नई दिल्ली, आईएएनएस।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने आईआईटीयन प्रशिक्षण केंद्र प्राइवेट लिमिटेड (आईआईटीपीके) पर तीन लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना आईआईटी-जेईई परीक्षा के परिणामों के बारे में भ्रामक दावे करने वाले विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए लगाया गया है। यह निर्णय सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है कि किसी भी वस्तु या सेवा के बारे में कोई गलत या भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित न किया जाए। खासकर ऐसे भ्रामक विज्ञापन, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के प्रावधानों का उल्लंघन करता हो।
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भ्रामक प्रचार पर सीसीपीए का 46 संस्थानों को नोटिस
सीसीपीए ने अब तक देश भर के विभिन्न कोचिंग संस्थानों को भ्रामक विज्ञापनों के लिए 46 नोटिस जारी किए हैं। इनमें से सीसीपीए ने 24 कोचिंग संस्थानों पर 77 लाख 60 हजार का जुर्माना लगाया है। साथ ही इन कोचिंग संस्थानों को भ्रामक विज्ञापनों का प्रकाशन न करने का निर्देश भी दिया गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के उल्लंघन के लिए मुख्य आयुक्त निधि खरे और आयुक्त अनुपम मिश्रा की अध्यक्षता वाली सीसीपीए ने आईआईटीयन प्रशिक्षण केंद्र प्राइवेट लिमिटेड (आईआईटीपीके) के विरुद्ध यह आदेश जारी किया है।
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संस्थान की रैंकिंग को नेशनल रैकिंग बताया
संस्थान के विज्ञापनों में अभ्यर्थियों के नाम और तस्वीरों के सामने बोल्ड नंबर '1' और '2' के साथ-साथ “आईआईटी टॉपर” और “नीट टॉपर” जैसे शीर्षक प्रमुखता से दिखाए गए थे। यह गलत चित्रण भ्रामक धारणा बनाने के लिए किया गया था।विज्ञापन में दावा किया गया था कि इन छात्रों ने संबंधित परीक्षाओं में अखिल भारतीय रैंक प्राप्त किया है। सीसीपीए के अनुसार, कोचिंग संस्थान ने जानबूझकर यह तथ्य छिपाया कि छात्र केवल संस्थान के भीतर टॉपर थे, राष्ट्रीय स्तर पर नहीं।
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“आईआईटी रैंक” का गलत प्रयोग किया
“आईआईटी रैंक” वाक्यांश का उपयोग करके, संस्थान ने उपभोक्ताओं को यह विश्वास दिलाने में गुमराह किया कि संस्थान के 1384 छात्रों ने आईआईटी में प्रवेश प्राप्त किया है, जिससे इसकी सफलता दर में वृद्धि का संदेश गया, जबकि ऐसा था नहीं। जांच करने पर, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने पाया कि संस्थान द्वारा प्रदान की गई सूची में आईआईटी, आईआईआईटी, एनआईटी, बीआईटीएस, मणिपाल विश्वविद्यालय, वीआईटी वेल्लोर, पीआईसीटी पुणे, एमआईटी पुणे, वीआईटी पुणे और अन्य शैक्षणिक संस्थानों सहित विभिन्न संस्थानों में प्रवेश पाने वाले छात्र शामिल थे।
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मनगढ़ंत कैटेगरी बनाईं
संस्थान ने अपने विज्ञापनों में "साल दर साल सबसे ज़्यादा सफलता अनुपात", "21 सालों में सबसे अच्छा सफलता अनुपात" और "61 प्रतिशत पर सफलता अनुपात" जैसे दावों का इस्तेमाल किया। ये बयान बिना किसी पुष्ट डेटा या संदर्भ के प्रस्तुत किए गए, जिससे उपभोक्ताओं को यह विश्वास हो गया कि संस्थान के 61 प्रतिशत अंक पाकर भी छात्र आईआईटी में प्रवेश पा लेते हैं। संस्थान ने इन दावों की पुष्टि करने के लिए कोई तुलनात्मक विश्लेषण या तीसरे पक्ष से सत्यापन नहीं कराया। यह रणनीति महत्वपूर्ण जानकारी को पहले से प्रस्तुत न करके संभावित छात्रों और अभिभावकों को गुमराह करती है।