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निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन करते बिजली कर्मचारी Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। निजीकरण के विरोध में बुधवार को देश भर में लाखों बिजली कर्मियों ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया। इसमें किसान और उपभोक्ता फोरम के पदाधिकारी भी शामिल हुए। इसी क्रम में यूपी में सैकड़ों कर्मचारियों ने बिजली उपकेन्द्रों पर हुंकार भरी। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि प्रदेश सरकार बिजली कंपनियों के घाटे के भ्रामक आंकड़ों देकर उनका निजीकरण कर रही है। इससे कर्मियों में भारी आक्रोश है। उन्होंने कहा कि बिजली कर्मी पिछले सात माह से लगातार आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश सरकार ने एक बार भी उनसे वार्ता नहीं की।
सरकार घाटा दिखाकर कर रही निजीकरण
उन्होंने कहा कि गलत पावर परचेज एग्रीमेंट के चलते विद्युत वितरण निगमों को निजी बिजली उत्पादन कंपनियों को बिना एक भी यूनिट बिजली खरीदे 6761 करोड़ रुपये का सालाना भुगतान करना पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त निजी घरानों से बहुत महंगी दरों पर बिजली खरीदने के कारण लगभग 10 हजार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का अतिरिक्त भार आ रहा है। प्रदेश के सरकारी विभागों पर 14 हाजर 400 करोड़ रुपये का बिजली राजस्व बकाया है। सरकार की नीति के अनुसार किसानों को मुफ्त बिजली दी जाती है। गरीबी रेखा से नीचे के उपभोक्ताओं को तीन रुपये प्रति यूनिट की दर पर बिजली दी जाती है। जबकि बिजली की लागत सात रुपये 85 पैसे प्रति यूनिट है। बुनकरों को भी सब्सिडी दी जाती है। सब्सिडी की धनराशि ही लगभग 22 हजार करोड़ रुपये है। सरकार इन सबको घाटा बताती है। इसी आधार पर निजीकरण किया जा रहा है।
अधिकारियों और औद्योगिक घरानों की मिलीभगत
राज्य विद्युत परिषद जूनियर इंजीनियर्स के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि पावर कापोरेशन और शासन के कुछ बड़े अधिकारियों की निजी घरानों के साथ मिलीभगत है। वे लाखों करोड़ रुपये की बिजली की परिसंपत्तियों को कौड़ियों के मोल निजी घरानों को बेचना चाहते हैं। पूर्वांचल और दक्षिणांचल में बुंदेलखंड के क्षेत्र में बेहद गरीब लोग रहते हैं, जहां पीने के पानी की भी समस्या है। निजीकरण होने के बाद यहां सब्सिडी समाप्त होने से उपभोक्ताओं ने 10 से 12 रुपये प्रति यूनिट की दर पर बिजली खरीदनी पड़ेगी जो वे नहीं कर पाएंगे। इस तरह गरीब जनता को लालटेन युग में धकेला जा रहा है।
इन राज्यों में हुए प्रदर्शन
देश में आज हैदराबाद, त्रिवेंद्रम, विजयवाड़ा, चेन्नई, बेंगलुरु, मुंबई, नागपुर, रायपुर, भोपाल, जबलपुर, वडोदरा, राजकोट, गुवाहाटी, शिलांग, कोलकाता, भुवनेश्वर, पटना, रांची, श्रीनगर, जम्मू, शिमला, देहरादून, पटियाला, जयपुर, कोटा, हिसार और लखनऊ में बड़े विरोध प्रदर्शन किए गए।
किसान और उपभोक्ता फोरम प्रदर्शन में हुए शामिल
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने बताय कि यूपी समेत कई राज्यों में बिजली कर्मचारियों के साथ किसानों और कई उपभोक्ता फोरमों ने प्रदर्शन किया। प्रदेश में वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, नोएडा, गाजियाबाद, मुरादाबाद, हरदुआगंज, जवाहरपुर, परीक्षा, पनकी, ओबरा, पिपरी और अनपरा में विरोध प्रदर्शन किया गया।
मध्यांचल मुख्यालय पर कर्मियों ने जताया विरोध
इसी क्रम में राजधानी लखनऊ में रेजिडेंसी पर हुए प्रदर्शन में भारी संख्या में किसान शामिल हुए। इसके बाद मध्यांचल मुख्यालय पर बिजली कर्मियों ने विरोध दर्ज कराया। लखनऊ में हुई सभा को इंटक के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अशोक सिंह, सोनभद्र के मजदूर नेता दिवाकर कपूर, राष्ट्रीय कुली मजदूर संघ के राम सुरेश यादव ने सम्बोधित किया। साथ ही देश के 20 करोड़ कामगारों की ओर से बिजली कर्मियों को समर्थन दिया।
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