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शख्सियतः हरिवंश राय बच्चन के शिष्य, शाहजहांपुर के राम प्रताप सिंह कुशवाहा, 95 की उम्र में भी हिंदी के लिए समर्पित

शोहरत और सम्मान भले हर किसी को भाते हों, लेकिन कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो इन सबसे ऊपर उठकर सादगी में ही अपनी पहचान बनाते हैं। ऐसा ही एक नाम है राम प्रताप सिंह कुशवाहा, जो आज 95 वर्ष की आयु में भी हिंदी की सेवा में लगे हुए हैं।

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Narendra Yadav
केंद्रीय विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में सम्मान के साथ राम प्रताप सिंह कुशवाहा

केंद्रीय विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में सम्मान के साथ राम प्रताप सिंह कुशवाहा Photograph: (वाईबीएन)

शाहजहांपुर, वाईबीएन संवाददाता।  शोहरत और सम्मान भले हर किसी को भाते हों, लेकिन कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो इन सबसे ऊपर उठकर सादगी में ही अपनी पहचान बनाते हैं। ऐसा ही एक नाम है राम प्रताप सिंह कुशवाहा, जो आज 95 वर्ष की आयु में भी हिंदी की सेवा में लगे हुए हैं।
अमर बलिदानी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला  खां की जन्मभूमि शाहजहांपुर महानगर के मुहल्ला  ब्रज विहार कॉलोनी निवासी कुशवाहा जी का जीवन सादगी, ईमानदारी और साहित्यिक गहराई का उदाहरण है।

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सन 1952-53 में हरिवंश राय बच्चन व डा राम कुमार वर्मा से प्राप्त की शिक्षा

राम प्रताप सिंह कुशवाहा ने सन 1952-53 में हिंदी की शिक्षा महान कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन और डॉ. रामकुमार वर्मा से प्राप्त की। कन्नौज जिले के तिर्वा स्टेट में जन्मे राम प्रताप सिंह कुशवाहा को हिंदी साहित्य से इतना प्रेम था कि उनके गुरु बच्चन जी ने स्वयं उन्हें पत्र भेजकर शुभकामनाएं दीं और अमिताभ बच्चन की तस्वीर भी उपहारस्वरूप दी थी।

अमिताभ को समर्पित ‘सुरभि’

सन 1983 में जब अमिताभ बच्चन को ‘कुली’ फिल्म की शूटिंग के दौरान गंभीर चोट लगी, तब राम प्रताप सिंह कुशवाहा ने अपनी काव्य पुस्तक ‘सुरभि’ को उन्हें समर्पित किया।इस समर्पण की जानकारी मिलते ही स्वयं महानायक अमिताभ बच्चन ने उन्हें शुभकामना संदेश भेजा। यह वही पुस्तक थी जिसका प्रकाशन उनके दामाद एसपी सिंह ने 2008 में कराया था।

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विश्व साहित्य को हिंदी में ढाला

राम प्रताप सिंह कुशवाहा ने अंग्रेजी के 10 से अधिक प्रसिद्ध कवियों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया। इनमें विलियम शेक्सपियर, पीबी. शेली, वर्ड्सवर्थ, कीट्स, और रॉबर्ट ब्रिज प्रमुख हैं।
उनकी प्रमुख कृतियों में कसक, किशोरीबस का सपना, निराशा में लिखा गया चांद, समय और प्रेम, बुलबुल कविताएं तथा सुरभि शामिल हैं। उनकी कविताओं में जीवन की गहराई, संवेदना और सादगी का अनूठा संगम झलकता है।

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ईमानदारी और संस्कार का परिचय

सरकारी सेवा में रहते हुए उन्होंने कभी भी सरकारी वाहन का निजी उपयोग नहीं किया। सेवानिवृत्ति के बाद भी सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं। परिवार में  उनके बेटे देवेश प्रताप सिंह पुत्र वधू नीलम सिंह के अलावा पौत्र शौर्य प्रताप सिंह इंजीनियर  व पौत्री सुमेधा सिंह है। राम प्रताप सिंह की बेटी मधु सिहं आगरा व  किरन सिंह मैनपुरी में हैं। पूरा परिवार सादगी की मिसाल है। राम प्रताप सिंह को व्यंजन बनाने का विशेष शौक रहा। 95 साल की उम्र में भी वह अपने अनुभव पौत्री सुमेधा से साझा करते हैं। दादा की प्रेरणा पर सुमेधा ने इंटरनेट मीडिया पर व्यंजनों के नवाचार को साझा करती हैं, जिसमें उन्हें विशेष प्यार मिल रहा है। 

गुमनाम होकर भी बड़ा नाम


हरिवंश राय बच्चन, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा जैसे साहित्यिक दिग्गजों से जुड़ाव रखने वाले राम प्रताप सिंह कुशवाहा आज भी विनम्रता की मिसाल हैं। उनका कहना है कि नाम नहीं, कर्म बड़ा होना चाहिए। शहर की हलचल से दूर,कालोनी में वे आज भी हिंदी की खुशबू बिखेर रहे हैं, बिना किसी दिखावे के,पूरी सात्विकता के साथ।

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खैरनगर गढ़ी के कवि अधिकारी कुंवर रामप्रताप सिंह कुशवाहा, का शाहजहांपुर से नाता

कन्नौज जनपद के तिरवा के निकट स्थित खैरनगर गढ़ी के सदस्य कुंवर रामप्रताप सिंह कुशवाहा न केवल एक प्रतिष्ठित राजवंशी परिवार से हैं, बल्कि उच्च कोटि के कवि और आदर्श प्रशासक के रूप में भी जाने जाते हैं। उनका विवाह शाहजहांपुर के जेवा कोठी परिवार की कुंवरि कुसुम बक्श सिंह से हुआ था।

कुंवर रामप्रताप सिंह कुशवाहा ने उत्तर प्रदेश सरकार में सेवा देते हुए अपनी ईमानदारी, निष्ठा और कर्मठता से प्रशासनिक जगत में एक आदर्श अधिकारी की पहचान बनाई। साहित्य के प्रति उनके योगदान का एक उल्लेखनीय पहलू यह भी है कि उन्होंने भरत की भार्या मांडवी पर आधारित एक खंडकाव्य की रचना प्रारंभ की थी, जो दुर्भाग्यवश स्वास्थ्य कारणों से अधूरी रह गई।

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