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बिजली निजीकरण विकसित यूपी की राह का रोड़ा : संघर्ष समिति 2047 विजन पोर्टल पर भेजेगी प्रस्ताव, प्रदर्शन जारी

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति समर्थ-विकसित उत्तर प्रदेश 2047 विजन पोर्टल पर जल्द अपना प्रस्ताव भेजेगी। संगठन का कहना है कि बिजली निजीकरण का निर्णय निरस्त करना बेहद जरूरी है।

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Deepak Yadav
protest against electricity privatisation

निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन करते बिजली कर्मचारी Photograph: (YBN)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति बिजली को सार्वजनिक क्षेत्र में रखने के लिए समर्थ-विकसित उत्तर प्रदेश 2047 विजन पोर्टल पर जल्द अपना प्रस्ताव भेजेगी। संगठन का कहना है कि बिजली निजीकरण का निर्णय निरस्त करना बेहद जरूरी है। निजीकरण के विरोध में अभियान और संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक सरकार अपना फैसला वापस नहीं लेती। 

बिजली का सार्वजनिक क्षेत्र में रहना बेहद जरूरी

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति किसानों, गरीब और मध्यमवर्गीय बिजली उपभोक्ताओं तथा कर्मचारियों से जुड़े मुद्दों को समाहित करते हुए विजन 2047 के लिए अपना प्रस्ताव देगी। संघर्ष समिति ने कहा कि पांच ऐसे प्रमुख बिंदु हैं, जिसके कारण विकसित उत्तर प्रदेश 2047 के लिए बिजली का सार्वजनिक क्षेत्र में बनाए रखना बेहद जरूरी है।

निजी कंपनियां नहीं देंगी सस्ती बिजली 

पहला : बिजली जनता की बुनियादी जरुरत है। बिजली की वास्तविक लागत को देखते हुए सब लोग इसका भुगतान करने में समर्थन नहीं है। यही कारण है कि किसानों, घरेलू उपभोक्ताओं, वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्र के लिए बिजली की अलग-अलग दरें निर्धारित की जाती हैं। किसानों, घरेलू उपभोक्ताओं खासकर गरीब और मध्यमवर्गीय उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली दी जाती है। सार्वजनिक क्षेत्र में बिजली वितरण कंपनियां यह काम वर्षों से घाटा उठाकर करती रही हैं। निजीकरण होने के बाद कोई निजी कंपनी घाटा उठाकर बिजली नहीं देगी। सस्ती बिजली न मिलने पर कृषि क्षेत्र और गरीब उपभोक्ताओं पर सबसे बड़ा असर पड़ेगा जो विकसित उत्तर प्रदेश 2047 की राह में बाधक होगा।

निजीकरण के बाद बिजली खरीद की लागत बढ़ेगी

दूसरा : सरकारी क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों की बिजली सबसे सस्ती होती है। उत्तर प्रदेश में सरकारी क्षेत्र के बिजली उत्पादन घरों की बिजली का औसत मूल्य चार रुपये 17 पैसे प्रति यूनिट है। निजी क्षेत्र से खरीदी जाने वाली बिजली सात रुपये से 19 रुपये प्रति यूनिट तक की मिलती है। स्वाभाविक है बिजली के निजीकरण के बाद बिजली खरीद की लागत बढ़ेगी और निजी क्षेत्र की विद्युत वितरण कंपनियों के सामने महंगी बिजली बेचने का यह सबसे बड़ा बहाना होगा। 

महंगी बिजली खरीद करार किए जाएं रद्द 

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तीसरा : उत्तर प्रदेश में निजी बिजली उत्पादन घरों के साथ 25-25 साल के बिजली क्रय करार हैं। जिनमें से अधिकांश की दरें सरकारी क्षेत्र की तुलना में काफी अधिक हैं। बदलते समय में इसकी तुलना में भारत में काफी सस्ती सौर ऊर्जा उपलब्ध है। विकसित उत्तर प्रदेश 2047 के लिए जरूरी है कि निजी क्षेत्र के साथ चल रहे महंगी बिजली खरीद करारों को रद्द कर सौर ऊर्जा और अन्य साधनों से उपलब्ध हो रही सस्ती बिजली के करार किए जाएं।

निजी क्षेत्र के लिए बिजली सिर्फ व्यवसाय 

चौथा : सार्वजनिक क्षेत्र के लिए बिजली एक सेवा है। जबकि निजी क्षेत्र के लिए बिजली एक व्यवसाय है। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश में घरेलू बिजली की अधिकतम करें 06 रुपए 50 पैसे प्रति यूनिट है जबकि निजी क्षेत्र में मुंबई में घरेलू बिजली की दरें 16 रुपये 71 पैसे प्रति यूनिट है। निजीकरण होते ही उत्तर प्रदेश में भी बिजली के दाम आकाश छूने लगेंगे।साफ है कि विकसित उत्तर प्रदेश 2047 की राह में बिजली का निजीकरण होना सबसे बड़ा बाधक सिद्ध होगा।

साइबर सुरक्षा के लिए अहम

पांचवां : हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान और बाद में भी यह समाचार आए हैं कि जम्मू कश्मीर में साइबर सिक्योरिटी के खतरे के लिए बिजली का नेटवर्क एक बड़ा माध्यम था। ऐसे में बिजली केवल एक सेवा नहीं है बल्कि बिजली सार्वजनिक क्षेत्र में बनाए रखना इसलिए भी जरूरी है कि इससे साइबर सिक्योरिटी का खतरा न उत्पन्न होने पाये।

निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन जारी

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समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि पोर्टल पर बिजली को सार्वजनिक क्षेत्र में रखने विषयक और भी कई बिंदुओं पर विस्तृत सुझाव दिए जाएंगे। उन्होंने बताया कि निजीकरण के विरोध में चल रहे आंदोलन के आज 281वें दिन प्रदेश में समस्त जनपदों पर व्यापक विरोध प्रदर्शन किया गया।

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