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निजीकरण के लिए पावर कारपोरेशन अफसरों की दौड़ तेज, अब मुख्य सचिव से की पैरवी

ऊर्जा विभाग के अधिकारियों ने मुख्य सचिव से मिलकर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की पैरवी की। संघर्ष समिति ने मुख्य सचिव से अपील की, वह दागी सलाहकार कंपनी के बनाए गए निजीकरण के मसौदे को कतई मंजूरी न दें।

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Deepak Yadav
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निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन करते ​बिजली कर्मचारी Photograph: (YBN)

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। पावर कारपोरेशन के आला अधिकारी बिजली निजीकरण के आरएफपी डॉक्यूमेंट की मंजूरी के लिए नियामक आयोग से लेकर शासन तक दौड़ लगा रहे हैं। ऊर्जा विभाग के अपर मुख्य सचिव नरेंद्र भूषण, कारपोरेशन के अध्यक्ष आशीष गोयल और निदेशक वित्त निधि कुमार नरंग सोमवार को पूरी टीम के साथ आयोग के कार्यालय गए थे। आज इन सभी ने मुख्य सचिव से मिलकर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की पैरवी की। 

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निजीकरण के मसौदे को न दें मंजूरी 

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष ने मुख्य सचिव से अपील की, वह दागी सलाहकार कंपनी के बनाए गए निजीकरण के मसौदे को कतई मंजूरी न दें। समिति ने नियामक आयोग के अध्यक्ष को पत्र भेजकर मांग की है कि आरएफपी डॉक्यूमेंट को मंजूरी देने के पहले समिति को उसका पक्ष रखने का मौक दे। क्योंकि निजीकरण से उपभोक्ताओं के साथ सबसे अधिक प्रभाव बिजली कर्मचारियों के भविष्य पर पड़ने वाला है।

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यूपीपीसीएल और निजी घरानों की मिलीभगत

संघर्ष समिति ने आरोप लगाया कि पावर कारपोरेशन की निजी घरानों के साथ मिलीभगत है। सरकारी विभागों के बकाया और सब्सिडी को बिजली कंपनियों के घोटे में जोड़कर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया है। इसके अतिरिक्त इनकी ए टी एंड सी हानियां बढ़ाकर दिखाई गई हैं। लाइन हानियों को बढ़ाकर दिखाने के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में निजी नलकूपों की बिजली खपत कम करके आंकी जा रही है। 

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लाइन हानियों के आंकड़े बढ़ाए गए

समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि निजी नलकूपों को प्रदेश सरकार की नीति के अनुसार मुफ्त बिजली मिलती है।  ए टी एंड सी हानियों को बढ़ाकर गत वर्ष की तुलना में विद्युत वितरण निगमों की अधिक हानि दिखाई गई है। एक तरफ सरकार लाइन हानियां 41 प्रतिशत से घटाकर 16 फीसद के नीचे करने का दावा कर रही है। वहीं निजीकरण के लिए इसके विपरीत हानियों को बढ़ाकर बताया जा रहा है। जिससे चुनिंदा निजी घरानों को लाभ दिया जा सके।

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आगरा में धांधली उजागर होने पर नहीं हुई कार्रवाई

समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने आरोप लगाया कि आगरा और कानपुर के निजीकरण के समय भी शहर की लाइन हानियों को बढ़ाकर दिखाया गया था। आगरा में कैग की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। जिसमें निजी कम्पनी को बेजा लाभ देने का जिक्र है। इसके बावजूद आगरा का फ्रेंचाइजी करार रद्द करने के लिए पावर कारपोरेशन ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया। 

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251वें  दिन जारी रहा आंदोलन

शैलेन्द्र दुबे ने बताया कि निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन के 251वें  दिन वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, झांसी, बांदा, बरेली, देवीपाटन, अयोध्या, सुल्तानपुर, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, नोएडा, गाजियाबाद, मुरादाबाद, हरदुआगंज, जवाहरपुर, परीक्षा, पनकी, ओबरा, पिपरी और अनपरा में विरोध प्रदर्शन किया गया।

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