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Moradabad:सीएल गुप्ता वर्ल्ड स्कूल में दाखिल हुई बच्ची की परेशानी बरकरार, पिता बोले किताबें और ड्रेस नहीं खरीद पा रहा

तीन महीने तक प्रशासनिक दफ्तरों के चक्कर काटने और मीडिया व जनप्रतिनिधियों की मदद से मिली एडमिशन की राहत ज्यादा देर टिक नहीं पाई। बेटी का दाखिला तो हो गया, लेकिन अब स्कूल की किताबें, ड्रेस, पिता के लिए चुनौती बन गई है।

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shivi sharma
वाईवीएन

सीएल गुप्ता वर्ल्ड स्कूल में दाखिला पाने वाली बच्ची बाची Photograph: (Moradabad)

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मुरादाबाद वाईवीएन संवाददातामुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश पर आरटीई (राइट टू एजुकेशन) के तहत सीएल गुप्ता वर्ल्ड स्कूल में दाखिला पाने वाली बच्ची की मुश्किलें अब भी खत्म नहीं हुई हैं। बच्ची के रैपिडो चालक पिता किताबें और स्कूल ड्रेस जैसी जरूरी चीजें न खरीद पाने के कारण परेशान हैं।

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बेटी को अच्छी शिक्षा मिले यही सपना था

तीन महीने तक प्रशासनिक दफ्तरों के चक्कर काटने और मीडिया व जनप्रतिनिधियों की मदद से मिली एडमिशन की राहत ज्यादा देर टिक नहीं पाई। बेटी का दाखिला तो हो गया, लेकिन अब स्कूल की किताबें, ड्रेस, बैग और अन्य शैक्षिक सामग्री की व्यवस्था करना पिता के लिए चुनौती बन गई है। पीड़ित पिता ने बताया कि वह दिनभर बाइक पर सवारी ढोकर रोजी कमाते हैं, जिससे घर का खर्च किसी तरह चलता है। महंगे स्कूल में दाखिला तो मिल गया, लेकिन किताबें करीब 6 हजार रुपये की हैं और ड्रेस व अन्य सामान मिलाकर कुल खर्च 10 हजार रुपये से ऊपर पहुंच रहा है। "बेटी को अच्छी शिक्षा मिले, यही सपना था। लेकिन अब पढ़ाई की शुरुआत में ही आर्थिक तंगी सामने आ गई है" उन्होंने कहा।

इस संबंध में स्कूल प्रबंधन से भी कोई ठोस सहायता नहीं मिली है। पिता ने प्रशासन से आर्थिक मदद की गुहार लगाई है ताकि बच्ची की पढ़ाई बिना रुकावट के जारी रह सके।

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क्या है आरटीई कानून

आरटीई (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) के तहत निजी स्कूलों को हर साल अपनी कुल सीटों का 25 प्रतिशत गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित रखना होता है। यह दाखिला निशुल्क होता है, लेकिन कई बार किताबें और ड्रेस जैसी जरूरी चीजों का खर्च अभिभावकों के लिए बोझ बन जाता है।

प्रशासन और समाज से अपील

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बच्ची के पिता ने अपील की है कि कोई संस्था, जनप्रतिनिधि या प्रशासनिक अधिकारी उनकी मदद करे ताकि उनकी बेटी बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ा सके। उन्होंने कहा कि बेटी पढ़ना चाहती है और मेहनती भी है, बस जरूरत है थोड़े से सहारे की।

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