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जुकाम-खांसी को हल्के में न लें Photograph: (YBN)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। ठंड के मौमस में बच्चों में सर्दी, खांसी, बुखार की समस्याएं आमतौर पर देखी जाती हैं। अगर समय पर ध्यान न दिया जाए और सही इलाज न मिले, तो यह समस्याएं निमोनिया का रूप ले सकती हैं। खासकर छोटे बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण उनमें ये समस्याएं जल्दी उभरती हैं। इसलिए उनका खास ख्याल रखना बेहद जरूरी है। बलरामपुर अस्पताल के बाल रोग विभाग की ओपीडी में इन दिनों इन्हीं संक्रमण की शिकायत के साथ बड़ी संख्या में बच्चे पहुंच रहे हैं। वहीं चिकित्सक परिजनों को बच्चों की सेहत का खास ध्यान रखने और इस मौसम में अधिक सतर्क रहने की सलाह दे रहे हैं।
बच्चे की पसली चले तो हो सकता है निमोनिया
बलरामपुर अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ ओमकार यादव ने 'यंग भारत न्यूज' से खास बातचीत में कहा कि ठंड बढ़ने पर बच्चों का खास ख्याल रखना जरुरी है। बच्चों को गर्म कपड़े पहनाकर रखें। आइसक्रीम और अन्य ठंडी तासीर वाली चीजें बिल्कुल न दें। दूध हमेशा गुनगुना देना चाहिए, ताकि शरीर में गर्मी बनी रहे। डॉ यादव के अनुसार, इस मौसम में निमोनिया की समस्या ट्रिगर होती है। बच्चों में पसलियां चलने और सांस लेने में दिक्कत होने पर तुरंत बाल रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए। ये लक्षण निमोनियां की शुरुआत का संकेत हो सकते हैं। डॉक्टर ने कहा कि मेडिकल स्टोर पर समस्या बताकर बच्चों को दवाई कतई ने दें, इससे दिक्कत बढ़ सकती है।
इन कंपाउंड वाले सिरप से बचें
डॉक्टर ने बताया कि बच्चों में अगर तीन से चार दिन तक सर्दी, खांसी बनी रहे तो उन्हें डॉक्टर को जरुर दिखाएं। डीईजी और ईजी कंपाउंड्स वाले कफ सिरप बच्चों को नहीं देना चाहिए। हालांकि, चिकित्सक की सलाह पर वोसालबुटामोल कफ सिरप दी जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि दो से तीन दिन बुखार रहने पर बच्चों को एंटीबायोटिक दवाएं नहीं देनी चाहिए। सीने में जकड़न, सांस लेने पर तकलीफ और ज्यादा खांसी की शिकायत हो तो डॉक्टर की सलाह पर नैबुलाइज और भाप से राहत मिल सकती है।
डीजीआई और ईजी इंसानों के लिए खतरनाक
मेडिकल रिपोर्ट्स के अनुसार, डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले रसायन हैं। जिनका उपयोग आमतौर पर ब्रेक द्रव, एंटीफ्रीज, पेंट, प्लास्टिक और कुछ घरेलू सामान बनाने में किया जाता है। ये सस्ते और रंगहीन तरल पदार्थ होते हैं। अवैध रूप से दवाओं में प्रोपिलीन ग्लाइकॉल के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है। डीईजी और ईजी को इंसानों के लिए खतरनाक माना जाता रहा है।
कोल्ड डाय​रियां होने पर क्या करें?
डॉक्टर ने बताया अगर बच्चों के अगर बच्चों के नाखून नीले और सांस लेने में तकलीफ हो तो इसे हल्के में न लें, क्योंकि यह कोल्ड डायरिया के लक्षण हैं। इससे बचाव के लिए बच्चों की दूध की बोतल को हर बार इस्तेमाल करने से पहले पानी में उबाल लें। बच्चों को ढककर रखें और पूरी बांह के कपड़े पहनाएं। सफाई का विशेष ध्यान रखें। कोल्ड डायरिया होने पर डॉक्टर की सलाह के बिना कोई भी दवा न दें। हालांकि ओआरएस का घोल दिया जा सकता हैं। बोतल बंद ओआरएस से बचना चाहिए। क्योंकि इसमें ज्यादातर डब्ल्यूएचओ से सर्टिफाईड नहीं होते। साथ ही बच्चों को रोटावायरस का टीका जरूरी लगवाना चाहिए। ये सरकारी अस्पतालों में यह उपलब्ध है।
बच्चों में खांसी नहीं रुकने पर क्या करें?
डॉक्टर यादव कहते हैं, अगर आपके बच्चे को सर्दी-खांसी की समस्या होने पर खुद से या घर में पहले के बच्चों पर इस्तेमाल की गई कोई दवा न लें। सेल्फ मेडिकेशन सेहत के लिए बहुत गंभीर परिणामों वाला हो सकता है। तीन से चार दिन तक बच्चों की खांसी की समस्या बनी रहे तो चिकित्सक को दिखाना चाहिए। एक्स-रे और खून की जांच से पता चल जाता है कि खांसी नहीं रुकने का क्या कारण है। घरेलू उपाय जैसे भाप आदि कुछ स्थितियों में लाभ दे सकते हैं। पर सभी बच्चों को इससे राहत मिले ये भी जरुरी नहीं है। इसलिए बिना डॉक्टरी सलाह के कोई भी दवा बच्चों को दी ही नहीं जानी चाहिए।
Balrampur Hospital | pneumonias
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