नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
दिल्ली के चुनाव में झुग्गी-बस्तियों में रहने वालों की वोटों पर सभी राजनीतिक दलों की निगाहें हैं। तीनों प्रमुख पार्टियां भाजपा, सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और कांग्रेस वोटरों को रिझाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं और कई मुद्दे उठा रही हैं। इनमें एक बड़ा मुद्दा झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को पक्के घर और बाकी नागरिक सुविधाएं मुहैया कराना शामिल हैं। इन्हें साधने के लिए शीर्ष भाजपा नेता और गृहमंत्री अमित शाह ने अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत की थी और वादों की एक लंबी फेहरिस्त बताई। इससे पहले शकूर बस्ती में चुनावी सभा में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने तंज कसते हुए कहा था, अमित शाह एफिडेविट पर हस्ताक्षर करके देते हैं कि वो दिल्ली में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले सभी लोगों को मकान दे सकेंगे, तो वो (केजरीवाल) चुनाव ही नहीं लड़ेंगे। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में भी कई वादे किए हैं। बहरहाल, राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उन्हीं झुग्गी-झोपड़ी से होकर निकलता है।
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झुग्गियों में हैं 15 लाख से ज्यादा वोटर्स
असल में यह मुद्दा दिल्ली चुनाव में इतना जरूरी इसलिए बन गया है, क्योंकि झुग्गीवासी दिल्ली में एक बहुत बड़ा वोटबैंक हैं। दिल्ली में कुल 675 झुग्गियां हैं और 1700 झुग्गी झोपड़ी क्लस्टर यानी वो इलाके जिनमें झुग्गियों के छोटे-छोटे पॉकेट,और कई अनधिकृत कॉलोनियां। इन झुग्गी झोपड़ियों में 15 लाख से ज्यादा वोटर हैं। झुग्गीवासी दिल्ली के कुल मतदाताओं का 10% हैं और इसलिए सभी पार्टियां उन्हें अपनी ओर खींचना चाहती हैं। आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो इन 15 लाख से ज्यादा वोटरों में से लगभग 10 लाख लोग असल में वोट करते हैं। एक न्यूज चैनल से चर्चा में भाजपा के महासचिव विष्णु मित्तल ने दावा किया कि लगभग 7 लाख वोट आम आदमी पार्टी को जाते हैं, 2 लाख वोट भाजपा और शेष बचे हुए कांग्रेस और अन्य पार्टियों की झोली में गिरते हैं। यदि इस बार भाजपा और 2-3 लाख वोटरों को अपनी ओर शिफ्ट कराने में सफल रहती है तो चुनाव के नतीजे उसके हक में जा सकते हैं।
अनिश्चितता है सबसे बड़ी परेशानी
इन इलाकों में रहने वाले लोग न केवल बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं, बल्कि सबसे बड़ी चिंता है, उनके घरों की कानूनी स्थिति। झुग्गियों पर अवैध होने के आरोप लोगों में डर और चिंता की स्थिति बनाए रखते हैं। आए दिन झुग्गियों को ढहाने की मांगें उठती रहती हैं। वर्ष 2024 में, जी20 शिखर सम्मेलन से पहले, राजधानी के कई हिस्सों में अवैध निर्माणों को तोड़ने के अभियान चलाए गए थे। इनमें तुगलकाबाद, गोविंदपुरी और सुंदर नगर जैसे इलाकों में कई झुग्गियां हटाई गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने भी 2020 में जब रेलवे के समीप में से हजारों झुग्गियों को हटाने की बात कही थी तब भी झुग्गीवासियों में हड़कंप मच गया था।
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क्या हैं पार्टियों के दावे
झुग्गी झोपड़ी के वोटरों को हमेशा कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता रहा, दिल्ली दिल्ली की सियासत में जैसे ही आम आदमी पार्टी की एंट्री हुई, यह वोट बैंक आप के पाले में शिफ्ट हो गया। इस बार भाजपा भी पूरा जोर लगाए हुए है। जबकि आम आदमी पार्टी ने दावा किया है कि उसने पहले ही कई झुग्गीवासियों को पुनर्वास और आवासीय सुरक्षा दी है। दिल्ली के पहले इन-सीटू पुनर्विकास परियोजना में, जहां दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने नेहरू कैंप, नवजीवन कैंप और भूमिहीन कैंप के झुग्गीवासियों को फ्लैट दिए हैं, वहां लगभग 8,000 झुग्गी परिवारों में से 2,000 परिवारों को आवास मिल चुका है। आप पार्टी के लिए यह पुनर्वास बड़ी भूमिका निभाएगा। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपने-अपने चुनावी घोषणापत्र में झुग्गीवासियों के लिए पुनर्वास योजना की बात कर रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में जब भाजपा ने दिल्ली की सातों सीटें अपने नाम की थीं उसी समय उन्होंने झुग्गीवासियों के लिए 'झुग्गी विस्तारक योजना का ऐलान भी किया था। कांग्रेस के राहुल गांधी भी जल्द ही ‘जय बापू, जय भीम, जय संविधान' नाम के डोर टू डोर अभियान से झुग्गीवासियों के बीच अपना खाता खोलने की तैयारी में लगे हुए हैं।