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बिजली दरों में प्रस्तावित बढ़ोतरी के खिलाफ नियामक आयोग में याचिका दाखिल Photograph: (Google)
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। दीपावली के बाद बिजली की नई दरें घोषित करने की तैयारी के बीच राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने गुरुवार को नियामक आयोग में लोक महत्व याचिका दाखिल की। इसमें बिजली दरों में प्रस्तावित बढ़ोतरी को खारिज करने की मांग उठाई। परिषद ने कहा कि छह साल बाद भी बिजली दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं करने पर मुख्यमंत्री योगी के नाम एक नया रिकॉर्ड बनेगा। जिसे भविष्य में तोड़ना मुश्किल होगा। लेकिन प्रदेशवासियों को मिल रही राहत पावर कारपोरेशन के अधिकारियों को रास नहीं आ रही है।
बिजली दरों में वृद्धि गैरकानूनी
परिषद ने दाखिल याचिका में आरोप लगाया कि पावर कारपोरेशन का 24,022 करोड़ का राजस्व घाटे का दावा भ्रामक है। प्रदेश के उपभोक्ताओं का पहले से ही 33,122 करोड़ रुपये बिजली कंपनियों पर बकाया है। इस वित्तीय वित्तीय वर्ष में भी अधिशेष संभावित है। ऐसे में बिजली दरों में वृद्धि करना अनुचित और गैरकानूनी होगा।
बिजली दरों में देरी पर उठाए सवाल
संगठन के अनुसार, बिजली अधिनियम 2003 की धारा 64 (3) के तहत वार्षिक राजस्व आवश्यकता (एआरआर) को स्वीकार किए जाने के 120 दिनों के भीतर बिजली दरों की घोषणा जरूरी है। चूंकि एआरआर नौ मई को मंजूर हो चुका है। ऐसे में दरों पर निर्णय नौ सितंबर तक किया जाना चाहिए था।
किसी भी दबाव में न आए आयोग
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बुधवार को नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार और सदस्य संजय कुमार सिंह से मुलाकात कर अवगत कराया कि बीते दिनों पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष समेत कई उच्चाधिकारियों ने ऊर्जा मंत्री के साथ बैठक की थी। इसमें बिजली दरों में बढ़ोत्तरी और निजीकरण की प्रकिया आगे बढ़ाने पर चर्चा हुई थी। जो नियामक आयोग की स्वतंत्रता व निष्पक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है। दोनों मामलों में आयोग को किसी के दबाव में नहीं आना चाहिए।
उपभोक्ता परिषद की प्रमुख मांगें
- वास्तविक आंकड़ों और सरप्लस के आधार पर तत्काल बिजली दरों की घोषणा की जाए। दरों में किसी भी प्रकार की बढ़ोतरी को पूरी तरह खारिज किया जाए। और सर प्लस के आधार पर बिजली दरों में कमी की जाए
- भविष्य में माननीय ऊर्जा मंत्री के साथ कोई भी ऐसी गोपनीय मीटिंग ना की जाए जिसमें विद्युत नियामक आयोग शामिल हो क्योंकि इससे रेगुलेटरी फ्रेमवर्क का उल्लंघन होता है।
- रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत बिजली कंपनियों का निजीकरण पूरी तरह असंवैधानिक और निजी घरानों को लाभ देने वाला है। आयोग को निजीकरण की सहमति बिल्कुल न दे।
- बिजली दरों में अनुचित वृद्धि और निजीकरण को बढ़ावा दिया गया तो प्रदेशव्यापी आंदोलन का रास्ता अख्तियार किया जाएगा।
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