लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने ऊर्जा मंत्री एके शर्मा के हर हाल में निजीकरण होने के एलान पर कड़ी आपत्ति जताई जताते हुए नियामक आयोग लोक महत्व का प्रस्ताव दाखिल किया है। इसमें परिषद ने पिछली सरकारों में आगरा और नोएडा में हुए निजीकरण के बेहतर परिणाम के दावे पर सवाल खड़े किए हैं। परिषद का कहना है कि दोनों कंपनियों की वित्त्तीय अनियमतता की जांच कराई गई थी। इसकी फाइल शासन सस्त पर दबी है। सपा सरकार के दौरान चार जनपदों में बिजली निजीकरण की प्रक्रिया रोक दी गई थी। परिषद ने आयोग से मांग की कि दोनों कंपनियों के एग्रीमेंट की समीक्षा कराकर टोरेंट पावर के एग्रीमेंट तत्काल निरस्त किया जाए।
एनपीसीएल की वित्तीय जांच की फाइल दबाई गई
आयोग को अवगत कराया कि तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने वर्ष 2020 में टोरेंट पावर की वित्तीय स्थिति की जांच कराई थी। इसकी रिपोर्ट पावर कारपोरेशन की तीन सदस्यीय समिति ने सौंपी थी। चूंकि नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड (एनपीसीएल) एक लाइसेंसी कंपनी है। इसलिए उसकी जांच की संस्तुति प्रदेश सरकार को भेजी गई। लेकिन जब एनपीसीएल के वित्तीय पहलुओं की जांच संबंधी पत्रावली आगे बढ़ी, तो उसे दबा दिया गया। श्रीकांत शर्मा के बाद वर्तमान ऊर्जा मंत्री ने आज तक उस पत्रावली पर ध्यान नहीं दिया।
गलत डेटा दिखाकर कंपनी ने कमाया लाभ
जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया कि टोरेंट पावर कंपनी को पावर कारपोरेशन का लगभग 2200 करोड़ रुपये का पिछला बकाया वसूल कर देना था, जो उसने नहीं किया। साथ ही कंपनी को 10 वर्षों के भीतर 15 प्रतिशत लाइन लॉस कम करना था। जिसे उसने कम तो किया, लेकिन उसका सही रिकॉर्ड नहीं दिया। इसके चलते कंपनी ने बड़ा लाभ कमाया है। वर्तमान में भी लाइन लॉस काफी कम है। लेकिन कंपनी इसे अधिक दिखाकर करोड़ों रुपये का लाभ उठा रही है।
10 प्रतिशत बिजली छूट वसूली का परिणाम
नोएडा पावर कंपनी ने औसत बिजली खरीद लागत से अधिक उपभोक्ताओं से वसूली की। इसका खुलासा होने पर एनपीएल में 1082 करोड़ रुपये का सरप्लस पाया गया। इसके परिणामस्वरूप बिजली दरों में 10 प्रतिशत छूट मिलती आ रही है। जो कंपनी की पुरानी अधिक वसूली का नतीजा है न कि उसकी काबिलियत। ऊर्जा मंत्री इन दोनों बिजली कंपनियों की सफलता का ढिंढोरा पीट रहे हैं। वहीं सरकार एनपीएल का लाइसेंस निरस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ रही है।
अखिलेश यादव के निर्देश पर टला था निजीकरण
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार और सदस्य संजय कुमार सिंह से मुलाकात कर प्रस्ताव दाखिल किया। वर्मा ने बताया कि वर्ष 2014 में गाजियाबाद, बनारस, मेरठ और कानपुर जिलों का निजीकरण सपा सरकार के दौरान किया जाना था। इसके लिए सलाहकार कंपनी की रिपोर्ट भी आ चुकी थी। उस समय परिषद की याचिका पर विद्युत नियामक आयोग ने पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष को तलब किया था। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के संज्ञान में आने पर निजीकरण का फैसला टाल दिया गया था। एनपीएल और टोरेंट पावर की अनियमितताओं को देखते हुए 42 जनपदों में प्रस्तावित निजीकरण को तत्काल निरस्त किया जाना चाहिए।