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भगवान विष्णु Photograph: (इंटरनेट मीडिया)
शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता । हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु क्षीर सागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह समय चातुर्मास कहलाता है जो चार महीनों तक चलता है। इस दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे सभी शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं। रविवार को देवशयनी एकादशी 6 जुलाई को है
पावन अवसर पर टाउन के पास बाबा विश्वनाथ मंदिर के पुजारी आचार्य प्रदीप जी महाराज ने यंग भारत टीम को विशेष बातचीत मे बताया कि धार्मिक मान्यता है कि इस काल में सभी देवता विश्राम करते हैं, इसलिए जीवन में स्थायित्व और शुभ फल देने वाले कार्य नहीं किए जाते। यह समय आत्मचिंतन, साधना, उपवास और भक्ति के लिए सर्वोत्तम होता है।
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कब होंगे फिर से शुभ कार्य?
आचार्य ने समझाया कि जैसे इंसान थकान के बाद आराम करता है वैसे ही देवता भी एक नियत अवधि के लिए विश्राम करते हैं। इस दौरान शुभ कार्य करने से फल नहीं मिलते बल्कि बाधा आ सकती है। इसलिए सनातन परंपरा में यह समय व्रत, संयम और सेवा के लिए समर्पित है। आचार्य प्रदीप जी ने बताया कि भगवान विष्णु जब कार्तिक शुक्ल एकादशी को योगनिद्रा से जागते हैं तब देवोत्थान एकादशी मनाई जाती है। उसी दिन से पुनः विवाह आदि मांगलिक कार्य आरंभ हो सकते हैं।
चातुर्मास: संयम और साधना का समय
आचार्य जी ने बताया कि इस दौरान यह करें:
सात्विक भोजन करें
ब्रह्मचर्य और संयम का पालन करें
जप, पाठ, पूजा और व्रत को जीवन में अपनाएं
तुलसी पूजन व गौसेवा करें
और इनसे बचें
मांस, मदिरा, प्याज-लहसुन जैसे तामसिक पदार्थ
विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश जैसे संस्कार
असत्य भाषण, क्रोध और आलस्य
आचार्य प्रदीप जी महाराज ने कहा चातुर्मास सिर्फ़ व्रत का नाम नहीं, यह आत्मशुद्धि का अवसर है। यह चार महीने व्यक्ति को धर्म, संयम और साधना के मार्ग पर लाने का प्रयास करते हैं।
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