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जलसे को खिताब करते मौलाना। Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
रामपुर, वाईबीएन नेटवर्क। 10 मुहर्रम को सुबह 9 बजे मुहल्ला अंगूरी बाग़ की मस्जिद ख़तीबे आज़म में 106 साला क़दीमी ज़िक्रे शहादत का अज़ीमुशान जलसे का आयोजन किया गया। जलसे की इबतिदा क़ारी अब्दुल करीम खां फुरक़ानी, और क़ारी मुहम्मद मामून फ़ुरक़ानी की पुर कैफ़ तिलावते क़ुरआने अज़ीम से हुई। इसके बाद मुकर्रम नियाज़ी ने नातें पेश कीं। इसके बाद मौलवी मुशाहिद फुरक़नी और मुकर्रम नियाज़ी ने हज़रत इमाम हुसैन की शान में मनक़बतें पैश कीं।
खानवादा खतीबे आज़म के नौजवान मौलवी मुहम्मद मआसिर उल्लाह खां वजीही ने शहादत का मफ़हूम समझाते हुए फ़रमाया कि शहीद की वफ़ात असल में वफ़ात नही होती बल्कि महबूब की महबूब से मुलाक़ात होती है। फ़रमाया कि जहां 10 मुहर्रम ने नबियों और रसूलों को इनामात से नवाज़ा है। वहीं ख़नवादे रसूल की आज़मइशों ने यौमे अशूरा को जिला बख़शी।
सजदे ते सब ने किये तेरा नया अंदाज़ था। तूने वो सजदा किया जस पर खुदा को नाज़ था।
इसके बाद खानवादा खतीबे आज़म के नौजवान मुफ़्ती मौलवी मआरिफ़ उल्लाह खां वजीही ने अपनी तक़रीर में फ़रमाया कि मुहर्रमुलहराम का महीना हमारे दिलों में हज़रते इमामे हुसैन की याद और उनकी कुरबानी को ताज़ा कर देता है। ख़ुदा के जो बन्दे दीने इस्लाम पर साबिल क़दम रहते हैं वह ज़ाहिरी तौर पर किसी जगह भले ही शिकस्त से दो चार हो जायें लेकिन अल्लाह ताला क़ियामत तक के लिए उन को आख़िरत की कामयाबी नसीब फ़रमा देता है। कहा कि अगर दुनिया अमन व अमान और सलामती की मुतलाशी है तो उस को सय्यदुश्शुहदा की तालीमात पर अमल करना होगा और इमामे हुसैन की शहादत के फ़लसफे़ को समझना होगा।
इसके बाद ख़ानवादा ए ख़तीबे आज़म के मुमताज़ अलिम-ए-दीन मौलवी इतेसाम उल्लाह खां वजीही नायब इमाम जामा मस्जिद ने वाक़िआत-ए-करबला पर निहायत उमदगी से रौशनी डाली। फरमाया कि तारिख़े इस्लाम में ख़ुलाफा-ए-राशिदीन के दौर के बाद उम्मते मुस्लिमा पर सियासी व समाजी और जज़्बाती असर अगर किसी वाक़े ने डाला तो वह वाकि ए करबला है। इन्होंने कहा कि सय्यदुश्शुहदा हज़रत इमामे हुसैन के अलावा ख़ानवादा ए रसूल के एक-एक शख़्स ने मज़हबे इस्लाम की बक़ा की ख़ातिर बड़ी बड़ी तकलीफें उठाई, मुशक़्क़तें बर्दाशत कीं। उन्होंने कहा कि आज हमें इस्लाम का लहलहाता हुवा चमन जो नज़र आ रहा है यह इसी का नतीजा है कि ख़ानदाने रसूल के मालियों ने इस चमन को अपने ख़ून से सींचा था। हज़रते इमाम हूसैन की ज़िन्दगी इस बात की दलील है कि कामयाबी सिर्फ़ हुकूम हासिल करना नहीं बल्कि हक़ीकी कामयाबी लोगों के दिलों पर अपनी हुकूमत कायम कर लेना है।
मशहूर अलिम ए दीन मौलवी अब्दुल वहाब खां फ़ैज़ान वजीही नायब इमाम जामा मस्जिद ने दौराने निज़ामत अपने ख़िताब में फ़रमाया कि मुसलमानों के उस एक तबक़े पर जो हज़रत अली कर्रमुल्लाह वजहहू और उन की औलाद से तो मुहब्बत के दावे करता है लेकिन दीने इस्लाम के मुस्बूत सुतून यानी हज़रत अबु बर्क, हज़रत उमर और हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हुम से बुग्ज़ व अदावत रखता है। जबकि इन ख़ुलाफाऐ राशिदीन एहले बेत की बेइन्तेहा अज़मतो तौक़ीर कायम फ़रमाई।
मौलाना फ़ैज़ान वजीही ने अपने ख़ास अंदाज़ के साथ सलाम पढ़ा जिस पर हाज़रीन झूम उठे। जलसे के आख़िर में मुफ़्ती-ए- आज़म रामपुर हज़रत मौलाना महबूब अली क़ादरी वजीही इमामे शहर व सरपरस्त ए आला मदरसा फुरक़ानिया ने अपनी दुआइय्या तक़रीर में फ़रमाया कि इस्लाम ने अपने मानने वालों को इल्म सीखने और उस पर अमल करने की ज़रूरत पर ज़ौर दिया है। लेकिन आज मुसलमानों का यह हाल है कि वह इल्म से दूर हो गये हैं वह इल्म हासिल करने के बाद उस पर अमल नहीं करते। जलसे के आख़िर में मौलवी फै़ज़ान साहब ने सलात व सलाम पढ़ा और दुआ फ़रमाई। इस जलसे में भारी संख्या मे लोग मौजूद रहे।
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