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नियामक आयोग में प्रस्ताव दाखिल : बिजली दरों में वृद्धि और निजीकरण का दबाव बना रहा UPPCL, दोनों की नहीं गुंजाइश

परिषद ने आरोप लगाया कि पावर कारपोरेशन घाटे के झूठे आंकड़े दिखाकर बिजली दरों में 28 से 45 प्रतिशत तक वृद्धि और निजीकरण के लिए हर स्तर पर दबाव बना रहा है। कारपोरेशन की तरफ से 2025-26 में ट्रू-अप और 24,022 करोड़ के घाटे का हवाला दिया है।

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Deepak Yadav
Electricity Privatisation

नियामक आयोग में प्रस्ताव दाखिल Photograph: (Google)


लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। यूपी में बिजली दरों के निर्धारण की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। कभी भी दरों की घोषणा की जा सकती है। वहीं पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम के निजीकरण को लेकर भी जोर आजमाइश जारी है। इस बाबत ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने शुक्रवार को अधिकारियों के साथ बैठक की। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए विद्युत नियामक आयोग में एक लोक महत्व प्रस्ताव दाखिल किया। 

घाटे के झूठे आंकड़ों का आरोप

परिषद ने आरोप लगाया कि पावर कारपोरेशन घाटे के झूठे आंकड़े दिखाकर बिजली दरों में 28 से 45 प्रतिशत तक वृद्धि और निजीकरण के लिए हर स्तर पर दबाव बना रहा है। कारपोरेशन की तरफ से 2025-26 में ट्रू-अप और 24,022 करोड़ के घाटे का हवाला दिया है। जबकि इस वित्तीय वर्ष में भी बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं का  तीन से चार हजार करोड़ बकाया निकलना तय है। 33,122 करोड़ रुपये पहले से ही बकाया है। इन परिस्थितियों में बिजली दरों में बढ़ोतरी का कोई औचित्य नहीं बनता है।

निजीकरण प्रक्रिया गुपचुप आगे बढ़ाने की कोशिश

परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने आरोप लगाया कि सरकार की ओर से उच्च स्तर पर गोपनीय बैठकें कर निजीकरण को चुपचाप आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। जब तक आयोग ट्रू-अप और वास्तविक वित्तीय आंकड़ों का विश्लेषण नहीं कर लेता, तब तक निजीकरण के प्रस्ताव को मंजूरी न दी जाए। अगर परिषद के आंकड़े सही पाए जाते हैं, तो प्रस्ताव निरस्त किया जाना चाहिए। आंकड़ों की निष्पक्ष जांच करने पर प्रदेश में लगातार छठे वर्ष भी बिजली दरों में वृद्धि नहीं बल्कि कमी तय है। 

उपभोक्ता परिषद की मांगें

  • बिजली दरों में प्रस्तावित बढ़ोतरी तत्काल रोकी जाए और उपभोक्ताओं के सर प्लस के आधार पर दरों में कमी की जाए।
  • ट्रू-अप और वित्तीय आंकड़ों की निष्पक्ष जांच हो।
  • निजीकरण प्रस्ताव को जब तक आंकड़े स्पष्ट न हों, तब तक स्थगित रखा जाए।
  • भ्रामक आंकड़े प्रस्तुत करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।
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