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फाइल फोटो।
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता।गोरखपुर निवासी निजी कंपनी कर्मचारी नवीन यादव की हत्या के मामले में लखनऊ पुलिस की लापरवाही ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। न केवल हत्या की सूचना को नजरअंदाज किया गया, बल्कि परिजनों को अंतिम दर्शन का मौका दिए बिना शव को लावारिस बताकर अंतिम संस्कार तक कर दिया गया। पुलिस की इस घोर चूक ने कानून व्यवस्था और जवाबदेही पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
परिजन के तहरीर देने पर भी नहीं दर्ज की गई गुमशुदगी
नवीन यादव 25 जुलाई को चारबाग इलाके से संदिग्ध परिस्थितियों में लापता हो गए थे। परिजन जब गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने नाका थाने पहुंचे, तो वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने न तो एफआईआर दर्ज की और न ही मामले को गंभीरता से लिया। कई बार गुहार लगाने के बावजूद थाना पुलिस ने टालमटोल रवैया अपनाया। यहां तक कि गोरखपुर के एक पार्षद द्वारा एक पुलिस अधिकारी को फोन कर सूचना देने के बाद भी, थाना स्तर पर सक्रियता नहीं दिखाई गई।
72 घंटे तक शव की शिनाख्त न होने पर कर दिया अंतिम संस्कार
अंततः उच्चाधिकारियों के दखल के बाद 27 जुलाई को नवीन की गुमशुदगी दर्ज की गई। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। आलमबाग मेट्रो स्टेशन के पास 25 जुलाई को बरामद एक अज्ञात शव को पुलिस पहचान नहीं सकी। 72 घंटे तक कोई पहचान सामने न आने पर पुलिस ने नियमों के तहत उसका अंतिम संस्कार कर दिया। बाद में जब यह स्पष्ट हुआ कि वही शव नवीन यादव का था, तब परिवार को गहरा सदमा लगा।
नाका थाने के प्रभारी निरीक्षक वीरेंद्र त्रिपाठी लाइन हाजिर
डीसीपी पश्चिमी क्षेत्र विश्वजीत श्रीवास्तव ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए नाका थाने के प्रभारी निरीक्षक वीरेंद्र त्रिपाठी को लाइन हाजिर और चारबाग चौकी इंचार्ज कमल कुमार को निलंबित कर दिया है।इधर, पुलिस ने हत्या में शामिल ई-ऑटो चालक अमित त्रिवेदी और उसके साथी कन्हैया शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया है। इनके पास से लूटा गया मोबाइल, बैग और 15,000 की नकदी बरामद हुई है।लेकिन सवाल यह है कि यदि पुलिस समय रहते हरकत में आती, तो न केवल हत्या के सुराग जल्दी मिल सकते थे, बल्कि परिजन अपने बेटे को अंतिम बार देख भी सकते थे। इस लापरवाही की कीमत एक परिवार को भावनात्मक रूप से चुकानी पड़ी है।
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