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आरोपी जमालुद्दीन उर्फ छांगुर
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता । धर्मांतरण जैसे गंभीर मामलों में आरोपी जमालुद्दीन उर्फ छांगुर को वर्षों तक प्रशासनिक संरक्षण मिलता रहा। आतंकवाद निरोधी दस्ता (एटीएस) की जांच में यह सामने आया है कि बलरामपुर में तैनात कुछ तत्कालीन पुलिस अधिकारियों की छांगुर और उसके सहयोगियों से नजदीकियां रही हैं। जांच में एक पूर्व थाना प्रभारी की भूमिका विशेष रूप से संदेह के घेरे में है, जिन पर छांगुर को संरक्षण देने और राजनीतिक अपराधियों से मिलीभगत के आरोप हैं।
कोतवाल ने छांगुर और उसके साथियों को कानूनी संरक्षण दिया
सूत्रों के मुताबिक, 2010 से छांगुर ने उतरौला क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को विस्तार देना शुरू किया था। बताया गया है कि स्थानीय स्तर पर एक चर्चित कोतवाल ने न सिर्फ छांगुर और उसके साथियों को कानूनी संरक्षण दिया, बल्कि उनके कहने पर विरोधियों के खिलाफ मुकदमे भी दर्ज कराए। यही नहीं, कई स्थानों पर ज़मीनों पर कब्ज़े भी कराए गए, जिसके बदले छांगुर ने भारी धनराशि खर्च की। जांच में यह भी सामने आया है कि इसी अवधि में उक्त कोतवाल ने लखनऊ में इकाना स्टेडियम के समीप लगभग 15,000 वर्ग फीट जमीन खरीदी, जिसकी वर्तमान कीमत लगभग छह करोड़ रुपये आंकी गई है।
छांगुर के गतिविधियों का हो रहा खुलासा
सवाल यह उठता है कि ऐसे गंभीर आरोपों के बावजूद उस पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई विभागीय कार्रवाई क्यों नहीं की गई।ध्यान देने वाली बात यह है कि अब जबकि एटीएस की कार्रवाई का दायरा बढ़ रहा है और छांगुर के गिरोह की गतिविधियों का खुलासा हो रहा है, वहीं आरोपों से घिरे उक्त अधिकारी खुद को धार्मिक दिखाने के प्रयास में देवीपाटन मंदिर में नियमित रूप से दर्शन करते देखे जा रहे हैं।विशेष लोक अभियोजक धर्मेंद्र त्रिपाठी द्वारा प्रस्तुत एक अन्य रिपोर्ट में भी पुलिस और आपराधिक तत्वों की सांठगांठ को उजागर किया गया है। इसके बावजूद जिम्मेदार अफसरों द्वारा रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया गया।
जांच रिपोर्टें अब भी शासन की फाइलों में हैं दबी
वर्ष 2024 में सादुल्लानगर थाना प्रभारी पर भी गंभीर आरोप लगे थे। उन पर पूर्व सपा विधायक और गैंगस्टर आरिफ अनवर हाशमी को संरक्षण देने का आरोप है। एक मजिस्ट्रेटी जांच में यह तथ्य सामने आया कि थाना परिसर की जमीन पर कब्जा कर वहां मजार बनवाई गई, और इसके लिए हाशमी ने अपने भाई को मुतवल्ली नियुक्त कर "शरीफ शहीदे मिल्लत अब्दुल कद्दूस शाह रहमतुल्लाह अलैह" नाम की समिति का गठन किया। अपर मुख्य सचिव, गृह एवं गोपन विभाग के पास शिकायतें पहुंचने के बावजूद इन मामलों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। जांच रिपोर्टें अब भी शासन की फाइलों में दबी पड़ी हैं, जबकि बलरामपुर जैसे सीमावर्ती जिले में बढ़ती संवेदनशीलता के मद्देनज़र इन मामलों में शीघ्र कार्रवाई की आवश्यकता है।
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