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निजीकरण और बिजली दरों में वृद्धि में फंसा पेंच, नियामक आयोग ने आपत्तियों पर कंपनियों से मांगा जवाब

पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम के निजीकरण और बिजली दरों में प्रस्तावित वृद्धि में पेंच फंस गया है। दोनों मामलों में दाखिल आपत्तियों पर नियामक आयोग ने सभी बिजली कंपिनयों से जवाब तल​ब किया है।

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Deepak Yadav
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निजीकरण और बिजली दरों में वृद्धि में फंसा पेंच Photograph: (google)

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम के निजीकरण और बिजली दरों में प्रस्तावित वृद्धि में पेंच फंस गया है। दोनों मामलों में दाखिल आपत्तियों पर नियामक आयोग ने सभी बिजली कंपिनयों से जवाब तल​ब किया है। प्रबंध निदेशकों और पावर कारपोरेशन की रेगुलेटरी अफेयर यूनिट को आपत्तियां भेजते हुए जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए गए हैं। जब तक जवाब दाखिल नहीं किया जाएगा, आयोग दोनों प्रक्रियाओं को आगे नहीं बढ़ा सकेगा।   

निजीकरण में गंभीर कमियां उजागर

विद्युत उपभोक्ता परिषद ने बीते दिनों नियामक आयोग की जनसुनवाई में उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर निकल रहे 33122 करोड़ रुपये सरप्लस के एवज में दरों में 45 फीसदी कम करने का मुद्दा उठाया था। इसके अलावा निजीकरण की प्रकिया में गंभीर कमियां उजागर की हैं। आयोग ने भी इसमें कमियां निकालते हुए मसौदा ऊर्जा विभाग को वापस कर दिया है। अब आयोग के सचिव सभी बिजली कंपनियों से आपत्तियों पर तत्काल रिपोर्ट तलब की है। 

पूर्वांचल-दक्षिणांचल को दाखिल करेंगे जवाब

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परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि निजीकरण और बिजली दरों और के प्रस्ताव में बड़े पैमाने उजागर कमियों पर सभी बिजली कंपनियां खासतौर पर पूर्वांचल और दक्षिणांचल को लिखित जवाब नियामक आयोग को दाखिल करना होगा। अभी तक दोनों कंपनियों के एमडी निजीकरण पर बोलने से पीछे हट रहे थे। पर्दे के पीछे से इनकी तरफ से पावर कापोरेशन बैटिंग कर रहा था। 

आपत्तियों पर विचार जरूरी

उन्होंने कहा कि अब मामला रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत टैरिफ का अंग बन चुका है। ऐसे में निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना आसंवैधानिक होगा। बिजली कंपनियों के जवाब के बाद रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत नियामक आयोग को भी अपना मत देना पड़ेगा। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 64(3) के तहत सभी आपत्तियों पर बिना विचार किए आयोग आगे नहीं बढ़ सकता।

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चूक होने पर आयोग को देना पड़ेगा जवाब 

परिषद अध्यक्ष ने कहा निजीकरण के मामले पर आयोग को बिजली कंपनियों का जवाब रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत आम जनता के बीच लाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि निजीकरण का मसौदा भ्रष्टाचार का पुलिंदा है। इसकी उच्च स्तरीय जांच होना बहुत जरूरी है। इसमें नियामक आयोग की भूमिका संवैधानिक रूप से सबसे ज्यादा अहम है। कोई भी चूक होने पर आयोग को भी सक्षम न्यायालय में जवाब देना पड़ेगा।

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