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पाचन विकार: अगर नहीं पच रहा भोजन, खाने के साथ जाना पड़ रहा वॉशरूम! करें ये उपाय

ग्रहणी दोष आयुर्वेद में पाचन तंत्र से जुड़ा एक गंभीर विकार माना जाता है। इस रोग में रोगी को पेट दर्द, अपच, गैस, कब्ज और दस्त जैसी समस्याओं का बार-बार सामना करना पड़ता है। मानसिक तनाव, गलत खानपान और दिनचर्या की अनियमितता इसके प्रमुख कारण माने जाते हैं। 

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YBN News
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DigestiveDisorders Photograph: (AI)

नई दिल्ली। ग्रहणी दोष आयुर्वेद में पाचन तंत्रसे जुड़ा एक गंभीर विकार माना जाता है। यह रोग मुख्यतः पाचन अग्नि (डाइजेस्टिव फायर) की कमजोरी और आंतों के असामान्य कार्य के कारण उत्पन्न होता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) कहा जाता है। इस रोग में रोगी को पेट दर्द, अपच, गैस, कब्ज और दस्त जैसी समस्याओं का बार-बार सामना करना पड़ता है। मानसिक तनाव, गलत खानपान और दिनचर्या की अनियमितता इसके प्रमुख कारण माने जाते हैं। 

क्या है ग्रहणी दोष 

आयुर्वेद के अनुसार, ग्रहणी दोष का उपचार पंचकर्म, आहार-संयम और जीवनशैली सुधार के माध्यम से किया जा सकता है। आयुर्वेद में 'ग्रहणी' का काम खाए गए खाने को ठीक से पचाना और शरीर को ऊर्जा देना है। जब यह अंग ठीक से कार्य नहीं करता, तो भोजन अपचित रह जाता है और व्यक्ति को बार-बार दस्त, अपच, और कमजोरी जैसी समस्याएं होने लगती हैं। यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहे तो शरीर में पोषण की भारी कमी हो सकती है। ताजा और सुपाच्य भोजन, समय पर भोजन करना और आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन इससे राहत दिला सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय पर इसका उपचार न किया जाए तो यह रोग दीर्घकालिक हो सकता है और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।

ग्रहणी दोष का मुख्य कारण

ग्रहणी दोष का मुख्य कारण पाचन अग्नि (शक्ति) का कम होना होता है, जिसे आयुर्वेद में अग्निमांद्य कहा गया है। जब व्यक्ति अनियमित भोजन करता है, बहुत अधिक तला-भुना या बासी खाना खाता है, अत्यधिक चिंता या तनाव में रहता है तो अग्नि कमजोर हो जाती है। इससे भोजन का पाचन अच्छे से नहीं हो पाता और अधपचा भोजन आंतों में सड़ने लगता है, जिससे गैस, बदबूदार दस्त, और बार-बार मल त्याग की इच्छा जैसी परेशानियां शुरू होती हैं।

ग्रहणी दोष के लक्षण

ग्रहणी दोष के लक्षणों में बार-बार दस्त लगना, मल में अधपचा भोजन आना, पेट में भारीपन, भूख कम लगना, गैस बनना, कमजोरी और थकान प्रमुख हैं। कुछ रोगियों में खाना खाते ही शौच जाने की तीव्र इच्छा होती है। यह रोग वात, पित्त और कफ, तीनों दोषों के असंतुलन से उत्पन्न हो सकता है, इसलिए आयुर्वेद में इसके चार भिन्न प्रकार बताए गए हैं, वातज, पित्तज, कफज और सन्निपातज ग्रहणी।

आयुर्वेद में ग्रहणी दोष के उपचार

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आयुर्वेद में ग्रहणी दोष के उपचार के लिए विशेष आहार, औषधियां और जीवनशैली अपनाने की सलाह दी जाती है। हल्का भोजन जैसे मूंग की खिचड़ी, बेल का शरबत, छाछ और जीरा पानी बहुत लाभकारी माना जाता है। वहीं, रोगी को गरिष्ठ, मसालेदार, तला-भुना और बासी भोजन से बचना चाहिए। इसके अलावा सौंफ और अजवाइन की चाय, अदरक का रस और शहद, छाछ में पुदीना, इसबगोल और गुनगुना दूध और हींग का पानी पीना भी काफी फायदेमंद होता है।

योग और प्राणायाम भी ग्रहणी दोष को कम करने में लाभकारी माना जाता है। पवनमुक्तासन, वज्रासन, अग्निसार क्रिया और अनुलोम-विलोम प्राणायाम से पाचन तंत्र को बल मिलता है और मानसिक शांति भी मिलती है, जिससे पाचन विकार कम होते हैं।

(इनपुट-आईएएनएस)

Disclaimer: इस लेख में प्रदान की गई जानकारी केवल सामान्य जागरूकता के लिए है। इसे किसी भी रूप में व्यावसायिक चिकित्सकीय परामर्श के विकल्प के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। कोई भी नई स्वास्थ्य-संबंधी गतिविधि, व्यायाम, शुरू करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।"

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