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गर्भावस्था में प्रदूषण के संपर्क से नवजात के दिमागी विकास पर असर: अध्ययन

एक हालिया शोध में खुलासा हुआ है कि गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण के संपर्क में आने से नवजात शिशुओं के दिमाग के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। 

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YBN News
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pregnantWOMEN Photograph: (IANS)

नई दिल्ली। एक हालिया शोध में खुलासा हुआ है कि गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण के संपर्क में आने से नवजात शिशुओं के दिमाग के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। शोध के अनुसार, हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (PM2.5) और जहरीली गैसें भ्रूण के मस्तिष्क तक पहुंचकर उसकी संरचना और कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकती हैं। इससे बच्चों में आगे चलकर सीखने, याददाश्त और व्यवहार संबंधी समस्याएं देखने को मिल सकती हैं। वैज्ञानिकों ने गर्भवती महिलाओं को सलाह दी है कि वे प्रदूषित वातावरण में लंबे समय तक न रहें और घर के अंदर स्वच्छ हवा बनाए रखें। हर प्रदूषक अलग होता है, इसलिए जरूरी है कि हम इनके अलग-अलग प्रभावों को समझें और जानें कि कौन-से तत्व ज्यादा खतरनाक हैं।

संवेदनशील समय

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pregnant Photograph: (AI)

आज के समय में वायु प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन चुका है। खासकर जब बात गर्भवती महिलाओं और उनके होने वाले बच्चों की हो, तो यह खतरा और भी अधिक बढ़ जाता है। हम सब जानते हैं कि वायु प्रदूषण का सबसे अधिक असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर गर्भावस्था के दूसरे और तीसरे तिमाही में पड़ता है, क्योंकि इस दौरान भ्रूण का मस्तिष्क विकास के एक महत्वपूर्ण चरण में होता है और बाहरी प्रभावों के प्रति बेहद संवेदनशील होता है। हाल ही में स्पेन के शोधकर्ताओं ने एक अहम रिसर्च की है, जिसमें उन्होंने बताया है कि गर्भावस्था के दौरान अगर मां ज्यादा हवा के प्रदूषित कणों के संपर्क में आती है, तो इससे नवजात बच्चे के दिमाग के विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। 

बहुत छोटे प्रदूषण कणों

इस रिसर्च को हॉस्पिटल डेल मार, बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ और सेंटर फॉर बायोमेडिकल नेटवर्क रिसर्च ऑन रेयर डिजीज के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया। उन्होंने खासकर हवा में मौजूद बहुत छोटे प्रदूषण कणों को देखा, जिन्हें पीएम 2.5 कहा जाता है। ये कण इतने छोटे होते हैं कि वे इंसानी बाल से लगभग तीस गुना पतले होते हैं। इन कणों में जलने वाली चीजों से निकलने वाले जहरीले पदार्थ होते हैं, साथ ही दिमाग के लिए जरूरी तत्व जैसे लोहे, तांबे और जस्ता भी पाए जाते हैं।

दिमाग के संकेतों

एनवायरनमेंट इंटरनेशनल पत्रिका में प्रकाशित परिणामों से पता चला है कि जिन नवजात शिशुओं की माताओं को गर्भावस्था के दौरान ज्यादा पीएम 2.5 प्रदूषण के संपर्क में रहना पड़ा, उनके दिमाग में माइलिनेशन नामक प्रक्रिया धीमी हो रही थी। माइलिनेशन एक जरूरी जैविक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के बिना दिमाग के संकेतों का आदान-प्रदान सुचारू रूप से नहीं हो पाता।

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अध्ययन के दौरान, शोध टीम ने गर्भवती महिलाओं के आस-पास के प्रदूषण स्तर को मापा और जन्म के बाद 132 नवजात बच्चों को चुना। इन बच्चों का एनआरआई स्कैन उनके जन्म के पहले महीने में किया गया, ताकि उनके दिमाग में माइलिनेशन की स्थिति का पता लगाया जा सके। एमआरआई स्कैन की मदद से वैज्ञानिक दिमाग के अंदर हो रहे बदलावों को समझ पाते हैं। इस प्रक्रिया से यह स्पष्ट हुआ कि अधिक प्रदूषण के संपर्क में आने वाले बच्चे के दिमाग का माइलिनेशन धीमे हो रहा था।

बच्चे के भविष्य के लिए हानिकारक

हॉस्पिटल डेल मार के रेडियोलॉजी विभाग की एमआरआई इकाई के प्रमुख डॉ. जेसुस पुजोल ने कहा, "माइलिनेशन की गति बहुत तेज या बहुत धीमी दोनों ही स्थिति बच्चों के लिए सही नहीं होती। दिमाग के विकास की सही गति होना आवश्यक है ताकि बच्चे की सोचने, समझने और सीखने की क्षमता ठीक से विकसित हो। पर अभी यह तय नहीं हो पाया है कि इस अध्ययन में देखी गई धीमा माइलिनेशन बच्चे के भविष्य के लिए कितनी हानिकारक होगा। इसके लिए और शोध करना जरूरी है।"

हवा के प्रदूषण का सीधा असर

उन्होंने आगे कहा, ''यह अध्ययन बताता है कि गर्भावस्था के दौरान हवा के प्रदूषण का सीधा असर नवजात बच्चों के दिमाग की परिपक्वता की प्रक्रिया पर पड़ता है। इस शोध के जरिए यह समझने की कोशिश की जाएगी कि दिमाग के विकास की सही गति क्या होनी चाहिए और कैसे मां और उसकी प्लेसेंटा बच्चे को प्रदूषण से बचा सकती है।''

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शोधकर्ताओं का सुझाव

शोधकर्ताओं ने यह भी सुझाव दिया है कि अभी यह समझना बाकी है कि हवा में मौजूद अलग-अलग प्रदूषकों का दिमाग के विकास पर कैसा असर पड़ता है। हर प्रदूषक अलग होता है, इसलिए जरूरी है कि हम इनके अलग-अलग प्रभावों को समझें और जानें कि कौन-से तत्व ज्यादा खतरनाक हैं।

  (इनपुट-आईएएनएस)

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