बजट सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ। वोटर लिस्ट परिसीमन के मुद्दे पर राज्यसभा में हंगामे के बाद दोपहर 12 बजे सदन को स्थगित करना पड़ा। कांग्रेस, द्रमुक (डीएमके), तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षियों के साथ मिलकर संसद के बाहर प्रदर्शन किया। डीएमके ने शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के बयान पर कड़ा एतराज दर्ज कराते हुए कहा है कि उन्हें अपने बयान के लिए माफी मांगनी होगी।
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परिसीमन के नाम पर सीट कटौती बर्दाश्त नहीं
डीएमके के आर गिरिराजन ने राज्य सभा में शून्यकाल के तहत दक्षिणी राज्यों में प्रस्तावित परिसीमन पर एतराज किया। उन्होंने कहा कि दक्षिण के राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन वहां की लोकसभा सीटों की संख्या में कटौती करके उन्हें ‘दंडित’ किया जा रहा है। यह गलत है, तमिलनाडु इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। आर गिरिराजन के द्वारा यह मुद्दा सदन के समक्ष रखे जाने से हंगामा शुरू हो गया।
धर्मेंद्र प्रधान ने क्या कहा था
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के जिस बयान पर आज दोनों सदनों में हंगामा हुआ है, आइए उस बयान के बारे में आपको बताते हैं। धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को बजट सत्र के पहले दिन सदन में कहा था कि हम बेईमान हैं और तमिलनाडु के लोग असभ्य हैं। डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा कि धर्मेंद्र प्रधान का यह बयान बहुत ही अप्रत्याशित और आहत करने वाला है। इस अलोकतांत्रिक भाषा का प्रयोग करने के लिए शिक्षा मंत्री को सदन से माफी मांगनी चाहिए।
टीएमसी ने भी डीएमके का समर्थन किया
संसद में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने भी डीएमके का समर्थन किया। टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा है कि धर्मेंद्र प्रधान ने जिस भाषा का प्रयोग किया है, वह बर्दाश्त करने के योग्य नहीं है। इस अप्रत्याशित बयान के लिए धर्मेंद्र प्रधान सदन में माफी मांगनी होगी। उन्होंने कहा कि धर्मेंद्र प्रधान सदन से माफी नहीं मांगते तो उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर किया जाना चाहिए।
डीएमके ने कहा तमिलनाडु का पैसा कैसे रोका
हंगामे के दौरान डीएमके सांसद कनिमोझी ने केंद्र सरकार पर तमिलनाडु के हिस्से का पैसा रोके जाने का आरोप लगाते घेरा। सांसद ने कहा कि केंद्र सरकार ऐसा कैसे कर सकती है। सरकार तीन भाषा नीति और एनईपी पर हस्ताक्षर कराना चाहती है। सरकार तमिलनाडु के बच्चों का भविष्य बर्बाद कर रही है और उनके हिस्से का फंड रोक लिया है। कनिमोझी ने भी धर्मेंद्र प्रधान द्वारा सोमवार को सदन में दिए गए बयान पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है।
क्या है तीन भाषा विवाद
जिस तीन भाषा विवाद को लेकर संसद में दो दिन से हंगामा हो रहा है, आईए इस विवाद के बारे में आपको बताते हैं क्या है तीन-भाषा नीति। यह नीति पूरे भारत के स्कूलों में तीन भाषाओं को पढ़ाने का प्रस्ताव करती है, एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, खासकर तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में, जहां अंग्रेजी और तमिल शिक्षा की पसंदीदा भाषाएं रही हैं। नीति के मुताबिक भारत में प्रत्येक छात्र को तीन भाषाएँ सीखनी चाहिएं, इनमें एक अंग्रेजी और दो मूल भारतीय भाषाएं होनी चाहिए। दो मूल भारतीय भाषाओं में एक क्षेत्रीय भाषा भी जरूरी है।