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निजीकरण पर उपभोक्ता परिषद ने पावर कारपोरेशन को दी खुली बहस की चुनौती Photograph: (Google)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम के निजीकरण को लेकर राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने पावर कारपोरेशन को खुली बहस की चुनौती दी है। परिषद ने दावा किया कि बहस में साबित हो जाएगा कि निजीकरण का फैसला उपभोक्ता और कर्मचारी विरोधी है। स्वतंत्र उच्च स्तरीय समिति के समक्ष बहस की मांग करते हुए पावर कारपोरेशन से निजीकरण से जुड़े छह अहम सवाल किए हैं।
निजीकरण उपभोक्ताओं-कर्मचारियों के हित में नहीं
परिषद के अध्यक्ष कुमार वर्मा ने कहा कि सरकारी बिजली कंपनियों का निजीकरण उपभोक्ता हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि निजीकरण के बाद हजारों संविदा कर्मचारियों की नौकरी चली जाएगी। इतना ही नहीं नियमित कर्मचारियों की नौकरी पर भी खतरे में पड़ जाएगी। इसके साथ ही सरकार को भी वित्तीय नुकसान होगा।
सुधार योजनाएं पहले भी दीं
वर्मा ने कहा कि तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को एक डिस्कॉम सुधार योजना का प्रस्ताव भी दिया गया था, लेकिन पावर कॉरपोरेशन ने उस पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। आज भी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र में बिजली कंपनियों के संचालन को बेहतर करना चाहती है, तो परिषद ऐसी योजनाएं देने को तैयार है।
महंगी हो जाएगी बिजली, सब्सिडी में कटौती
उन्होंने कहा कि निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को महंगी बिजली, सब्सिडी में कटौती और जवाबदेही की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर जनभागीदारी को प्राथमिकता दे और निष्पक्ष बहस की राह खोले।
परिषद ने पावर कारपोरेशन से किए छह सवाल
- बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं का बकाया 33,122 करोड़ निजीकरण के बाद किसे मिलेगा?
- दक्षिणांचल और पूर्वांचल क्षेत्रों में उपभोक्ताओं का लगभग 16 हजार करोड़ का सरप्लस है। इसकी अदायगी उपभोक्ताओं को कौन करेगा?
- बिजली कंपनियों पर 65,909 करोड़ की बकाया राशि उपभोक्ताओं से वसूल कर क्या निजी कंपनी पावर कॉरपोरेशन को लौटाएगी?
- टोरेंट पावर को फ्रेंचाइजी के रूप में 14 वर्ष पूर्व दिया गया था। उसने उपभोक्ताओं से वसूले गए 2,200 करोड़ क्यों नहीं लौटाए? इस पर जवाबदेही कौन तय करेगा?
- क्या निजी कंपनियां किसानों को निःशुल्क बिजली देंगी? सरकार किसी निजी कंपनी को सब्सिडी देगी? यदि नहीं, तो सामाजिक योजनाओं का भविष्य क्या होगा?
- क्या सरकार यह लिखित आश्वासन दे सकती है कि अगले पांच वर्षों तक बिजली दरों में कोई वृद्धि नहीं होगी?
UPRVUP | Electricity Privatisation
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