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पावर कॉरपोरेशन बिजली कंपनियों के घाटे का जिम्मेदार Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने बिजली कंपनियों के घाटे के लिए पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है। समिति ने कहा कि निजीकरण के अब तक के प्रयोग असफल रहे हैं। इस​लिए घाटे का हवाला देकर यूपी की जनता पर निजीकरण न थोपा जाए। कंपनियों के घाटे की असल वजह महंगे बिजली खरीद करार और सरकारी विभागों पर बकाया है।
महंगे करार की वजह से उन बिजली इकाइयों को उत्पादन निगम की तुलना में 9521 करोड़ ज्यादा अदा करने पड़े। ऐसे कई बिजली क्रय करार हैं, जिनसे वर्ष 2024-25 में एक यूनिट भी बिजली नहीं खरीदी गई लेकिन 6761 करोड़ का भुगतान किया गया। मंहगे बिजली क्रय करारों के चलते विद्युत वितरण निगमों को कुल लगभग 16282 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ रहा है। इसकी सारी जिम्मेदारी प्रबन्धन की है।
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि वर्तमान में सरकारी विभागों पर लगभग 14 हजार करोड़ बिजली राजस्व का बकाया है। यह धनराशि सभी विद्युत वितरण कम्पनियों के पॉवर कारपोरेशन द्वारा दर्शाये गये वार्षिक घाटे से कहीं अधिक है। यदि बहुत मंहगे बिजली खरीद करार रद्द कर दिये जायें और सरकारी विभागों का बिजली राजस्व का बकाया मिल जाये तो विद्युत वितरण निगम मुनाफे में आ जायेंगे और घाटे के नाम पर किसी निजीकरण की आवश्यकता नहीं होगी।
दुबे ने कहा कि 05 अप्रैल 2018 और 06 अक्टूबर 2020 को मंत्रियों के साथ हुए बिजली कर्मियों को विश्वास में लिये बिना उप्र में ऊर्जा क्षेत्र में निजीकरण नहीं करने का समझौता हुआ था। ऐसे में मंत्रियों के साथ हुए समझौते का पालन करते हुए निजीकरण का निर्णय तत्काल वापस लिया जाये। उन्होंने 19 मार्च 2023 को ऊर्जा मंत्री द्वारा की गयी घोषणा के अनुपालन में आन्दोलन के कारण की गयी समस्त उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियां वापस लेने की मांग की।
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