लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। मीरजापुर के राजगढ़ क्षेत्र में मंगलवार सुबह जब आम लोग रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त थे, तब नदिहार गांव से एक कॉल ने 108 एम्बुलेंस सेवा के दो कर्मियों की ड्यूटी को एक मिशन में बदल दिया। यह कोई आम दिन नहीं था। यह वह दिन था, जब एक एम्बुलेंस ने चलती सड़क पर जीवन की सबसे मधुर ध्वनि, एक नवजात की किलकारी को सुना।
गर्भवती रूपा देवी, जिनकी उम्र मात्र 26 साल है, अचानक तेज प्रसव पीड़ा से तड़पने लगीं। उनके पति विकास और परिजनों ने तुरंत 108 सेवा को फोन किया। कुछ ही मिनटों में ईएमटी राहुल निगम और चालक हरिओम मौके पर पहुंच गए। समय कम था, दर्द बढ़ता जा रहा था और रास्ता लंबा।
धैर्य और समझदारी का परिचय दिया
राहुल और हरिओम जानते थे कि अब सिर्फ ड्राइविंग या फर्स्ट-एड की बात नहीं रही, यह अब जीवन और मृत्यु का सवाल बन चुका है। अस्पताल पहुंचने से पहले ही रूपा देवी की प्रसव पीड़ा चरम पर पहुंच गई। मगर घबराहट की जगह उन्होंने धैर्य और समझदारी का परिचय दिया। एम्बुलेंस का पिछला हिस्सा अब अस्पताल का डिलीवरी रूम बन चुका था।
बिना डॉक्टर, बिना ऑपरेशन थिएटर, सिर्फ सेवा, समर्पण और साहस बना सहारा
राहुल और हरिओम ने एम्बुलेंस में ही सुरक्षित प्रसव कराया और जब नवजात की पहली रोशनी भरी आवाज एम्बुलेंस में गूंजी, तब जैसे मानवता ने राहत की सांस ली। यह कोई साधारण डिलीवरी नहीं थी, यह था एक सच्चे सेवा भाव का चमत्कार।
सीएचसी राजगढ़ पहुंचने पर डॉक्टरों ने मां और बच्चे दोनों को पूर्णतः स्वस्थ बताया। परिजनों की आंखों में आंसू थे, मगर यह आंसू डर के नहीं, बल्कि कृतज्ञता और आश्चर्य के थे। राहुल और हरिओम न केवल एम्बुलेंस कर्मचारी हैं, बल्कि वह जीवनदाता बन भी गए। इस घटना ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि असली हीरो फिल्मी पर्दों पर नहीं, हमारे बीच ही होते हैं, जो वर्दी में नहीं, मगर कर्तव्य और करुणा से सजे होते हैं।
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