Advertisment

Sharad Pawar ने इसलिए बदली रणनीति, Supriya Sule का करियर भी किया सुरक्षित!

क्या शरद पवार वास्तव में बीजेपी के साथ जा सकते हैं...शायद हां क्योंकि यह केवल उनकी राजनीति के लिए ही जरूरी नहीं है। इससे उनका परिवार में एकता होगी और बेटी सुप्रिया सुले का पॉलिटिकल करियर भी सुरक्षित हो जाएगा।

author-image
Aditya Pujan
एडिट
Sharad Pawar

Sharad Pawar

मुंबई, वाईबीएन नेटवर्क।
महाराष्ट्र की सियासत में बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। महाराष्ट्र की सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार शायद अपने सियासी करियर का सबसे बड़ा फैसला लेने की तैयारी कर रहे हैं। अब तक बीजेपी से दूर रहने की राजनीति पर अडिग रहे शरद पवार के इस फैसले की वजह शायद उनका डर है। पार्टी में टूट के डर से सहमे शरद पवार संभवतः अपने सियासी करियर का सबसे बड़ा दांव खेलने की योजना बना रहे हैं। अजीत पवार वाली एनसीपी का अपनी पार्टी में विलय कर शरद पवार बीजेपी के करीब पहुंच जाएंगे। उन्हें ये भी लगता है कि परिवार में एकीकरण के जरिए वे अपनी बेटी और बारामती से सांसद सुप्रिया सुले का पॉलिटिकल फ्यूचर सुरक्षित करने में भी सफल होंगे। 

Advertisment

पार्टी में टूट की अटकलें

शरद पवार की पार्टी एनसीपी-पवार विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार बैकफुट पर है। दूसरी ओर, अजीत पवार की पार्टी एनसीपी के पास 41 विधायक हैं और वे सत्ता का सुख भोग रहे हैं। शरद पवार के समर्थक विधायक और सांसद इससे चिंतित हैं। उन्हें लग रहा है कि अगले पांच साल तक उनके लिए सत्ता के दरवाजे बंद हो गए हैं। अजीत पवार की पार्टी ने यही ध्यान में रखकर शरद पवार के सांसदों पर डोरे डालने शुरू कर दिए। मीडिया की खबरों पर भरोसा करें तो सीनियर पवार के सांसद इसके लिए तैयार भी थे। माजरा समझते हुए शरद पवार ने अपनी रणनीति बदलने का फैसला किया।

समर्थकों के साथ छोड़ने का डर

Advertisment

शरद पवार को लगा कि उनकी पार्टी में फिर से टूट हुई तो बचे-खुचे समर्थक भी धीरे-धीरे साथ छोड़ जाएंगे। इस डर से ही वे अजीत पवार की पार्टी का एनसीपी-शरद पवार में विलय करने पर मंथन कर रहे हैं। इससे एक तो विधायकों-सांसदों को सत्ता का सुख मिल जाएगा। दूसरा, सुप्रिया सुले केंद्रीय कैबिनेट में शामिल हो जाएंगी तो अगले लोकसभा चुनाव के आते-आते वे केंद्र की राजनीति में स्थापित हो जाएंगी। 

शरद की रणनीति का फैमिली एंगल

शरद पवार की रणनीति का एक फैमिली एंगल भी है। अजीत पवार पार्टी छोड़कर इसलिए गए थे क्योंकि वे राज्य की सत्ता में भागीदारी चाहते थे। सुप्रिया सुले महाराष्ट्र की राजनीति में एक्टिव होंगी तो अजीत पवार के लिए पॉलिटिकल स्पेस की कमी होगी। शरद पवार की राजनीतिक विरासत के लिए सुप्रिया सुले और अजीत पवार के बीच संघर्ष होता रहेगा। इसका सबसे अच्छा समाधान ये है कि एक केंद्र की राजनीति में एक्टिव रहे और दूसरा राज्य में। सीनियर पवार यदि बीजेपी के साथ जाने का फैसला करते हैं तो यह संभव हो सकता है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि सुप्रिया केंद्र की राजनीति में एक्टिव होंगी और अजीत महाराष्ट्र में। 

Advertisment

Controversial statements : राहुल और ओवैसी को बरेली की कोर्ट का समन

मोदी से मुलाकात के बाद शुरू हुईं अटकलें

शरद पवार की रणनीति में बदलाव के पहले संकेत तब मिले थे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात हुई थी। इसके ठीक बाद अजीत पवार की मां आशाताई पवार ने परिवार में एकता की बात कही थी। फिर पवार की पार्टी में टूट की अटकलें लगनी शुरू हुईं। अब जबकि शरद पवार की पार्टी का अधिवेशन होने वाला है तो अजीत पवार की पार्टी के विलय की खबरें सामने आ रही हैं। इसके जरिए अधिवेशन में कार्यकर्ताओं का मन टटोलने की कोशिश की है। यदि कार्यकर्ताओं का रुख भी विलय के पक्ष में रहा तो शरद पवार बीजेपी के पाले में जाने की रणनीति को अंजाम दे सकते हैं।

Advertisment

बयानों से मुश्किल में फंसे Ramesh Bidhuri, टिकट छीन सकती है BJP!

इंडिया गठबंधन की हालत भी खराब

जीवन के इस पड़ाव पर शरद पवार न तो पार्टी टूटने का जोखिम लेना चाहते हैं, न ही सुप्रिया सुले के करियर को दांव पर लगाना चाहते हैं। इंडिया गठबंधन की मौजूदा हालत को देखते हुए भी शरद पवार बीजेपी के साथ जाने की रणनीति बना रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस अपनी नीतियों के साथ अकेले चल रही है। गठबंधन के सहयोगियों के साथ भी उसका रवैया पहले जैसा नहीं रहा। गठबंधन की पार्टियां भी कांग्रेस पर हमला करने से बाज नहीं आ रहीं। ममता बनर्जी ने गठबंधन के नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं। लालू यादव ने ममता की बात का समर्थन किया है। लालू की पार्टी दिल्ली में कांग्रेस से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने पर विचार कर रही है। दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल की पार्टी से भी कांग्रेस का सीधा मुकाबला है। चुनाव में दोनों पार्टियां एक-दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगा रही हैं। 

Poster War : JDU और जन सुराज में पोस्टर वॉर, प्रशांत पर साधा निशाना

पवार ने आपदा में निकाला अवसर

इस सबके बीच शरद पवार अकेले पड़ गए हैं। उद्धव ठाकरे की शिवसेना महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की तारीफ कर रही है। यानी सूबे की सियासत में भी वे अलग-थलग पड़ गए हैं। शरद पवार की राजनीति का तरीका ऐसा है कि सरकार चाहे किसी भी हो, वे केंद्र में रहते हैं। फिलहाल उनकी पार्टी केंद्र या राज्य में सत्ता में भागीदार नहीं है। यदि बीजेपी के साथ नहीं गए तो अगले पांच साल तक इसकी संभावना भी नहीं है। क्षेत्रीय पार्टियों के लिए सत्ता से लंबे समय तक दूर रहना वैसे ही मुश्किल होता है। यदि पार्टी पहले टूट चुकी हो और मुकाबला बीजेपी जैसी पार्टी से हो तो चुनौती कई गुना बढ़ जाती है। यदि अजीत पवार की पार्टी का अपनी पार्टी में विलय कर लें तो शरद पवार की सभी समस्याओं का एक साथ समाधान हो जाएगा। पवार आपदा को भी अवसर बनाने की कला में पारंगत हैं। पार्टी को टूटने से बचाने के लिए वे ऐसा दांव खेलने की तैयारी कर रहे हैं जिससे उनकी सभी समस्याएं एक साथ सुलझ जाएंगी। कांग्रेस पर निर्भरता भी खत्म हो जाएगी और पूरा परिवार एक ही पार्टी में आ जाएगा। 

AAP Vs BJP: केजरीवाल के 'शीशमहल' पर तनातनी, अब मोदी के 'राजमहल' की बारी

बदल जाएगी महाराष्ट्र की राजनीति

शरद पवार यदि बीजेपी के साथ जाने का फैसला करते हैं तो इससे महाराष्ट्र की सियासत भी हमेशा के लिए बदल जाएगी। जब तक बाल ठाकरे जिंदा थे, तब तक महाराष्ट्र में शिवसेना को बीजेपी का स्वाभाविक सहयोगी माना जाता था। दोनों लंबे समय तक साथ भी रहे। बाल ठाकरे की मौत के बाद उद्धव ने कांग्रेस के साथ जाने का विकल्प चुना तो बीजेपी ने एकनाथ शिंदे का साथ लिया। यानी उद्धव के साथ नहीं रहने पर भी बीजेपी के लिए शिवसेना के एक गुट को अपने साथ रखना सियासी मजबूरी थी। यदि शरद पवार उसके साथ आ जाते हैं तो शिवसेना पर बीजेपी की निर्भरता खत्म हो जाएगी। 

Advertisment
Advertisment