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यूपी भाजपा को जल्द मिलेगा नया प्रदेश अध्यक्ष, ओबीसी चेहरा बनने की सबसे अधिक संभावना

राजनीत के जानकारों का कहना है कि भाजपा जातीय संतुलन साधने में हमेशा रणनीतिक रही है। इस बार भी ओबीसी नेतृत्व की संभावना ज्यादा है क्योंकि 2027 की तैयारी अभी से शुरू हो चुकी है।

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Anupam Singh
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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी को बहुत जल्द नया प्रदेश अध्यक्ष मिलने जा रहा है। मौजूदा कार्यवाहक अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल जनवरी 2023 में समाप्त हो चुका है, जिसके बाद से ही नए अध्यक्ष की नियुक्ति की अटकलें जारी थीं। अब जबकि पार्टी ने राज्य के 98 में से 70 जिलों में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति कर दी है, संगठनात्मक दृष्टिकोण से नए प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव कराने की शर्तें पूरी हो गई हैं।

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भाजपा के संविधान के अनुसार यदि प्रदेश के 50 प्रतिशत से अधिक जिलों में जिलाध्यक्ष नियुक्त हो जाते हैं तो प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव कराया जा सकता है। पार्टी ने यह संख्या 16 मार्च को 71.42% तक पहुंचा दी है, जिससे चुनाव की प्रक्रिया को हरी झंडी मिल गई।

पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, भाजपा मार्च 2025 के अंत तक प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कर सकती थी, मगर आंतरिक मंथन और जातिगत समीकरणों के चलते यह निर्णय टलता रहा। अब पार्टी नेतृत्व के संकेत मिल रहे हैं कि मिशन-2027 को ध्यान में रखते हुए जुलाई की शुरुआत में अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है।

ओबीसी चेहरा सबसे आगे
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा एक बार फिर ओबीसी वर्ग से ही प्रदेश अध्यक्ष चुनने की दिशा में आगे बढ़ रही है। वर्ष 2017 के चुनाव से पूर्व केशव प्रसाद मौर्य और 2022 में स्वतंत्र देव सिंह को अध्यक्ष बनाया गया था। इन दोनों चुनावों में भाजपा को शानदार जीत मिली, जिसे पार्टी ओबीसी नेतृत्व की रणनीतिक सफलता से जोड़कर देखती है। ओबीसी वर्ग से वर्तमान में पशुपालन मंत्री धर्मपाल सिंह, केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के नाम चर्चा में हैं।

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ब्राह्मण कार्ड की भी चर्चा

हालांकि पार्टी में यह भी मंथन चल रहा है कि ब्राह्मण समुदाय को साधने के लिए इस बार प्रदेश अध्यक्ष का पद उन्हें सौंपा जाए। इस वर्ग के दो प्रमुख नाम बस्ती के पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी और पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा चर्चा में हैं। विशेषज्ञों के अनुसार भाजपा यदि अपने पारंपरिक ब्राह्मण वोटबैंक को पुनः मजबूत करना चाहती है तो ब्राह्मण नेतृत्व की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।

पीडीए फॉर्मूले की काट

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पार्टी रणनीतिकारों का मानना है कि समाजवादी पार्टी के 'डीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठजोड़ की काट भाजपा ओबीसी अध्यक्ष और दलित चेहरों को प्रमुख पदों पर तैनात कर निकाल सकती है। भाजपा का जोर अब इस फॉर्मूले को तोड़ने और अपने पिछड़ा-दलित गठजोड़ को और मजबूत करने पर है।

क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार?

राजनीत के जानकारों का कहना है कि भाजपा जातीय संतुलन साधने में हमेशा रणनीतिक रही है। इस बार भी ओबीसी नेतृत्व की संभावना ज्यादा है क्योंकि 2027 की तैयारी अभी से शुरू हो चुकी है।

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अंतिम फैसला दिल्ली से ही 

प्रदेश अध्यक्ष का फैसला अब पूरी तरह केंद्रीय नेतृत्व के हाथ में है। पीयूष गोयल को प्रदेश अध्यक्ष चुनाव का प्रभारी बनाया गया है। उनके लखनऊ आगमन के साथ ही चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की जा सकती है।

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