लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। केंद्र सरकार ने यूपी समेत देशभर में बिजली उपभोक्ताओं के घरों में इस साल अगस्त तक प्रीपेड मीटर लगाने का लक्ष्य रखा है। प्रीपेड मीटर लगाने वाले उपभोक्ताओं को बिजली बिल पर पांच फीसदी की छूट दी जाएगी। यूपी में करीब 3.45 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं। इसमें से तीन करोड़ उपभोक्ताओं के घरों में प्रीपेड मीटर लगने पर बिजली कंपनियों को हर महीने 120 करोड़ और साल भर में 1500 करोड़ रुपये का फायदा होगा। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद का कहना है कि सरकार 1500 करोड़ के फायदे वाली बिजली कंपनियों को क्यों बेचना चाहती है।
केंद्र से स्वीकृति 18,885 करोड़, खर्च ज्यादा
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि चंडीगढ़ में शुक्रवार को हुए ऊर्जा मंत्रियों के सम्मेलन में यूपी के ऊर्जा मंत्री एके शर्मा और पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष आशीष गोयल शामिल हुए। इसमें अगस्त 2025 तक सभी उपभोक्ताओं के घरों में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने का लक्ष्य तय किया गया। उन्होंने कहा कि आरडीएसएस योजना के तहत लॉस रिडक्शन पर 16,112 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। जबकि प्रीपेड मीटर योजना पर केंद्र से स्वीकृत 18,885 करोड़ के बजाय 27,342 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। यानी करीब 9 हजार करोड़ अधिक खर्च होगा।
प्रति मीटर 40 रुपये होगा मुनाफा
वर्मा ने कहा कि बिजली नियामक आयोग में प्रीपेड मीटर योजना को मंजूरी मिली, तो पावर कारपोरेशन और बिजली कंपनियों ने शपथ पत्र देकर इसे पूरी तरह आत्मनिर्भर स्कीम बताया और कहा कि प्रति मीटर 40 रुपये लाभ होगा। ऐसे में यूपी में तीन करोड़ घरों में मीटर लगने पर कंपनियों को साल भर में करीब 1500 करोड़ रुपये का फायदा होगा। जबकि लॉस रिडक्शन से मिलने वाला लाभ अलग है। ऐसे मेंपावर कारपोरेशन को तत्काल बिजली निजीकरण का फैसला निरस्त कर देना चाहिए।
आरडीएसएस में 43,454 करोड़ का खर्च
अवधेश वर्मा ने कहा कि आरडीएसएस योजना में कुल 43454 करोड़ खर्च किया जा रहा है। वहीं, बिजनेस प्लान की स्कीम पर 5000 करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च हो रहा है। यानी सभी बिजली कंपनियों के अंतर्गत आने वाले जिलों में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लग जाने से बिल कलेक्शन और वितरण हानियों में सुधार होगा। बिजली कंपनियां कम लागत में फायदे में पहुंच जाएंगी। उन्होंने कहा कि बिजली का पूरा तंत्र अगले 10 साल तक तक के लिए मजबूत किया जा रहा है। फिर प्रदेश के नौकरशाह बिजली कंपनियों को अदाणी, टाटा, एनपीसीएल, टोरेंट पावर को क्यों सौंपना चाहते हैं। इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।
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