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Good News - घर तक FIR, पर शराब पर वार: गाजियाबाद पुलिस की 'हटकर' पहल का सच और सवाल

अगर आप गाजियाबाद के निवासी हैं, तो इस पहल का लाभ उठाएं। अपनी FIR की कॉपी घर पर मंगवाएं, और अगर कोई दिक्कत हो, तो पुलिस हेल्पलाइन या सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात उठाएं। क्योंकि पुलिस तभी जवाबदेह बनेगी, जब हम अपनी आवाज बुलंद करेंगे।

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Kapil Mehra
फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

कमिश्नर गाजियाबाद के आदेश के बाद FIR कॉपी पहुंच रही है घर-घर

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गाजियाबाद, वाईबीएन संवाददाता 

गाजियाबाद की सड़कों पर अब सिर्फ गश्ती गाड़ियां ही नहीं, बल्कि पुलिस की नई सोच भी दौड़ रही है। कमिश्नरेट गाजियाबाद पुलिस ने एक ऐसी पहल शुरू की है, जो सीधे आपके दिल और दरवाजे तक पहुंच रही है। अब पीड़ितों को अपनी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) की कॉपी के लिए थानों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। पुलिस खुद उनके घर पहुंचकर FIR की प्रति सौंपेगी। लेकिन इस चमकती पहल के बीच एक सवाल हवा में तैर रहा है।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

क्या यह सिलसिला लंबा चलेगा, या पुरानी कहानी की तरह अफसरों के तबादले के साथ यह भी फाइलों में दफन हो जाएगा?

FIR अब घर की दहलीज पर

कमिश्नरेट गाजियाबाद पुलिस ने 'जनता केंद्रित पुलिसिंग' के तहत एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। नए पुलिस आयुक्त जे. रविंद्र गौड़ के निर्देश पर 19 अप्रैल 2025 से विभिन्न थानों में दर्ज FIR की कॉपी पुलिस कर्मचारी पीड़ितों के घर जाकर सौंप रहे हैं। यह पहल उन लोगों के लिए राहत की सांस है, जो थानों में लंबी कतारों, कागजी कार्रवाई, और बार-बार चक्कर काटने से तंग आ चुके हैं। मोदीनगर के राहुल त्यागी, जिन्हें हाल ही में घर पर FIR की कॉपी मिली, कहते हैं, पहली बार लगा कि पुलिस वाकई हमारी मदद के लिए है। 

क्या थाने जाने का झंझट खत्म!

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इसके पीछे मकसद साफ है: पीड़ितों की सुविधा और पुलिस पर भरोसा बढ़ाना। अब हर दिन दर्ज होने वाली FIR की प्रति पुलिस कर्मचारी सीधे वादी के घर पहुंचाएंगे। यह न सिर्फ समय बचाएगा, बल्कि पारदर्शिता भी बढ़ाएगा। लेकिन क्या यह पहल सिर्फ शुरुआती जोश है, या वाकई गाजियाबाद पुलिस की कार्यशैली में स्थायी बदलाव की शुरुआत?

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

शराब पर सख्ती: आदेश का 'तबादला'

इस नई पहल की चमक के बीच पुरानी कहानियां भी सिर उठा रही हैं। पूर्व पुलिस कमिश्नर अजय मिश्रा ने अपने कार्यकाल में एक सख्त आदेश जारी किया था: शाम 6:30 से 9:30 बजे तक सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई। इस आदेश ने शुरू में इलाके में हलचल मचाई। गलियों में शराब की बोतलें कम दिखने लगीं, और लोगों ने पुलिस की सख्ती को महसूस किया। लेकिन अजय मिश्रा के तबादले के साथ यह आदेश भी 'तबादला' हो गया। स्थानीय निवासी रमेश यादव कहते हैं, शुरू में तो पुलिस ने गलियों में गश्त बढ़ा दी थी, लेकिन अब फिर वही ढाक के तीन पात। शराबी खुले में बोतलें लिए घूमते हैं।

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यह सवाल अब FIR की घर पहुंच सेवा पर भी मंडरा रहा है कोई सवाल। क्या यह पहल भी अफसरों के तबादले की भेंट चढ़ जाएगी? या इस बार गाजियाबाद पुलिस वाकई कुछ अलग करने जा रही है?

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

क्यों है यह पहल 'हटकर'?

पीड़ितों की सुविधा

थानों के चक्कर काटने की जरूरत खत्म, FIR अब घर पर।

पारदर्शिता

FIR की कॉपी समय पर मिलने से पुलिस की जवाबदेही बढ़ेगी।विश्वास का पुल: यह कदम पुलिस और जनता के बीच की खाई को पाटने की कोशिश है।

डिजिटल सपोर्ट

भविष्य में ऑनलाइन FIR कॉपी डाउनलोड की सुविधा भी शुरू हो सकती है।

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लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं। पुलिस कर्मचारियों की कमी, संसाधनों का अभाव, और थानों पर पहले से मौजूद काम का बोझ इस पहल को पटरी से उतार सकता है। साथ ही, अगर यह सिर्फ शुरुआती शोबाजी बनकर रह गई, तो जनता का भरोसा और टूट सकता है।

कितने दिन चलेगा यह सिलसिला?

गाजियाबाद पुलिस की यह पहल तारीफ के काबिल है, लेकिन इसका भविष्य कई सवालों के घेरे में है। पुलिस आयुक्त जे. रविंद्र गौड़ ने साफ कहा है कि उनकी प्राथमिकता 'सिटिजन सेंट्रिक पुलिसिंग' है। लेकिन अतीत के अनुभव बताते हैं कि अच्छी शुरुआतें अक्सर लालफीताशाही और संसाधनों की कमी की भेंट चढ़ जाती हैं। स्थानीय पत्रकार कहते हैं, यह पहल शानदार है, लेकिन इसके लिए पुलिस को अतिरिक्त कर्मचारी, वाहन, और बजट चाहिए। अगर यह नहीं मिला, तो यह भी कुछ महीनों की मेहमान होगी।

फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार

आपके लिए सवाल

क्या आप मानते हैं कि गाजियाबाद पुलिस इस बार अपनी बात पर कायम रहेगी? क्या FIR की घर पहुंच सेवा जनता का भरोसा जीत पाएगी, या यह भी पुराने आदेशों की तरह हवा में उड़ जाएगी? यह पहल सिर्फ एक कदम नहीं, बल्कि पुलिस और जनता के बीच नए रिश्ते की शुरुआत हो सकती है बशर्ते इसे सही तरीके से लागू किया जाए।

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