यह सवाल उठाया कि सीमांचल को 'स्पेशल पैकेज' क्यों नहीं मिलता और विकास योजनाएं यहां तक क्यों नहीं पहुंचतीं हैं। 

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सीधा सवाल: अख्तरुल इमान ने विधानसभा में कहा था, “हम सिर्फ वोट बैंक नहीं, इंसान हैं, और बिहार के नागरिक हैं। हमें भी हक चाहिए, हिस्सेदारी चाहिए।” 

ओवैसी का 'डबल-गेम' मुस्लिम उपमुख्यमंत्री का दांव 

इस बार के चुनाव में अख्तरुल इमान और AIMIM ने एक और बड़ा दांव खेला है। उन्होंने महागठबंधन पर सीधा हमला करते हुए मुस्लिम उपमुख्यमंत्री बनाने की मांग उठाई है। AIMIM का आरोप है वोट चाहिए, हिस्सेदारी नहीं महागठबंधन 19 परसेंट मुस्लिम आबादी का वोट तो चाहता है, लेकिन उन्हें राजनीतिक हिस्सेदारी जैसे उप-मुख्यमंत्री पद देने को तैयार नहीं है। 

2% vs 19% पर आवैसी का दावा: उनका कहना है कि 2% आबादी वाले समुदायों से उप-मुख्यमंत्री बन सकता है, तो 19% वाले क्यों नहीं? 

यह नारा सीधे तौर पर उन मुस्लिम युवाओं और शिक्षित वर्ग को आकर्षित कर रहा है, जो लंबे समय से खुद को सिर्फ 'वोट बैंक' समझे जाने से नाखुश हैं। यह राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सम्मान की लड़ाई का रूप ले चुका है। 

बिहार चुनाव 2025: Owaisi का वो सबसे ताकतवर सिपाही जिसने उड़ा दी RJD-कांग्रेस की नींद! | यंग भारत न्यूज
बिहार चुनाव 2025: Owaisi का वो सबसे ताकतवर सिपाही जिसने उड़ा दी RJD-कांग्रेस की नींद! | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

क्या अख्तरुल इमान 'वोट कटवा' हैं या विकल्प? 

AIMIM पर अक्सर यह आरोप लगता है कि वह केवल वोट कटवा पार्टी है, जो धर्म के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण करके बीजेपी को फायदा पहुंचाती है। यह आरोप मुख्य रूप से RJD और कांग्रेस की ओर से लगाया जाता है, क्योंकि सीमांचल में AIMIM का उदय सीधे तौर पर उनके पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक को नुकसान पहुंचाता है। 

लेकिन, अख्तरुल इमान इस आरोप को सिरे से खारिज करते हैं। उनका जवाब है कि “जो भूखा है, उसका कोई मजहब नहीं होता। हमारी लड़ाई रोटी, शिक्षा और इज्जत के लिए है। हम सिर्फ मजलूम की राजनीति करते हैं, मुसलमान की नहीं।” 

अख्तरुल इमान के अनुसार, वह एक विकल्प पेश कर रहे हैं- एक ऐसा विकल्प जो विकास और हिस्सेदारी की बात करता है, न कि केवल भावनात्मक निर्भरता की। यह एक तरह से M-Y समीकरण के Y यादव के बिना M मुस्लिम को सशक्त बनाने का प्रयास है। 

सीमांचल वह किला जहां से बिहार का ताज तय होता है 

सीमांचल, जिसे कोसी-किशनगंज-पूर्णिया-कटिहार बेल्ट भी कहते हैं, भौगोलिक और राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

सीमांचल की चुनावी अहमियत बड़ी आबादी: यह मुस्लिम बहुल इलाका है, जहां बड़ी संख्या में बंगाली और अन्य समुदाय भी रहते हैं। 

M-Y का आधार: पारंपरिक रूप से यह इलाका RJD-कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ रहा है। 

साल 2020 का सबक: 2020 में AIMIM की पांच सीटों पर जीत ने साबित किया कि इस क्षेत्र में नई राजनीतिक जमीन तैयार हो चुकी है। 

यदि इस बार अख्तरुल इमान की अगुवाई में AIMIM अपने प्रदर्शन को दोहराने या सुधारने में कामयाब होती है, तो यह केवल सीमांचल की नहीं, बल्कि पूरे बिहार की राजनीति को हमेशा के लिए बदल देगा। 

महागठबंधन की हार का ठीकरा निश्चित रूप से 'सीमांचल के शेर' पर फूटेगा, जिन्होंने उनकी सबसे बड़ी कमजोरी पर वार किया है। 

अख्तरुल इमान - महज एक नेता नहीं, एक आंदोलन 

अख्तरुल इमान अब केवल एक नेता नहीं रहे, बल्कि सीमांचल की उपेक्षित जनता के लिए एक आंदोलन बन चुके हैं। उनकी राजनीति की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह 'वोट कटवा' के टैग से ऊपर उठकर खुद को 'विकल्प' के रूप में कैसे स्थापित कर पाते हैं। 

बिहार का चुनावी अखाड़ा अब दो नहीं, बल्कि तीन प्रमुख शक्तियों के बीच बंटा हुआ है। अख्तरुल इमान के तेवर बताते हैं कि सीमांचल का यह शेर आसानी से शांत नहीं होने वाला है। और शायद यही वजह है कि RJD और कांग्रेस की रातों की नींद उड़ चुकी है। 

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