लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश में एक खतरनाक चलन धीरे-धीरे प्रशासनिक व्यवस्था को खोखला कर रहा है। जिलाधिकारियों द्वारा अपने अधीनस्थ अधिकारियों को गाली-गलौज करना और मानसिक उत्पीड़न करना अब आम होता जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस 'गालीबाज संस्कृति' पर अंकुश लगाएंगे?
आजमगढ़ के जिलाधिकारी रवींद्र कुमार द्वारा अधिशासी अभियंता (बाढ़ खंड) अरुण सचदेव के साथ कथित गाली-गलौज और मारपीट का मामला इन दिनों शासन-प्रशासन की सुर्खियों में है। बताया जा रहा है कि 13 जून 2025 की शाम 5 बजे कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग बैठक के दौरान यह घटना हुई, जिसमें डीएम ने सार्वजनिक रूप से अभियंता को अपमानित किया।
चढ़ावा संस्कृति बन रही बेइज्जती की वजह
हालांकि यह पहला मामला नहीं है। सूत्रों का कहना है कि राज्य के कई जिलों में कुछ डीएम अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए बदनाम हैं। अधिकारियों का आरोप है कि ऐसे डीएम खासकर उन्हीं अधिकारियों को टार्गेट करते हैं जो 'चढ़ावा संस्कृति' से दूरी बनाए रखते हैं, जिन अधिकारियों से ‘लेनदेन’ नहीं हो पाता, उन्हें बेइज्जती, प्रताड़ना और तबादलों का सामना करना पड़ता है।
यह हैं यूपी के गालीबाज डीएम
वर्ष 2018
सहारनपुर तत्कालीन डीएम पीके पांडे ने एक पंचायत कार्यकारी अधिकारी को धमकाते हुए कहा कि मैं तुम्हारा गला काट दूँगा और उस अधिकारी को भद्दी-भद्दी गालियां दी और धमकी दी, जिससे वह अधिकारी सदमे में चला गया था।
वर्ष 2020
अगस्त 2020 में एक ऑडियो क्लिप वायरल हुआ जिसमें अलीगढ़ के तत्कालीन डीएम चंद्रभूषण सिंह ने सीएमएस को बहुत धमकाया और कहा, साले मैं अभी आकर तुझे जूते मारता हूं। और जो गाली दी व बेइज्जती की वह अलग।
वर्ष 2020
रायबरेली के तत्कालीन डीएम वैभव श्रीवास्तव ने सीएमओ को धमकाते हुए कहा कि तू गधा है। तुझे तो मैं जमीन में दफना दूंगा। अभी तेरी चमड़ी उधेड़ता हूं। सीएमओ ने इसकी शिकायत विभागध्यक्ष को की।
वर्ष 2020
बस्ती जनपद के सीडीओ सीएस जयदेव ने सीएमओ को धमकाया। भरी मीटिंग में बेइज्जत किया और गाली दी तो उन्हें माइनर हार्टअटैक आ गया। फलस्वरूप सीडीओ के खिलाफ डॉक्टर आंदोलन पर बैठ गए। बाद में आईएएस आंद्रा वामसी ने सीडीओ व सीएमओ में सुलह समझौत करवाया।
दिसंबर 2022
तत्कालीन डीएम पुलकित खरे भी गाली-गलौज करने और धमकी देने में माहिर हैं। कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि वह नियमित समीक्षा बैठकों में गाली-गलौज और अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हैं, जिससे खफा होकर दिसंबर 2022 में मथुरा के 13 ब्लॉक स्वास्थ्य अधिकारीयों ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया।
वर्ष 2025
आजमगढ़ के जिलाधिकारी आईएएस रविंद्र कुमार पर अधिशासी अभियंता बाढ़ खंड अरुण सचदेव ने गंभीर आरोप लगाए। विभागध्यक्ष को पत्र लिखकर अवगत करवाया कि डीएम ने कैंप कार्यालय बुलवाकर मोबाइल जब्त करवा लिया। लाठी-डंडे से मारपीट और कहा, जा जहां जाना हो जा। देखता हूं तू क्या कर लेगा?
क्या लोकतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था में यह स्वीकार्य है?
सामाजिक सरोकार से जुड़े लोगों का कहना है कि आईएएस अफसर बनने का अर्थ यह नहीं कि वे अपने अधीनस्थों को गालियों से नवाजें या सार्वजनिक मंचों पर अपमान करें। यह न केवल प्रशासनिक मर्यादा का उल्लंघन है, बल्कि शासन की साख को भी नुकसान पहुंचाता है।
कर्मचारियों की चुप्पी डर का संकेत है
बहुत से कर्मचारी खुलकर बोलने को तैयार नहीं, लेकिन दबी जुबान में बताते हैं कि ‘उपरी चढ़ावे’ की कमी के चलते उन्हें मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ता है। ये हालात सरकारी व्यवस्था को भ्रष्टाचार और निरंकुशता की ओर धकेल रहे हैं।
कर्मचारियों की मुख्यमंत्री से अपेक्षा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जहां एक ओर प्रशासन को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की दिशा में कई कड़े कदम उठाए हैं, वहीं ऐसे गालीबाज अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही भी जरूरी है। कर्मचारियों का कहना है कि यदि वक्त रहते ऐसे मामलों पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह परंपरा बन जाएगी और प्रशासनिक भय व अव्यवस्था का नया अध्याय शुरू हो जाएगा।
अधिकारियों की ने यह भी बताया
दोषी डीएम के खिलाफ जांच बैठाकर तत्काल अनुशासनात्मक कार्रवाई हो।
सभी जिलों में अफसरों के व्यवहार की निगरानी हेतु स्वतंत्र व्यवस्था हो।
अधीनस्थों की शिकायतों के लिए गोपनीय व सुरक्षित ऑनलाइन पोर्टल हो।
दुर्व्यवहार करने वाले अफसरों का सार्वजनिक रूप से आंकलन किया जाए।
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