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दिल्ली में अपनी खोई सियासी जमीन तलाश कर रही कांग्रेस विधानसभा चुनाव में अपने चुनाव प्रचार अभियान का धार देने की कोशिश में हैं। आम आदमी पार्टी और भाजपा की तुलना में कांग्रेस के प्रचार का मीटर अभी काफी पीछे चल रहा है। कहा जा रहा है कि पार्टी की शीर्ष नेतृत्व भी प्रचार अभियान की सुस्त रफ्तार से नाखुश है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी शीघ्र ही प्रचार अभियान की कमान अपने हाथों में ले सकते हैं। राहुल इसी सप्ताह तीन से चार जनसभाओं को संबोधित कर सकते हैं। अब तक राहुल ने सीलमपुर में ही एक जनसभा को संबोधित किया है। हालांकि वे एम्स से लेकर मकर संक्रांति के एक कार्यक्रम में शिरकत करते अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं।
राहुल की पदयात्रा की तैयारी
पार्टी सूत्रों ने बताया कि करीब एक दर्जन विधानसभाओं में राहुल की पदयात्रा की रणनीति बनाई थी, लेकिन अब राहुल गांधी चुनिंदा पदयात्रा ही करेंगे और ज्यादा सभाओं को संबोधित करेंगे। अब तक बने कार्यक्रम के अनुसार, राहुल गांधी 22, 23, 24 और 27 जनवरी को चुनावी रैलियों को संबोधित करेंगे। राहुल की रैलियों का फोकस दलित और मुस्लिम बहुल सीटों पर अधिक है। सीलमपुर में सभा कर चुके राहुल मुस्लिम बहुल मुस्तफाबाद और ओखला में भी रैली करेंगे। प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के चुनावी कार्यक्रम अब तक तय नहीं हुए हैं। मंगलवार को खरगे और प्रियंका गांधी कर्नाटक में थे। कहा जा रहा कि कर्नाटक के दौरे के बाद वे दिल्ली में सक्रिय होंगे। कांग्रेस आलाकमान दिल्ली में पार्टी के चुनाव प्रचार की रणनीति से संतुष्ट नहीं है। राहुल गांधी चाहते हैं कि कांग्रेस दिल्ली में आक्रामक प्रचार करें और गंभीरता से चुनाव लड़ती नजर आए, परंतु दिल्ली में कांग्रेस का चुनाव प्रचार गति नहीं पकड़ पा रहा। प्रचार को लेकर राहुल और प्रियंका ने दिल्ली कांग्रेस के नेताओं के साथ ऑनलाइन बैठक की। दिल्ली कांग्रेस के नेताओं से पार्टी नेतृत्व की नाखुशी साफ नजर आई. कहा गया कि ना तो रणनीति स्पष्ट है और ना ही प्रचार में दम नजर आ रहा है। प्रियंका गांधी ने नैरेटिव सेट करने का सुझाव दिया। उन्होंने ये सवाल भी उठाया कि महिलाओं के लिए ढाई हजार रुपए हर महीने देने की योजना को लेकर कोई माहौल क्यों नहीं बन पाया।
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नहीं थम रही है कांग्रेस की गुटबाजी
दिल्ली में सियासी जमीन खिसकने के बाद भी कांग्रेस की गुटबाजी खत्म नहीं हुई है। रविवार की हुई बैठक में टिकट बंटवारे और प्रचार की रणनीति को लेकर जेपी अग्रवाल जैसे वरिष्ठ नेताओं ने प्रदेश नेतृत्व को लेकर खुल कर नाराजगी जाहिर की और सवाल उठाए। बीते दो विधानसभा चुनावों से कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई है। इस बार खोने कुछ नहीं, लेकिन इज्जत तो दांव पर है ही। इसीलिए कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं के सामने अपने बड़े चेहरों को उतारा है। तीन सौ यूनिट बिजली फ्री और महिलाओं को ढाई हजार रुपए हर महीने देने का ऐलान भी किया। लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस आप और बीजेपी के सामने मुख्य लड़ाई में आने के लिए संघर्ष कर रही है। देखना होगा कि आखिरी के दो हफ्तों में कांग्रेस क्या अलग करती है।
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कांग्रेस खाता खोलने की कोशिश में
इस विधानसभा चुनाव में लोकसभा 2024 साथ मिलकर लड़ने वाली कांग्रेस और आम आदमी पार्टी 2025 अलग-अलग लड़ रहे हैं। एक दूसरे को खुलकर चुनौती दे रहे हैं। आम आदमी पार्टी के लिए चौथी बार सरकार बनाने की कठिन चुनौती है, कांग्रेस इस चुनाव में अपनी कोई साख हासिल करने के लिए लोकलुभावन योजनाओं का पिटारा खोल दिया है। इंडिया गठबंधन में बिखराव की कीमत पर कांग्रेस 'अेकला चलो' का रास्ते पर कदम बढ़ा चुकी है और पूरी कोशिश है कि वह इस चुनाव में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराए। पिछले तीन चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो कांग्रेस का वोट बैंक लगातार सिकुड़ता चला गया है। वर्ष 2008 में 48.1 प्रतिशत वोट हासिल कर 47 सीटें जीतने वाली कांग्रेस वर्ष 2020 के चुनाव में रसातल में चली गई और उसे मात्र 4.3 प्रतिशत ही वोट मिले और अपना खाता तक नहीं खोल सकी। इसलिए कांग्रेस की चुनौती काफी बड़ी है।
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कांग्रेस ने वर्ष 2008 में जीती थीं 47 सीटें
वर्ष 2003 के दिल्ली के चुनाव में 48.1 फीसदी वोट शेयर के साथ 47 सीटें जीतकर सरकार बनाने वाली कांग्रेस वर्ष 2008 में अपनी सत्ता बचाने में सफल रही थी। हालांकि वोट शेअर और सीटों के तौर पर नुकसान उठाना पड़ा। कांग्रेस को 2008 में 8 प्रतिशत वोटों का नुकसान हुआ और उसे 40.3 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस को इस चुनाव में 43 सीटें ही मिलीं। इस चुनाव में भाजपा को मामूली लाभ हुआ। भाजपा को वोट शेयर वर्ष 2003 के चुनाव की तुलना में 35.2 प्रतिशत के मुकाबले 36.3 प्रतिशत वोट मिले। सीटें भी 20 से बढ़कर भी 23 हो गई। वर्ष 2008 में 14 फीसदी वोट शेयर के साथ बसपा भी दो सीटें जीतने में सफल रही। रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी 1.3 प्रतिशत वोटों के साथ एक जीत सीट जीतने में सफल रही।