नई दिल्ली, आईएएनएस। हर माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायकी या विनायक चतुर्थी व्रत कहते हैं। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा-अराधना करने के साथ व्रत रखना लाभकारी माना जाता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी 28 जून को पड़ रही है।
वरद विनायक चतुर्थी
दृक पंचांग के मुताबिक, विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी भी कहते हैं। भगवान से अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति के आशीर्वाद को वरद कहते हैं। ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद लेने के लिए आप इस दिन उपवास कर सकते हैं। ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण हैं, जिसका महत्व सदियों से मनुष्य को ज्ञात है। जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं, वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है। इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-दौलत, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति होती है।
पुराणों के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। विनायकी व्रत की शुरुआत करने के लिए जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद पीले वस्त्र पहनकर, पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें।
पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र
इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दूर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करने के बाद वह श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं, इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को करें और 5 भगवान के चरणों में रख बाकी प्रसाद में वितरित करें।
पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। "ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें। शाम के समय गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है।
संकटों से मुक्ति के लिए चतुर्थी की रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए "सिंहिका गर्भसंभूते चन्द्रमांडल सम्भवे। अर्घ्यं गृहाण शंखेन मम दोषं विनाशय॥" मंत्र बोलकर जल अर्पित करें। यदि संभव हो तो चतुर्थी का व्रत रखें, जिससे ग्रहबाधा और ऋण जैसे दोष शांत होते हैं।