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निजीकरण से 76500 बिजली कर्मियों की नौकरी पर खतरा, नियामक आयोग से प्रस्ताव रद्द करने की मांग

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि बिजली क्षेत्र में कर्मचारी और उपभोक्ता सबसे बड़े स्टेकहोल्डर है। इन दोनों का पक्ष सुने बिना निजीकरण के आरएफपी डॉक्यूमेंट पर विद्युत नियामक आयोग को कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए।

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Deepak Yadav
protest against electricity privatisation

निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन करते बिजली कर्मचारी Photograph: (YBN)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने दावा किया कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण से लगभग 16500 नियमित कर्मचारियों और 60 हजार संविदा कार्मियों की नौकरी समाप्त होने का खतरा है। इसके अतिरिक्त बड़े पैमाने पर इंजीनियर और अन्य कर्मचारियों को रिवर्शन का सामना करना पड़ेगा। समिति ने उप्र विद्युत नियामक आयोग से निजीकरण का प्रस्ताव निरस्त करने की मांग की है।

बिजली कर्मियों का पक्ष रखने को आयोग से मांगा समय

संगठन के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि बिजली के क्षेत्र में कर्मचारी और उपभोक्ता सबसे बड़े स्टेकहोल्डर है। ऐसे में इन दोनों का पक्ष सुने बिना निजीकरण के आरएफपी डॉक्यूमेंट पर विद्युत नियामक आयोग को कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। उन्होंने आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार से अनुरोध किया कि निजीकरण से बिजली कर्मियों को होने वाले नुकसान के विषय में बिजली कर्मियों का पक्ष रखने के लिए संघर्ष समिति को वार्ता के लिए समय दें।

निजीकरण के विरोध में प्रांतव्यापी प्रदर्शन जारी

शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन के 311वें दिन शनिवार को बिजली कर्मियों  ने वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, नोएडा, गाजियाबाद, मुरादाबाद में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया।

Electricity Privatisation | VKSSSUP 

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