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अपर मुख्य सचिव समेत आला अफसर फिर पहुंचे नियामक आयोग, निजीकरण पर चर्चा Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। ऊर्जा विभाग के अपर मुख्य सचिव, पावर कारपोरेशन अध्यक्ष और अन्य अधिकारी एक बार फिर नियामक आयोग के दफ्तर पहुंचे। सोमवार को निजीकरण के अलावा बिजली और नए कनेक्शन की दरों में प्रस्तावित वृद्धि चर्चा का मुख्य एजेंडा रहा। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इस बैठक पर आपत्ति जताई है। परिषद ने कहा कि बार-बार बैठक के बहाने आयोग पर निजीकरण के मसौदे पर सहमति देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है, चूंकि आयोग मसौदे पर तमाम आपत्तियां लगाकर ऊर्जा विभाग को वापस कर चुका है।
निजीकरण मसौदे पर बार-बार चर्चा उचित नहीं
पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम के निजीकरण के मसौदे पर आयोग से सलाह मांगी गई थी। इसमें कमियां निकालते हुए आयोग ने मसौदा ऊर्जा विभाग को वापस कर दिया है। सात जुलाई को तत्कालीन मुख्य सचिव और अपर मुख्य सचिव के साथ अधिकारियों की टीम मसौदे पर चर्चा के लिए आयोग पहुंची थी। आज फिर आयोग में निजीकरण के मसौदे पर लंबी चर्चा हुई। अब इसकी कमियां दूरे करने की कोशिश की जा रही है। परिषद का आरोप है कि कमियां निकलने के बाद उसे ठीक करने का सुझाव संवैधानिक संस्था के लिए उचित नहीं है।
आयोग में लोक महत्व प्रस्ताव दाखिल
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने नियामक आयोग में लोक महत्व प्रस्ताव दाखिल करते हुए मांग की कि निजीकरण से जुड़े सभी मसौदे सार्वजनिक हों और इस संबंध में हुई बैठकों की रिपोर्ट भी जारी की जाए। वर्मा ने कहा कि आयोग एक अर्ध न्यायिक संवैधानिक संस्था है। उसने मसौदे में कमियां उजागर की हैं। अब आपत्तियों को सरकार के सामने रखना चाहिए। वर्मा ने मौसदे की मंजूरी के लिए आयोग से उसमें सुधार का सुझाव लेने को कानूनी तौर पर गलत ठहराया है। उन्होंने कहा कि ऐसी बैठकें रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत गलत हैं। निजीकरण से जुड़ी हर बैठक का लिखित जवाब पटल पर दाखिल करने के साथ 'रिकॉर्ड ऑफ प्रोसीडिंग' का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
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