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स्वच्छता से दूर होता है कुपोषण, बीमारी भी Photograph: (YBN)
- अपर मुख्य सचिव लीना जौहरी ने कहा, धात्री महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की कुंजी है स्वच्छता
- आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से लेकर जिला कार्यक्रम अधिकारियों को दिया गया प्रशिक्षण
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। राज्य में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाने के लिए स्वच्छता को जीवनशैली के रूप में अपनाने पर जोर देते हुए महिला एवं बाल विकास विभाग की अपर मुख्य सचिव लीना जौहरी ने कहा कि धात्री महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की कुंजी स्वच्छता है। यह केवल व्यक्तिगत अभ्यास नहीं, बल्कि सामुदायिक आदत बननी चाहिए।
लीना जौहरी गुरुवार को आयोजित पोषण पाठशाला में एकीकृत बाल विकास सेवा योजना (आईसीडीएस) विभाग के जिला व ब्लाकस्तरीय अधिकारियों व कर्मचारियों को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहीं थीं। उन्होंने कहा कि स्वच्छता व्यवहार में असमानता अब भी बड़ी चुनौती है और इसे दूर करने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और फ्रंटलाइन कर्मियों को ‘स्वच्छता दूत’ और ‘व्यवहार परिवर्तन संदेशवाहक’ के रूप में तैयार किया जा रहा है, ताकि वे परिवारों और समुदायों में सुरक्षित और जीवन-पोषक आदतों को स्थापित कर सकें और मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) तथा शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में सुधार लाने में योगदान कर सकें।
फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को मिला व्यवहार परिवर्तन का प्रशिक्षण
प्रशिक्षण का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं को स्वच्छता की प्रवर्तक और जीवन-रक्षक परिवर्तन की वाहक बनाना था, जो सीधे माताओं और बच्चों की जीवन सुरक्षा से जुड़ा है। प्रशिक्षण में यह सुनिश्चित किया गया कि हर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता स्वयं स्वच्छ आचरण अपनाए और अपने समुदाय में भी स्वच्छता को जीवनशैली के रूप में प्रचारित करे। कार्यशाला में ‘सही समय पर हाथ धोने’ जैसे व्यवहारों पर विशेष बल दिया गया। यह स्पष्ट किया गया कि हाथ धोना तभी प्रभावी होगा जब यह हर परिवार की दिनचर्या का हिस्सा बने। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को यह सिखाया गया कि ये व्यवहार विशेष रूप से माताओं और शिशुओं की सुरक्षा में कितना निर्णायक है।
स्वच्छता और पोषण, एक-दूसरे के पूरक
प्रदेश में चल रहे पोषण माह के दौरान ‘महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में स्वच्छता के महत्व’ विषय पर आयोजित इस कार्यशाला में यूपीटीएसयू के उपनिदेशक डॉ. दिनेश सिंह ने बताया कि 68 प्रतिशत बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती है। इसके पीछे स्वच्छता और सुरक्षित वातावरण की कमी एक प्रमुख कारण है। यदि हम एमएमआर और आईएमआर को कम करना चाहते हैं, तो स्वच्छता व्यवहार को जीवन का हिस्सा बनाना अत्यंत आवश्यक है।
माताओं और बच्चों के लिए स्वच्छ जीवनशैली जरूरी
स्वास्थ्य एवं पोषण विशेषज्ञ सतीश श्रीवास्तव ने कहा कि “स्वच्छता केवल बाहरी सफाई नहीं, बल्कि माताओं और बच्चों के जीवन को संरक्षित करने वाली समग्र जीवनशैली है। उन्होंने जोड़ा कि यह जीवनशैली तभी संभव है जब हर समुदाय में स्वच्छ आचरण सामाजिक मानक बन जाए और यही कार्य प्रशिक्षित फ्रंटलाइन कार्यकर्ता अब अग्रदूत के रूप में कर रहे हैं।
महिलाओं और किशोरियों के स्वास्थ्य पर विशेष फोकस
कार्यशाला में मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता और व्यक्तिगत सुरक्षा पर भी चर्चा हुई। वक्ताओं ने बताया कि अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को किशोरियों के साथ मासिक धर्म प्रबंधन और आत्म-सुरक्षा पर संवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह पहल आईएमआर और एमएमआर को सीधे प्रभावित करने वाले जीवन-घातक जोखिमों से निपटने में मदद करती है।
स्वच्छता कुपोषण रोकने में मददगार
ठाकुरगंज के आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संजू ने कहा कि अक्सर लोग सोचते हैं कि कुपोषण सिर्फ खाने की कमी से होता है, लेकिन आज समझ में आया कि स्वच्छता और साफ-सुथरा माहौल भी उतना ही ज़रूरी है और स्वच्छता के छोटे-छोटे व्यवहार भी कुपोषण को रोक सकते हैं। अब हम हर घर में यह संदेश ज़रूर पहुंचाएंगे।
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