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Explainer : Rahul-Tejaswi की सियासी गुगली में फंसे 'सन ऑफ मल्लाह': क्या दो कौड़ी के हुए मुकेश सहनी?

मुकेश सहनी की 'डिप्टी CM' की जिद और NDA-महागठबंधन में दोहरी चाल ने उन्हें फंसा दिया। राहुल-तेजस्वी ने भरोसा टूटने के डर से आखिरी क्षण तक सीटों पर अंधेरे में रखा। अति-महत्वाकांक्षा ने VIP प्रमुख को कौड़ी के तीन कर दिया। पढ़िए बिहार का सियासी Explainer।

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Ajit Kumar Pandey
Explainer : Rahul-Tejaswi की सियासी गुगली में फंसे 'सन ऑफ मल्लाह': क्या दो कौड़ी के हुए मुकेश सहनी? | यंग भारत न्यूज

Explainer : Rahul-Tejaswi की सियासी गुगली में फंसे 'सन ऑफ मल्लाह': क्या दो कौड़ी के हुए मुकेश सहनी? | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)

नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । बिहार की राजनीति में 'वीआईपी' प्रमुख मुकेश सहनी आज उस चौराहे पर खड़े हैं, जहां न उन्हें 'माया' मिली और न 'राम'। कभी NDA, तो कभी महागठबंधन के बीच अति-महत्वाकांक्षा की सवारी ने उन्हें बैकफुट पर धकेल दिया है। 'डिप्टी CM' पद की रट और भरोसा तोड़ने की पुरानी आदत ने कैसे तेजस्वी और राहुल गांधी को भी उनसे किनारा करने पर मजबूर किया।

बिहार की सियासत में नित नए हो प्रयोग के बीच खुद को किंगमेकर बनने का ख्वाब पाले मुकेश सहनी की सारी कवायद धरी की धरी रह गई। 'डिप्टी CM' की कुर्सी और 40 सीटों की डिमांड करने वाले सहनी अब बैकफुट पर गए हैं। पढ़ें Young Bharat News के इस एक्सप्लेनर में कैसे मुकेश सहनी अपने बिछाए जाल में फंसे और राहुल तेजस्वी ने मिलकर कर दिया बड़ा सियासी खेल!

मुकेश सहनी, जिन्हें उनके समर्थक 'सन ऑफ मल्लाह' कहते हैं, इनकी राजनीतिक कहानी अस्थिरता की मिसाल बन गई है। पटना की सियासी गलियों में इन दिनों एक कहावत उन्हें लेकर खूब चर्चा में है "दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम।" सहनी की सबसे बड़ी चूक रही है दो नावों की सवारी। एक तरफ वह महागठबंधन में थे, लेकिन दूसरी ओर NDA नेताओं से भी संपर्क साध रहे थे। राजनीति में भरोसा सबसे बड़ी पूंजी होती है और सहनी ने बार-बार इसी पूंजी को गंवाया है। यह सिर्फ वर्तमान की बात नहीं है। 

साल 2020 में भी विधानसभा चुनाव के दौरान मुकेश सहनी ने ठीक यही किया था। 3 नवंबर की सुबह 10 बजे तक महागठबंधन के साथ रहे और पलक झपकते ही लालू-तेजस्वी की आलोचना करते हुए भाजपा के खेमे में चले गए थे। भाजपा ने उन्हें 11 सीटें देकर सम्मान भी दिया, लेकिन सहनी ने फिर भी उसी पार्टी के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी, जिसने उन्हें सहारा दिया था। यह अस्थिर व्यवहार ही उनकी मौजूदा मुसीबत का मूल कारण है। 

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'बड़े' होने का भ्रम 4 MLA से कैसे टूट गया सियासी करिश्मा? 

साल 2020 में भाजपा के सहयोग से 4 विधानसभा सीटें जीतते ही मुकेश सहनी को 'बड़े' होने का भ्रम हो गया। उनके पास मात्र 4 विधायक थे, लेकिन नीतीश कुमार की उदारता से उन्हें MLC के साथ मंत्री पद भी मिल गया। यह पद वीआईपी VIP प्रमुख को जमीन पर रखने के बजाय हवा में ले गया। भ्रम इतना बढ़ गया कि उन्होंने उसी भाजपा की जड़ों को खोदना शुरू कर दिया, जिसने उन्हें सम्मान दिया था। उन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ ताल ठोंकी। लेकिन, वह भूल गए कि वह अमित शाह जैसे सियासी चाणक्य के सामने खड़े हैं। 

Explainer : Rahul-Tejaswi की सियासी गुगली में फंसे 'सन ऑफ मल्लाह': क्या दो कौड़ी के हुए मुकेश सहनी? | यंग भारत न्यूज
Explainer : Rahul-Tejaswi की सियासी गुगली में फंसे 'सन ऑफ मल्लाह': क्या दो कौड़ी के हुए मुकेश सहनी? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

BJP का 'गुगली' प्लान और सहनी का पतन 

भाजपा ने सहनी को 11 सीटें देते समय एक गुप्त शर्त रखी थी- 11 उम्मीदवारों में से 4 भाजपा के होंगे। यह शर्त सहनी के राजनीतिक करियर में 'पतन का ट्रिगर' बन गई। संयोग से भाजपा कोटे के चारों उम्मीदवार जीत गए। विडंबना यह रही कि मुकेश सहनी के अपने असली उम्मीदवार चुनाव हार गए। इतना ही नहीं खुद मुकेश सहनी भी चुनाव हार गए। जब मुकेश सहनी के तेवर बदले तो भाजपा ने जीते हुए चारों विधायकों को वापस बुला लिया।

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बावजूद इसके, नीतीश कुमार ने उन्हें ट्रायल के तौर पर दो साल के लिए MLC बनाकर मंत्री पद दिया था। अवधि पूरी होते ही MLC बनने का मौका भी नहीं मिला और अंततः मंत्री पद भी छीन लिया गया। 

Y+ सुरक्षा और मछली पार्टी: डिप्टी CM की महत्वाकांक्षा का 'साइड इफेक्ट' 

साल 2024 की लोकसभा चुनाव से पहले, भाजपा ने एक बार फिर मुकेश सहनी को माफ करके साथ लाने की कोशिश की। उन्हें Y+ श्रेणी की केंद्रीय सुरक्षा भी प्रदान की गई। लेकिन सहनी फिर से भ्रम के शिकार हो गए। उन्होंने खुद को शक्तिशाली समझते हुए सीटों पर मोलभाव Bargaining शुरू कर दिया। इधर, विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' INDIA का माहौल बना और सहनी ने तेजस्वी यादव की तरफ रुख किया। दोनों की नजदीकी इतनी बढ़ गई कि वह 'फेवीकोल के जोड़' जैसी लगने लगी। 

प्रचार का तरीका: सहनी कभी उड़नखटोले में तेजस्वी संग मछली खाते दिखे, तो कभी साथ की तस्वीरों को सार्वजनिक कर खुद को भावी महागठबंधन सरकार में डिप्टी सीएम बताने लगे। परिणाम महागठबंधन में जाते ही केंद्र ने उनकी Y+ सुरक्षा वापस ले ली। यह 'डिप्टी सीएम' बनने की अति-महत्वाकांक्षा ही थी, जिसने उन्हें सबसे बड़ा झटका दिया। 

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अब कांग्रेस और आरजेडी ने क्यों नहीं दिया उतना 'भाव'? 

कांग्रेस ने तेजस्वी को भी चुनाव नतीजे आने से पहले सीएम फेस घोषित करने से मना कर दिया। ऐसे में, मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम घोषित करने का सवाल ही नहीं उठता है। कांग्रेस सहनी की राजनीतिक औकात ताकत से भी वाकिफ थी, क्योंकि लोकसभा चुनाव में आरजेडी की 3 सीटें वह बर्बाद कर चुके थे। सहनी की 60 सीटों की रट से भी कांग्रेस बिदकी हुई थी। जब मुकेश सहनी ने डिप्टी सीएम घोषित करने की मांग उठाई, तो आरजेडी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी को सामने आकर साफ करना पड़ा कि आरजेडी ने कोई आश्वासन नहीं दिया है।

राहुल-तेजस्वी की 'मास्टरस्ट्रोक' प्लानिंग कांग्रेस ने ऐसे कसा लगाम? 

कांग्रेस ने बिहार में अपना रुतबा बढ़ाने का एक सुनियोजित प्लान बनाया। इस प्लान ने न सिर्फ तेजस्वी को अपनी शर्तों पर लाने में मदद की, बल्कि मुकेश सहनी को भी 'भाव' नहीं दिया। 

कांग्रेस की रणनीति के स्तंभ 

संगठनात्मक परिवर्तन: लालू की छाया से मुक्त होने के लिए प्रभारी कृष्णा अल्लावरू और प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम दोनों को अप्रत्याशित चेहरों से बदल दिया गया। 

राहुल की सक्रियता: राहुल गांधी की बिहार में आवाजाही बढ़ी

कन्हैया कुमार का इस्तेमाल: कन्हैया कुमार को बिहार में सक्रिय करके कांग्रेस ने 'एक तीर से दो निशाने' साधे। बिहार में बंजर पड़ी कांग्रेस की जमीन पर हरियाली लाई। तेजस्वी की कन्हैया से जग-जाहिर चिढ़ का इस्तेमाल करके यह संदेश दिया कि कांग्रेस महागठबंधन में स्वतंत्र है। 

इस स्थिति में, कांग्रेस अपनी शर्तों पर महागठबंधन को नचा रही थी। जब वह तेजस्वी जैसे कद्दावर नेता को साधने में कामयाब रही, तो मुकेश सहनी को 'भाव' देने का सवाल ही पैदा नहीं होता।

Explainer : Rahul-Tejaswi की सियासी गुगली में फंसे 'सन ऑफ मल्लाह': क्या दो कौड़ी के हुए मुकेश सहनी? | यंग भारत न्यूज
Explainer : Rahul-Tejaswi की सियासी गुगली में फंसे 'सन ऑफ मल्लाह': क्या दो कौड़ी के हुए मुकेश सहनी? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

अंतिम घड़ी का सियासी ड्रामा कौड़ी के मोल और नामांकन की मार 

अति महत्वाकांक्षा के कारण मुकेश सहनी 60 सीटों की रट से खिसक कर अब 15 सीटों पर आ गए हैं, लेकिन उन्हें अभी भी कोई यह बताने को तैयार नहीं कि उन्हें कितनी और कहां से लड़ना है। कांग्रेस ने चुप्पी साध ली है और तेजस्वी की जुबान भी नहीं खुल रही है। 

आखिरी दांव और मुश्किल की घड़ी 

मामला तब गंभीर हो गया, जब नामांकन की आखिरी तारीख से एक दिन पहले तक भी सहनी को सीटों की संख्या या क्षेत्र की जानकारी नहीं मिली। उल्टा, उनकी पसंद की कई सीटों पर आरजेडी ने अपने उम्मीदवारों को सिंबल बांट दिया। 

सहनी का रिएक्शन: मुकेश सहनी ने कड़े तेवर अपनाए और महागठबंधन से अलग होने की चेतावनी दे डाली। बदलता समय सहनी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस का समय 12 बजे से 4 बजे, और फिर 6 बजे तक बदला, इस उम्मीद में कि उनकी चेतावनी का असर होगा। असर हुआ, लेकिन बहुत देर से। राहुल गांधी ने पहल की, लेकिन अब इसका कोई फायदा नहीं था। सहनी को सीटें ऑफर की गईं, लेकिन ठीक उसी दिन, जो पहले चरण के चुनाव का आखिरी दिन था।

अब सीटें मिलें भी तो क्या? अगर सहनी को 15 सीटें मिल भी जाएं, तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती नए उम्मीदवारों का बंदोबस्त करना है। जिन सीटों के लिए उन्होंने तैयारी की थी, उन पर आरजेडी ने पहले ही सिंबल बांट दिए हैं। सहनी के सामने अब इसे स्वीकार करने के अलावा कोई चारा भी नहीं बचा है, क्योंकि NDA में भी अब उनकी कोई गुंजाइश नहीं है, जहां सीटें पहले ही बंट चुकी हैं। 

भरोसा तोड़ने का खामियाजा 

मुकेश सहनी के साथ महागठबंधन में यह सलूक इसलिए हुआ, क्योंकि आरजेडी और कांग्रेस को उनकी 'दो नावों की सवारी' की जानकारी थी। तेजस्वी और राहुल गांधी को यह भय था कि सीटों की संख्या बताते ही सहनी NDA से मोलभाव कर सकते हैं। सहनी की डिप्टी सीएम बनने की रट यह भी दिखाती थी कि उन्हें जो भी यह आश्वासन देगा, वह उधर खिसक जाएंगे। इसलिए महागठबंधन ने सहनी को आखिरी वक्त तक अंधेरे में रखा, ताकि वह किसी भी तरह NDA से सीटों की बार्गेनिंग न कर पाएं।

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