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UP Politics : रैली में टूटेगी बसपा की ये पुरानी परंपरा, बहुत कुछ होगा खास

यह पहला अवसर होगा जबकि मायावती की कुर्सी के साथ कई और कुर्सियां भी होंगी और उन पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के चेहरे दिखेंगे। मायावती पूरी रैली में लगभग तीन घंटे तक विराजमान रहेंगी। आम तौर पर सार्वजनिक कार्यक्रमों में उन्हें इतने समय तक नहीं देखा जाता।

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Vivek Srivastav
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बसपा की रैली को लेकर पूरा लखनऊ शहर पोस्‍टरों से भर गया है। Photograph: (वाईबीएन)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। अब से 19 साल पहले साल 2007 में जब बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ के कांशीराम स्मारक स्थल पर रैली की थी तो अपार भीड़ देख दूसरे दलों के लोग भी विस्मय से भर उठे थे। वही कांशीराम स्मारक स्थल है, वही बसपा है, वही मायावती हैं और उसी तरह भीड़ उमड़ने की संभावना भी, लेकिन इस बार रैली में कुछ अलग भी देखने को मिलेगा। यह पहला अवसर होगा जबकि मायावती की कुर्सी के साथ कई और कुर्सियां भी दिखाई पड़ेंगी और उन पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के चेहरे दिखेंगे। इसके साथ ही मायावती पूरी रैली में लगभग तीन घंटे तक विराजमान रहेंगी। आम तौर पर सार्वजनिक कार्यक्रमों में उन्हें इतने समय तक नहीं देखा जाता।

तो क्या यह सत्ता के विकेंद्रीकरण का संकेत

बसपा प्रमुख मायावती के लिये हमेशा एक ही कुर्सी लगाई जाती रही है, हालांकि कुछ एक कार्यक्रमों में कभी-कभार पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र अलबत्ता उनके समीप दिखाई देते रहे हैं। यह मायावती का अपना विशिष्ट अंदाज है जिसके जरिये वह बसपा में अपनी प्रभुता का संदेश लोगों को देती रही हैं। यहां तक कि प्रेस कॉन्फ्रेंस को भी वह अकेले ही संबोधित करती रही हैं लेकिन, इस बार कांशीराम स्मारक स्थल पर बने मंच पर उनके साथ सात कुर्सियां दिखाई देंगी। इनमें मायावती के भाई आनंद, अभी हाल ही में बसपा में वापस लिए गए मायावती के भतीजे और नेशनल कोआर्डिनेटर आकाश आनंद का तो बैठना तय ही है, सतीश चंद्र मिश्र के लिए भी एक कुर्सी सुनिश्चित रहेगी। बाकी कुर्सियों पर प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल समेत अन्य प्रमुख नेता दिखाई पड़ सकते हैं। इनमें पार्टी के इकलौते विधायक उमाशंकर सिंह भी हो सकते हैं। मायावती के इस फैसले को उनकी अपनी सत्ता के विकेंद्रीकरण के रूप में देखा जा रहा है। संदेश साफ है कि आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर आकाश आनंद और प्रभावी नजर आएंगे।

वह दौर भी था जब गूंगी हो जाती थी मंत्रियों की जुबान

2007 में मायावती के सत्ता में आने के बाद उनकी पार्टी में कई ऐसे  नेता थे जो संभाल तो एक दर्जन से अधिक विभाग रहे थे लेकिन प्रेस के सामने उनके मुंह से बोल नहीं फूटते थे। उन्हें डर लगता था कि कहीं बहनजी बुरा न मान जाएं। अधिकृत बयान भी मायावती की ओर से ही जारी किए जाते थे। लेकिन, इस बार पार्टी नेताओं को थोड़ी आजादी मिली दिख रही है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल न सिर्फ पत्रकारों के बीच दिखाई दे रहे हैं, बल्कि तैयारियों को लेकर पूरी जानकारी भी दे रहे हैं। वह पत्रकारों के सवालों के जवाब में भी कोई हिचक नहीं दिखा रहे। प्रदेश अध्यक्ष कहते हैं कि इस सरकार में कानून-व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह बेलगाम है। लोगों ने बसपा का शासन देखा है। वे दावा करते हैं कि बहुजन समाज पार्टी 2027 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आएगी। 

रैली का नया नारा है आई लव बीएसपी

इसे मुस्लिमों को आकर्षित करने से जोड़कर देखा जा रहा है। रैली की तैयारियां भी बहुत ब़ड़े स्तर पर की जा रही हैं। एक दिन पहले पहुंचे कार्यकर्ताओं के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया है। पूरे लखनऊ की सड़कें नीले रंग के झंडों से पटी हुई हैं। भारी भीड़ को देखते हुए ट्रैफिक डायवर्जन भी किया गया है। रैली के बहाने बसपा बड़ा शक्ति प्रदर्शन करने जा रही है लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता मुनकाद अली इससे इनकार करते हैं। वाईबीएन न्यूज से बातचीत में वह कहते हैं इसे शक्ति प्रदर्शन कहना उचित नहीं होगा। जो लोग आ रहे हैं, वह बहन जी के आह्वान पर आ रहे हैं। मान्यवर कांशीराम के प्रति श्रद्धा जताने आ रहे हैं।

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