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Potassium Photograph: (ians)
नई दिल्ली। पोटैशियम हमारेशरीर के लिए बेहद जरूरी मिनरल है, जो दिल, मांसपेशियों और नसों के सही कामकाज में मदद करता है। केले को पोटैशियम का मुख्य स्रोत माना जाता है, लेकिन इसके अलावा कई और फलों और सब्ज़ियों में भी भरपूर पोटैशियम होता है। जैसे आलू, पालक, शकरकंद, एवोकाडो, संतरा और टमाटर। इन्हें नियमित रूप से अपनी डाइट में शामिल करने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है, मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है और शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बना रहता है। स्वास्थ्य के लिए पोटैशियम युक्त आहार बेहद लाभकारी है।
शरीर का 'साइलेंट हीरो'
पोटैशियम ऐसा मिनरल है, जिसे सही मायनों में शरीर का 'साइलेंट हीरो' कहा जा सकता है। पोटैशियम दिल के लिए एक रक्षक की तरह काम करता है। यह हृदय की मांसपेशियों को नियमित रूप से संकुचित करने में मदद करता है, जिससे धड़कन सामान्य बनी रहती है। इसकी कमी से दिल की धड़कन गड़बड़ा सकती है याहार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ सकता है।
अच्छे प्राकृतिक स्रोतों
अच्छे प्राकृतिक स्रोतों की बात करें तो पोटैशियम आपको केला, संतरा, नारियल पानी, पालक, शकरकंद, मूंग दाल, दही, खजूर और किशमिश से भरपूर मात्रा में मिल सकता है। हर केला लगभग 422 मिलीग्राम पोटैशियम देता है, यानी दो केले से आपकी दिनभर की जरूरत का करीब 20 प्रतिशत हिस्सा पूरा हो जाता है।
आयुर्वेद में इसे क्षार तत्व
आयुर्वेद में इसे क्षार तत्व कहा गया है, जो वात और पित्त दोष को संतुलित करता है और शरीर की ऊर्जा धारा को संतुलन में रखता है। यह एक जरूरी इलेक्ट्रोलाइट खनिज है जो दिल की धड़कन, मांसपेशियों की हरकत, दिमाग के संकेत भेजने की प्रक्रिया और शरीर में पानी का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।
पोटैशियम युक्त आहार
जानकारी हो कि पोटैशियम मांसपेशियों और तंत्रिका तंत्र के सही तालमेल में भी मदद करता है। थकान, कमजोरी, चिड़चिड़ापन या भ्रम जैसी समस्याएं कई बार इसकी कमी की वजह से होती हैं। इसके अलावा, यह किडनी को स्वस्थ रखने में मदद करता है और शरीर से एसिडिक वेस्ट को बाहर निकालता है। इसके अलावा यह ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में भी मदद करता है, क्योंकि यह सोडियम के प्रभाव को संतुलित करता है। इसलिए हाई ब्लड प्रेशर वालों के लिए मंत्र है- कम सोडियम और ज्यादा पोटैशियम।
नर्वस सिस्टम पर बुरा असर
एक वयस्क व्यक्ति को रोजाना लगभग 3500-4700 मिलीग्राम पोटेशियम की जरूरत होती है। बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं में यह मात्रा थोड़ी अलग हो सकती है। पोटेशियम की कमी को हाइपोकैलिमिया कहते हैं, जिसमें मांसपेशियों में ऐंठन, थकावट, कब्ज, अनियमित धड़कन, सुस्ती या यहां तक कि सांस लेने में दिक्कत भी हो सकती है। लंबे समय तक इसकी कमी रहने पर हृदय, गुर्दे और नर्वस सिस्टम पर बुरा असर पड़ सकता है।
(इनपुट-आईएएनएस)
Disclaimer: इस लेख में प्रदान की गई जानकारी केवल सामान्य जागरूकता के लिए है। इसे किसी भी रूप में व्यावसायिक चिकित्सकीय परामर्श के विकल्प के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। कोई भी नई स्वास्थ्य-संबंधी गतिविधि, व्यायाम, शुरू करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरूर लें।"