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Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता । जून माह जांच के नाम रहा। एक से 31 जून तक मलेरिया जांच तथा 11 जून से दस्तक अभियान चलाया गया। इस दौरान आशा कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर सर्वे किया। जिसमें गांवों की गलियों से लेकर शहर की बस्तियों तक 6 लाख 53 हजार 763 लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। हैरानी की बात यह रही कि सैकड़ों लोगों में गंभीर बीमारियों के लक्षण पाए गए। इससे रोग नियंत्रण में तो विभाग को मदद मिली, लेकिन विभाग के दावे की भी पोल खुल गई।
बुखार से तपते हजारों, मलेरिया निकले सिर्फ छह
स्वास्थ्य सर्वे में 3973 लोग बुखार से पीड़ित पाए गए, लेकिन इन सबमें से मात्र 6 को मलेरिया पॉजिटिव पाया गया। यह आंकड़ा एक ओर राहत देता है तो दूसरी ओर प्रशासनिक जांच और लैब सुविधा पर सवाल भी खड़े करता है कहीं ऐसा तो नहीं कि जांचें आधी-अधूरी रहीं और मलेरिया के असली मामले छुपे रह गए?
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थम रही रहा कुष्ठ रोग और टीबी रोगियों की संख्या भी बढी
सर्वे में जो सबसे चौंकाने वाला पहलू सामने आया, वह था 61 मरीजों में कुष्ठ रोग के लक्षणों का पाया जाना।
कुष्ठ को खत्म हुआ मान लिया गया था, लेकिन इसका दोबारा लौटना सरकार की स्वास्थ्य नीति पर एक तमाचा है। इतना ही नहीं 152 मरीजों में टीबी के लक्षण पाए गए। यह बताता है कि टीबी उन्मूलन के सरकारी दावे जमीन पर दम तोड़ते दिख रहे हैं। क्या DOTS और जन-जागरूकता अभियान केवल दीवारों पर लगे पोस्टर तक सीमित रह गए हैं?
11 मासूम भूख और कमजोरी से जूझते मिले
अभियान के दौरान 11 बच्चे कुपोषण की चपेट में पाए गए। आंगनबाड़ी केंद्रों में मिलने वाले पोषण आहार, स्कूलों की मध्याह्न भोजन योजना और तमाम पोषण अभियानों के बावजूद ये आंकड़े दिखाते हैं कि भूख अब भी नन्हे पेटों की सबसे बड़ी दुश्मन बनी हुई है।
फाइलेरिया बना बड़ी चुनौती, 211 मरीजों की पहचान
स्वास्थ्य टीमों ने 211 लोगों में फाइलेरिया के लक्षण पहचाने। पुरुषों में जहां हाथ पैर और अंडकोष में सूजन दिखाई दी वहीं महिलाओं में स्तनों में सूजन और चलने-फिरने में दिक्कत जैसे लक्षण देखे गए। यह रोग न केवल शरीर को अपंग करता है, बल्कि सामाजिक जीवन पर भी असर डालता है। इतने अधिक मामलों का एक साथ सामने आना इस बात का संकेत है कि फाइलेरिया नियंत्रण अभियान प्रभावशाली नहीं रहा।
खांसी-जुकाम के 2123 मरीज, मौसमी बीमारी या कुछ और?
सर्वे में 2123 लोग खांसी और जुकाम से पीड़ित मिले। हालांकि इसे आमतौर पर मौसमी संक्रमण माना जाता है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में मरीजों का सामने आना यह संकेत देता है कि वातावरण में वायरस सक्रिय हैं और इन्हें हल्के में लेना भारी पड़ सकता है। आशा वर्करों ने सर्वे के दौरान पाया कि कई घरों में नालियां जाम थीं और गंदा पानी जमा था। ये हालात मच्छरों के लिए स्वर्ग बन चुके हैं जिससे मलेरिया, डेंगू और फाइलेरिया जैसे रोग तेजी से फैल सकते हैं। हालांकि नगर निगम और पालिका ki or se 247 वार्डों में धुआं छोड़ा गया लेकिन सवाल यह है कि क्या यह पर्याप्त है? क्या बाकी वार्ड सुरक्षित हैं?
स्टीकर लगाकर छुट्टी नहीं मिलती जिम्मेदारी से
जिन घरों में 15 साल से कम उम्र के बच्चे या टीबी के मरीज पाए गए, वहां सिर्फ एक स्टीकर लगाकर छोड़ दिया गया। ना कोई दवा दी गई ना पोषण की व्यवस्था और ना ही आगे की जांच। क्या सरकारी अभियान सिर्फ कागजी खानापूर्ति तक ही सीमित रह गए हैं?
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