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अल्हागंज उपडाकघर घोटाला Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता । अल्हागंज उपडाकघर में उपभोक्ताओं की मेहनत की गाढ़ी कमाई पर संकट मंडराता दिख रहा है। लाखों रुपये की संदिग्ध जमा राशि से जुड़े मामले में मंगलवार को डाक निरीक्षक अमर पाल ने दोबारा जांच की। लेकिन डाकघर में इंटरनेट कनेक्टिविटी बाधित होने के कारण खातों का डिजिटल मिलान नहीं हो सका जिससे स्थिति और भी उलझ गई है।
सुबह से ही उपडाकघर के बाहर उपभोक्ताओं की भारी भीड़ जुट गई। लोग अपनी पासबुक लेकर यह जानना चाहते थे कि उनका पैसा सुरक्षित है या नहीं, लेकिन घंटों इंतजार के बाद भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला। निराश और क्रोधित उपभोक्ता विरोध प्रदर्शन करने लगे। कुछ ने डाकघर परिसर में एक आरोपी कर्मचारी का निजी क्यूआर कोड स्कैनर देखा, जिस पर उन्होंने आपत्ति जताई और सवाल उठाया कि सरकारी दफ्तर में निजी स्कैनर क्यों लगाया गया है।
इस सवाल का भी कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला। डाक निरीक्षक अमर पाल चुप्पी साधे रहे और दस्तावेजों में जांच में लगे रहे। प्रदर्शनकारियों ने तत्कालीन उपडाकपाल पर आरोप लगाया कि उन्होंने स्वयं उपभोक्ताओं से नकद लेकर आश्वासन दिया था कि राशि बाद में खाते में जमा कर दी जाएगी।
शिकायतें बढ़ीं, जवाबदेही गायब
हरदोई के बड़ागांव निवासी पुत्तन लाल ने बताया कि उनकी पासबुक में सात किस्तों की मोहरें लगी हैं, लेकिन खाते में उनकी कोई प्रविष्टि नहीं है। उनके अनुसार पासबुक के हिसाब से खाते में 4.80 लाख रुपये जमा होने चाहिए, लेकिन 1.05 लाख का कोई हिसाब नहीं है। केशव तिवारी जैसे कई उपभोक्ता सोमवार को भी डाकघर पहुंचे और लंबी लाइन में लगकर अपनी रकम का मिलान कराने की कोशिश की। केशव का कहना था कि उन्होंने कभी किसी निजी व्यक्ति को पैसा नहीं दिया केवल सरकारी योजनाओं में ही निवेश किया। बावजूद इसके डाक विभाग उन्हें कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे रहा।
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घोटाले की जड़ें गहरी, जांच अधूरी
स्थानीय ही नहीं आस-पास के क्षेत्रों में भी उपभोक्ताओं को इसी तरह की समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं। विभाग के कुछ कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर स्वीकार किया कि अगर जांच गहराई से की जाए तो शिकायतों की संख्या में और भी इजाफा हो सकता है।जांच में अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं होने से उपभोक्ताओं में असमंजस और आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। उनका कहना है कि यदि जल्द पारदर्शी जांच और कार्रवाई नहीं हुई तो वे डाकघर योजनाओं से भरोसा उठाएंगे। यह मामला केवल एक आर्थिक घोटाला नहीं बल्कि सरकारी संस्थानों में उपभोक्ता विश्वास और पारदर्शिता पर भी गहरे सवाल खड़े करता है।
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