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Rampur News:विलक्षण प्रतिभा के धनी थे नवाब रामपुर दरबार के राजकवि राधा मोहन चतुर्वेदी, दोनों तरफ से पढ़े जाने वाला काव्य सृजन भी किया था

रामपुर रियासत के राजकवि पंडित राधा मोहन चतुर्वेदी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। रामपुर रियासत में पीढ़ी दर पीढ़ी उन्ही के परिवार को राकवि होने का सम्मान प्राप्त हुआ था। सबसे खास उन्होंने उल्टा-सीधा एक साथ पढ़ने वाला काव्य सृजन किया था।

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Akhilesh Sharma
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रामपुर रियासत के अंतिम राजकवि राधा मोहन चतुर्वेदी । Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

रामपुर, वाईबीएन संवाददाता। राधा-मोहनजी चतुर्वेदी, नवाब रामपुर के दरबार में 'राजकवि' की पदवी से अलंकृत एक सम्मानित कवि और रामपुर नगर के प्रसिद्ध कथावाचक थे। विलक्षण प्रतिभा के धनी पं.हृषीकेशजी की तरह ही आपने भी ऐसे काव्य का सृजन किया है जो सीधा तथा उल्टा दोनों तरफ से पढा़ जा सकता है। राधा मोहन चतुर्वेदी रामपुर रियासत के अंतिम राज कवि थे। आपका जन्म बुद्ध पूर्णिमा अर्थात वैशाख पूर्णिमा को हुआ था तथा मृत्यु मौनी अमावस्या अर्थात माघ माह की अमावस्या को हुई थी। एक उदाहरण देखिये-

रसरास रचो वन में नव चोर सरासर।
रचराच रहे न तजें तन हेर चराचर।।

काव्य में अभिनव कलात्मकता के साथ रसमय लयबद्धता का समावेश आपके काव्य की विशेषता थी। आपने 'सिंहावलोकित' नामक ऐसे अद्भुत कलात्मक, छंद भी लिखे जिनकी पहली पंक्ति जहां से समाप्त होती है अगली पंक्ति वहीं से शुरू होती है। इस चमत्कार का एक उदाहरण देखिये "दीन की" समस्या-पूर्ति के पहले कवित्त में।

 समस्या-पूर्ति "दीन की"
                     1
'दीन की' दुनी में कौन पूंछता है बात, जहां
    केवल है चाह जर जोरू और जमीन की।
'मीन की' तरह नेह नीर के पियासे दीन,
    गुन की ग्लानि है क़दर गुन-हीन की।
'हीन की' है हिन्द की दशा ये स्वार्थ-साधकों ने,
   आप ही बिगारी गैल दुनि की सु-दीन की।
'दीन की' कुगति जमदूत क्या करेंगे ऐसी,
   जैसी दुर्दशा धनी करते हैं 'दीन की'।

'दीन की' समस्या पूर्ति पर ही दूसरा कवित्त
                   2
दीन की दशा पै दृष्टि देते हो न दीन बन्धु,
   टेक छांड़ि बैठे हो प्रतिज्ञा पुराचीन की।
याद रखो शेष नित्य नाम लेना छोड़ि देंगे,
   सुगति रुकेगी वेगि नारद के बीन की।
चैन से न सैन(शयन) क्षीर सिन्धु में करोगे नाथ,
   सहनी पड़ेगी ताप आपको भी तीन की।
बिलखि रहे हैं 'द्विज, धेनु और किसान' देखो, 
  गजब करेंगी आहें दर्द भरीं दीन की।।

 स्व.बलदेवदासजी चौबे
राधा-मोहनजी के पूर्वज स्वनाम-धन्य बलदेवदासजी चौबे भी रामपुर दरबार के सम्मानित कवि थे जिन्होंने तत्कालीन नवाब कल्बे अली खान के अनुरोध पर फारसी की प्राचीन पुस्तक 'करीमा' के सापेक्ष ब्रजभाषा में एक सुन्दर रचना (बहुत कुछ भावानुवाद सा) 'नीति-प्रकाश' के नाम से की थी जिसे सन् 1873 में ‘बरेली रुहेलखंड लिटरेरी सोसायटी' के छापेखाने में छापा गया था। “नीति प्रकाश” का एक सुंदर दोहा देखिए :-

गर्व न कबहू कीजिए ,मानुष को तन पाइ।
रावण से योधा किते , दीने गर्व गिराइ।।

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स्व.बलदेवदासजी चौबे के वंशज कविवर स्व.राधा-मोहनजी के ही सुपुत्र रामपुर निवासी राम मोहन चतुर्वेदी हैं। राम मोहन कहते हैं कि हमारे दादा और पिता दोनों ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। पूरा परिवार उनका स्मरण करता है। 

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राम मोहन चतुर्वेदी। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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