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निजीकरण से 76500 बिजली कर्मियों की नौकरी खतरे में, संघर्ष समिति आर-पार की लड़ाई को तैयार

दिल्ली का उदाहरण देते हुए बताया कि वर्ष 2002 में निजीकरण के बाद दिल्ली के विद्युत वितरण निगमों में कुल 18097 बिजली कर्मी कार्यरत थे। निजीकरण के एक वर्ष के अंदर-अंदर निजी घरानों के उत्पीड़न से तंग आकर 8190 बिजली कर्मियों ने सेवानिवृत्ति ले ली।

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Deepak Yadav
protest against electricity privatisation

निजीकरण से 76500 बिजली कर्मियों की नौकरी खतरे में, Photograph: (YBN)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता।विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने दावा किया कि प्रदेश में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम (puvvnl-DVVNL) का निजीकरण होने से करीब 76500 सरकारी बिजली कर्मचारियों की नौकरी पर खतरा मंडराने लगेगा। समिति ने बताया कि पूर्वांचल में 17500 और दक्षिणांचल में 10500 नियमित कर्मचारी हैं।  दोनों डिस्कॉम में करीब 50 हजार संविदा कर्मी काम कर रहे हैं। निजीकरण से इन सभी की नौकरी संकट में आ जाएगी। संगठन ने कहा कि बिजली की बढ़ी हुई मांग को देखते हुए कर्मचारी आंदोलन के साथ उपभोक्ताओं की समस्याओं को भी प्राथमिकता पर अटेंड कर रहे हैं। 

यूपीपीसीएल ने बिजली कर्मिकों ने दिए तीन विकल्प

समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि पावर कारपोरेशन अध्यक्ष ने निजीकरण के बाद बिजली कर्मियों को तीन विकल्प दिए हैं। पहला कि वह निजी कंपनी की नौकरी स्वीकार कर लें। दूसरा अन्य विद्युत वितरण निगमों में वापस आ जाए और तीसरा विकल्प यह है कि वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर घर चले जाएं। समिति ने कहा कि ऐसे बिजली कर्मियेां की बड़ी संख्या है जो निजी कंपनियों की नौकरी छोड़कर पावर कारपोरेशन में सरकारी नौकरी करने आए थे। अब कई साल की नौकरी के बाद उनसे यह कहना कि वे फिर निजी कंपनी में चल जाएं यह बिजली कर्मचारियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।

सरप्लस होने पर कार्मिकों की छंटनी तय 

दूसरे विकल्प के रूप में यदि बिजली कर्मी अन्य विद्युत वितरण निगमों में वापस आते हैं तो वे सरप्लस हो जाएंगे और उनकी छंटनी की नौबत आ जाएगी। इतना ही नहीं इन दोनों विद्युत वितरण निगम से अन्य विद्युत वितरण निगमों में जाने वाली बिजली कर्मी नियमानुसार वरिष्ठता क्रम में 2025 बैच के नीचे अर्थात सबसे नीचे रखे जाएंगे। स्वाभाविक है कि सरप्लस होने पर सबसे पहले इन बिजली कर्मियों की ही छंटनी होगी।

दिल्ली में निजीकरण हुआ विफल

दिल्ली का उदाहरण देते हुए बताया कि वर्ष 2002 में निजीकरण के बाद दिल्ली के विद्युत वितरण निगमों में कुल 18097 बिजली कर्मी कार्यरत थे। निजीकरण के एक वर्ष के अंदर-अंदर निजी घरानों के उत्पीड़न से तंग आकर 8190 बिजली कर्मियों ने सेवानिवृत्ति ले ली। इस तरह दिल्ली में निजीकरण के एक साल के अंदर ही अंदर-अंदर 45 प्रतिशत बिजली कर्मी सेवानिवृत्ति लेकर घर चले गए। तब बिजली कर्मचारियों को पेंशन मिलती थी। अब पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में कार्यरत 90 प्रतिशत बिजली कर्मचारियों को पेंशन नहीं मिलती? वे सेवानिवृत्ति लेकर कहां जाएंगे?

चंडीगढ़ की तर्ज पर यूपी में निजीकरण

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समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि इस साल एक फरवरी को चंडीगढ़ विद्युत विभाग का निजीकरण किया गया। उसी दिन लगभग 40 प्रतिशत बिजली कर्मचारियों ने सेवानिवृत्ति ले ली। चंडीगढ़ में बिजली कर्मचारियों की यूनियन और सरकार के बीच एक फरवरी को हुए समझौते को अभी तक लिखित में नहीं दिया गया। निजीकरण की यही भयावह कहानी अब यूपी में दोहराई जा रही है। बिजली कर्मी इसे स्वीकार नहीं करेंगे। दुबे ने बताया कि निजीकरण के विरोध में 267वें दिन बिजली कर्मचारियों ने प्रदेश के समस्त जनपदों और परियोजनाओं पर प्रदर्शन कर निर्णायक संघर्ष का संकल्प लिया।

Electricity Privatisation | VKSSSUP

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