नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
भारत में दुनिया भर के 125 देशों के प्रतिनिधि रायसीना डायलॉग में जुटे हैं। यह सम्मेलन ज्योपॉलिटिकल और व्यापारिक मुद्दों पर चर्चा करने का अंतर्राष्ट्र्रीय मंच है। नई दिल्ली में चल रहे इस सम्मेलन में अमेरिका और कनाडा समेत तमाम प्रमुख देशों के डेलीगेट्स जुटे हैं। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने रायसीना डायलॉग के ‘सिंहासन और कांटे: राष्ट्रों की अखंडता की रक्षा’ सत्र में वैश्विक राजनीति में दोहरे मानदंडों पर तीखा प्रहार किया।
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पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप पर उठाए सवाल
विदेश मंत्री जयशंकर ने संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांत पर बात करते हुए कहा कि वैश्विक मंच पर निष्पक्षता क्यों नहीं दिखाई देती? उन्होंने भारत के कश्मीर मुद्दे और संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर भी सवाल उठाए। साथ ही, पश्चिमी देशों द्वारा अन्य देशों की राजनीति में हस्तक्षेप और सत्ता परिवर्तन की नीति की भी आलोचना की।
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सप्रभुता वैश्विक नियमों का आधार है
जयशंकर ने कहा, "हम सभी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की बात करते हैं। यह वैश्विक नियमों का आधार है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी अन्य देश द्वारा क्षेत्र पर सबसे लंबे समय तक अवैध कब्जा भारत के कश्मीर से जुड़ा है। हम संयुक्त राष्ट्र गए, लेकिन आक्रमण को विवाद में बदल दिया गया। यूएन ने आक्रांता और पीड़ित को समान बना दिया । आखिर दोषी कौन थे? यूके, कनाडा, बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया, या अमेरिका?"
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बोले- निष्पक्ष संयुक्त राष्ट्र की जरूरत
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, "आज जब पश्चिम दूसरे देशों में हस्तक्षेप करता है, तो इसे लोकतांत्रिक स्वतंत्रता बताया जाता है। लेकिन जब दूसरे देश पश्चिम में आते हैं, तो उन पर दुर्भावनापूर्ण इरादे का आरोप लगाया जाता है। अगर हमें व्यवस्था चाहिए, तो निष्पक्षता भी होनी चाहिए। हमें एक मजबूत संयुक्त राष्ट्र की जरूरत है, लेकिन वह तभी संभव है जब वह निष्पक्ष हो। वैश्विक व्यवस्था में मानकों में स्थिरता होनी चाहिए।"
म्यांमार के तख्तापलट का भी दिया उदाहरण
उन्होंने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसे घटनाक्रम नहीं होने चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनिया के कामकाज का पिछले आठ दशकों का ऑडिट करना आवश्यक है ताकि ईमानदारी से आकलन हो सके कि संतुलन और साझेदारी अब बदल गई है। जयशंकर ने कहा, "हमें अब एक नई बातचीत और एक नई व्यवस्था की जरूरत है।"
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गबार्ड ने दिया एकता और दिव्यता का संदेश
गबार्ड ने कहा, "यह अभिवादन हमारे भीतर मौजूद शाश्वत दिव्य आत्मा की पहचान है। यह संकेत करता है कि हम सभी जुड़े हुए हैं, चाहे हमारी जाति, धर्म, राजनीति, या पृष्ठभूमि कुछ भी हो – हम सभी ईश्वर की संतान हैं। यह हमारी सामाजिक स्थिति से परे जाकर, एक गहरे और सार्थक संवाद का द्वार खोलता है, जो विभाजन और पक्षपात से मुक्त होता है। अक्सर, हमारे बीच का विभाजन संवाद को विषाक्त कर देता है, लेकिन इस प्रकार का अभिवादन उस दूरी को मिटाता है।"