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Shahjahanpur News: अमृत सरोवर बना 'गंदगी सरोवर', शहीद के गांव में सरकारी योजनाओं की खुली पोल

परमवीर चक्र विजेता जदुनाथ सिंह के गांव खजुरी में अमृत सरोवर योजना के नाम पर दिखावटी काम कर करोड़ों की लूट मचाई गई। मंदिर उपेक्षित है कूड़ेदान शोपीस बन गए है। पंचायत से लेकर प्रशासन तक सब बेखबर।

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Harsh Yadav
AMRT SAROVAR

अमृत सरोवर और मंदिर की दुर्दशा Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)

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 शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता ।  जिस धरती ने भारत मां को परमवीर चक्र जैसे सर्वोच्च सैन्य सम्मान से नवाजे गए नायक जदुनाथ सिंह जैसे वीर सपूत दिए उसी धरती की आज दुर्दशा सरकार और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है। शाहजहांपुर जिले के खजुरी गांव में अमृत सरोवर योजना के अंतर्गत बना तालाब भ्रष्टाचार लापरवाही और उपेक्षा का प्रतीक बन चुका है। एक ओर देशभर में शहीदों के सम्मान के दावे किए जाते हैं वहीं दूसरी ओर उन्हीं शहीदों के गांव में गंदगी दुर्गंध मच्छर और संक्रमण का साम्राज्य है। यह कहानी किसी मामूली गांव की नहीं बल्कि उस गांव की है जहां की मिट्टी में देशभक्ति की खुशबू है। अब यही मिट्टी सरकार की योजनाओं की सड़ांध से बदबू मार रही है। सवाल यह है कि विकास के नाम पर किसका विकास हो रहा है जनता का या जेब भरने वालों का क्या

अमृत सरोवर बना 'गंदगी सरोवर', शहीद के गांव में सरकारी योजनाओं की खुली पोल
अमृत सरोवर बना 'गंदगी सरोवर', शहीद के गांव में सरकारी योजनाओं की खुली पोल Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)
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अमृत सरोवर या 'सड़ांध सरोवर'? योजनाओं की जमीनी सच्चाई

कागजों पर चमचमाते ड्रोन से दिखाए गए तालाब की तस्वीरें जब जमीन पर देखी जाती हैं, तो सच्चाई चौंकाती है। खजुरी गांव में अमृत सरोवर योजना के तहत बना तालाब कभी जल संचयन का केंद्र था पर अब वह गंदगी का अड्डा बन गया है। तालाब में पानी कम और कीचड़ ज्यादा है। चारों ओर प्लास्टिक, घरेलू कचरा और मृत जानवरों के अवशेष सड़ते हुए पड़े हैं। दुर्गंध इतनी कि आसपास खड़ा रहना भी मुश्किल। यह दृश्य बताता है कि योजना में दिखावा ज्यादा और ईमानदारी शून्य थी। पंचायत और निर्माण एजेंसी की मिलीभगत से केवल फोटो सेशन हुआ धरातल पर न निगरानी रही न रखरखाव।

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Amrit Sarovar became Garbage Sarovar
Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)




मंदिर में पसरी गंदगी, आस्था पर भी लग गया ताला

तालाब के पास स्थित ऐतिहासिक मंदिर कभी खजुरी गांव की पहचान हुआ करता था। गांववाले यहां पूजा करते थे भजन-कीर्तन होते थे। लेकिन आज यह धार्मिक स्थल भी उपेक्षा की भेंट चढ़ चुका है। मंदिर के चारों ओर गंदगी के ढेर लगे हैं शौचालय की दुर्गंध तक आसपास फैली रहती है। मंदिर की सीढ़ियों पर जमी गंदगी और दीवारों पर फैली काई बताती है कि वर्षों से यहां झाड़ू नहीं लगी। श्रद्धालुओं की संख्या अब गिनी-चुनी रह गई है। गांववालों का कहना है सरकार को शहीद के गांव की सुध नहीं आस्था की जगह भी बदहाल पड़ी है। यह हालात बताते हैं कि स्वच्छ भारत अभियान भी यहां केवल स्लोगन बनकर रह गया है।

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Amrit Sarovar became 'G
कूड़ेदान  Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)


कूड़ेदान या कूड़ा उगाने वाली खेती? पंचायत की निकम्मी व्यवस्था

गांव में जगह-जगह रखे गए कूड़ेदानों की हालत देखकर लगता है जैसे इन्हें कभी उपयोग में लाने का इरादा ही नहीं था। महीनों से कोई सफाई नहीं हुई कूड़ेदानों में अब कूड़ा नहीं बल्कि झाड़-झंखाड़ उग आया है। कुछ जगह तो खुद ग्रामीणों ने कूड़ेदानों को हटा दिया क्योंकि उनसे बदबू फैल रही थी। साफ दिखता है कि पंचायत और संबंधित विभाग केवल फाइलों में काम कर रहे हैं। ग्रामीण कहते हैं कि जब योजना आई थी तब फोटो खिंचवाई गई उद्घाटन हुआ और अब सब भूल गए। ऐसे में सवाल उठता है क्या कूड़ेदान लगाने का मकसद सफाई था या केवल बजट का बंदरबांट?

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Photograph: (वाईबीएन नेटवर्क)


बजट का खेल पैसा गया कहां? जवाब कौन देगा?

अमृत सरोवर योजना के तहत खजुरी गांव में लाखों रुपये का बजट जारी हुआ था। फाइलों में फेंसिंग, सीढ़ियां, बैठने की जगह लाइटिंग और सौंदर्यीकरण जैसे कार्य पूरे दर्शाए गए। लेकिन मौके पर पहुंचने पर इनमें से अधिकतर कार्य अधूरे या खराब अवस्था में मिले। गांववालों का आरोप है कि ठेकेदार और अधिकारी मिलीभगत कर पैसा डकार गए। किसी ने न काम की निगरानी की न गुणवत्ता की जांच। यदि RTI के माध्यम से बजट और भुगतान का रिकॉर्ड निकाला जाए तो करोड़ों की अनियमितता सामने आ सकती है। पर सवाल यह है क्या कोई जांच होगी? और होगी भी तो क्या दोषियों पर कोई कार्रवाई होगी?

खजुरी के ग्रामीण अब चुप नहीं हैं। गांव के युवाओं और बुजुर्गों ने पंचायत भवन से लेकर तहसील तक शिकायतें दी हैं। उनका कहना है सफाई रखरखाव और मंदिर की मरम्मत हो ग्रामीणों का सीधा सवाल है शहीद के गांव की यह हालत किसे शोभा देती है? क्या सिर्फ 26 जनवरी और 15 अगस्त को नाम लेना ही सम्मान है? अब गांववाले न्याय चाहते हैं और साथ ही जिम्मेदारों की जवाबदेही भी।

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